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दूसरे विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने सत्ता में वापसी की तो सूबे की कमान बीसी खंडूरी को सौंपी गई. लेकिन खंडूरी के खिलाफ भी बगावत होने लगी आखिरकार 839 दिन के कार्यकाल के बाद खंडूरी की भी छूट्टी हो गई. इसके बाद सूबे का सीएम बनाया गया रमेश पोखरियाल निशंक को. लेकिन निशंक भी तीसरे विधानसभा चुनाव करीब आने के साथ ही काफी विवादों में घिर गए. आखिरकार बीजेपी हाईकमान ने फिर बीसी खंडूरी पर दांव खेला. यही नही तीसरे विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया – खंडूरी हैं जरूरी. लेकिन इस नारे की हवा जनता ने चुनावों में निकाल दी.
फिर कांग्रेस की सत्ता
2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्ता मिली. कांग्रेस ने सूबे की बागडोर विजय बहुगुणा को दी. बहुगुणा का कार्यकाल 690 दिन रहा. कांग्रेस हाईकमान को लगा कि 2013 की आपदा के दाग कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में बहुगुणा की छुट्टी कर दी गई और सूबे की कमान हरीश रावत को सौंपी गई. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया. हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते हुए दो-दो विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए और कांग्रेस के सिर्फ 11 विधायक जैसे-तैस जीत पाए.
नहीं बना सके लोगों के दिलों में जगह
2017 में प्रंचड बहुमत के साथ आई बीजेपी ने त्रिवेन्द्र रावत को सीएम बनाया. लेकिन त्रिवेन्द्र रावत कभी भी लोगों के दिलों में वो जगह नही बना पाए, जिससे सत्ता वापसी की राह बने. यही वजह थी कि चुनावी साल में बीजेपी हाईकमान ने 1453 दिनों तक सीएम रहे त्रिवेन्द्र की भी छुट्टी कर दी. सत्ता में वापसी की चाह में तीरथ सिंह रावत को मौका दिया गया, लेकिन वे अब तक के सबसे कम समय के मुख्यमंत्री साबित हुए. तीरथ सिंह रावत की 116वें दिन विदाई हो गई. फिलहाल में बीजेपी हाईकमान ने युवा पुष्कर धामी को सत्ता की बागडोर सौंपी है. लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा कि चेहरा बदलकर सत्ता गंवाने की परम्परा टूटती है या फिर इतिहास यूं ही बरकरार रहता है.
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