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2022 के विधानसभा चुनाव पर बीजेपी की निगाह
बीजेपी की स्ट्रैटजी युवाओं को सामने लाने की रही है. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल आबादी 2011 में उत्तराखंड की कुल आबादी 1 करोड़ 86 हजार 292 थी. इनमें पुरुषों की संख्या 51 लाख 38 हजार 203 जबकि महिलाओं की संख्या 49 लाख 48 हजार 89. उभयलिंगी के रूप में 637 नाम दर्ज किए गए थे. अब 2021 में उत्तराखंड की अनुमानित आबादी सवा करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है. बताया जाता है कि इस आबादी में 60 प्रतिशत युवा वोटर हैं. बीजेपी के कई नेता यह दावा करते हैं कि प्रदेश में स्वरोजगार के इतने अवसर सुलभ कराए गए हैं कि रोजगार के लिए होने वाले पलायन में रोक लगी है. नतीजा यहां युवा वोटरों की संख्या बढ़ी है. प्रदेश के नेताओं की ऐसी रिपोर्ट के आधार पर ही बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व मान कर चल रहा है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में युवा वोटरों से ही जीत-हार तय होनी है. इसलिए भी उन्होंने प्रदेश का नेतृत्व 46 साल के युवा के हाथों में सौंपने का फैसला किया.
मैनेजमेंट की शिक्षा प्लस पॉइंट
दूसरी खासियत पुष्कर धामी की मैनेजमेंट की शिक्षा भी है. बीजेपी में अब तक जिन पदों पर धामी को जिम्मेवारियां सौंपी गईं, उनमें धामी ने खुद को साबित भी किया. धामी बीजेपी की हर कसौटी पर खरा उतरते रहे हैं. इसके अलावा उनकी छवि एक निर्विवाद नेता की भी रही है. यह अलग बात है कि उत्तराखंड के मुखिया के रूप में उन्हें वरिष्ठ विधायकों के साथ-साथ ब्यूरोक्रेसी से भी सामंजस्य बनाना होगा. पार्टी यह समझते हुए भी कि सरकार चलाने का कम अनुभव धामी के आड़े आ सकता है, उसने जोखिम उठाया. माना जा रहा है कि इस जोखिम के पीछे धामी का मैनेजमेंट स्कील उनके जेहन में रहा होगा.
पश्चिम बंगाल पर निशाना
राजनीतिक पंडितों की निगाह में बीजेपी ने जिन कारणों से तीरथ सिंह रावत से कमान लेकर पुष्कर धामी का चेहरा सामने किया है, वही कारण वह पश्चिम बंगाल में भी लागू करवाना चाहेगी. यानी, उत्तराखंड में उपचुनाव न करवा पाने की जो स्थिति बताई गई, वह स्थिति तो पश्चिम बंगाल के लिए भी हो सकती है. वहां भी कोरोना संक्रमण का तर्क काम करेगा और वहां भी तुरंत चुनाव नहीं कराया जा सकता. ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी के सामने भी संकट खड़ा होगा और अगर पश्चिम बंगाल में भी उपचुनाव नहीं हुए तो ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.
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