[ad_1]
कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू न हो सकने से बॉर्डर के गांवों में पसरा है सन्नाटा.
इस धार्मिक यात्रा से जुड़ी है बॉर्डर के ग्रामीणों की आर्थिक सेहत. कोरोना संक्रमण की वजह से लगातार दूसरे साल मानसरोवर यात्रा रोकनी पड़ी. इससे बॉर्डर पर रहने वाले ग्रामीणों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है.
पिथौरागढ़. कोरोना संक्रमण (corona infection) के चलते इस साल भी मानसरोवर यात्रा (Mansarovar Yatra) नहीं होनी है. यात्रा के इतिहास में ये पहला मौका है, जब दो देशों के बीच होने वाली धार्मिक यात्रा लगातार दो सालों तक बंद रही. यात्रा बंद होने से जहां श्रद्धालु निराश हैं, वहीं बॉर्डर के ग्रामीणों का रोजगार भी प्रभावित हो गया है.
एकबार फिर आर्थिक संकट का सामना
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन के लिए हर साल हजारों यात्री पिथौरागढ़ होते हुए चीन पहुंचते थे. इस दौरान पूरे 4 महीने बॉर्डर के इलाके आबाद रहते थे. इन श्रद्धालुओं की यात्रा की वजह से जहां हजारों लोगों का पेट पलता था, वहीं पोनी-पोटर्स का सीजनल रोजगार भी इसी पर निर्भर था. लेकिन दो सालों से चीन से सटे गांवों में पूरी तरह सन्नाटा है. बीते साल की तरह इस साल भी मानसरोवर यात्रा आयोजित होने के कोई आसार नहीं हैं. ऐसे में तय है कि हजारों लोगों के सामने एकबार फिर आर्थिक संकट होगा.
लगातार दूसरे साल सन्नाटायात्रा रूट में एक कस्बा है बूंदी. यहां के रहनेवाले हरीश राइपा कहते हैं कि कोरोना संकट से पहले उनके गांव में रौनक हुआ करती थी. हर किसी को यात्रा से फायदा होता था. यही नहीं, सैलानी भी भारी संख्या में आते थे. लेकिन लगातार दूसरे साल सन्नाटा पसरा है.
केंद्र या राज्य से यात्रा को लेकर अभी तक कोई निर्देश नहीं : डीएम
भारत-चीन युद्ध से पहले मानसरोवर यात्रा स्वतंत्र रूप से संचालित होती थी. लेकिन 1962 के बाद इस पर पूरी तरह रोक लग गई. दोनों मुल्कों की कोशिशों के बाद 1981 से यह यात्रा फिर शुरू तो हुई, लेकिन स्वरूप पूरी तरह बदल गया. विदेश मंत्रालय स्तर पर होने वाली मानसरोवर यात्रा पर बीते साल पहली बार ब्रेक लगा. चीन से जारी सीमा विवाद और कोरोना इस यात्रा की राह में रोड़ा बने. इस साल भी कोरोना संकट के कारण यात्रा आयोजित नहीं हो पा रही है. डीएम पिथौरागढ़ आनंद स्वरूप का कहना है कि यात्रा को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार से कोई निर्देश अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है.
कुमाऊं मंडल विकास निगम को भी नुकसान
यात्रा नहीं होने से बॉर्डर की रौनक तो गायब है ही, साथ ही कुमाऊं मंडल विकास निगम को भी भारी चपत लगी है. यात्रा का आयोजन कर केएमवीएन हर साल 5 करोड़ की इनकम करता था. लेकिन कोरोना के संकट ने सबकुछ बदल डाला.
[ad_2]
Source link