विशेष रिपोर्ट – महविश फ़िरोज़ बचपन .यही समय होता है जब माता पिता की ज़िम्मेदारी सबसे अहम होती है। संतान के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास में भी तेज़ी होती है । डिजिटल युग में आज मोबाइल , कम्प्यूटर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे नए-नए सामानों का आकर्षण, ज़िद्दी स्वभाव बनना, बड़ों का कहा ना मानना आदि कई ऐसी चीज़ें होती हैं, जिनकी आदत बचपन में ही सुधारी जा सकती है। इसमें माता-पिता की भूमिका ही उन्हें भविष्य के लिए तैयार करती है। कैसे बच्चों का व्यवहार आकार लेते है और कौन-सी दिशा उन्हें भविष्य के लिए तैयार करेगी, पढ़िए महविश फ़िरोज़ की ये
स्पेशल रिपोर्ट – हमेशा सहारा देना ज़रूरी नहीं
बच्चों की हर समय मदद करना या उन्हें सहारा देना भी उनके बिगड़ने का कारण बनता है। बच्चों को होमवर्क में मदद करना, दोस्त बनाने में मदद करना, पज़ल सॉल्व करने में मदद करना, रोने के डर से खेल में जिता देना, छोटा समझकर खेल में दोबारा मौक़ा देना आदि ये व्यवहार उनकी आदत ख़राब करता है। इसके अलावा ज़रा-ज़रा बात में उनके पास जाना या मदद के लिए पूछना उन्हें निर्भर बना देता है। इससे वे मुश्किल काम को टालने के आदि बन जाते हैं कि ये काम तो आप कर ही देंगे।समाधान. हर समय उन्हें जिताने की कोशिश ना करें, हार देखना भी ज़रूरी है। बच्चों को कोई कार्य सौंपे तो उन्हें बताएं कि ये उन्हें ख़ुद करना होगा। हर समय मदद के लिए उपलब्ध ना रहें। यदि वे मदद मांगते हैं और आपको लगता है कि उन्होंने कोशिश नहीं की है तो मदद ना करें, उन्हें कहें कि आप अभी व्यस्त हैं। सीधे मना करना भी कई बार मुश्किल भरा होता है। हां, अगर सच में ज़रूरत है तो मदद की जा सकती है, लेकिन अगली बार उन्हें ख़ुद उस कार्य को करना होगा ये साफ़ कर दें।
अधिक सरंक्षण मुश्किलें बढ़ाएगा
माता-पिता बच्चों पर हर समय ध्यान देते हैं। उन्हें अकेले ना छोड़ना, उनके साथ खेलना, हर समय खाने-पीने के लिए पीछे पड़े रहना। छुटपन में ऐसा ज़रूरी भी है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ इन आदतों में बदलाव लाना भी ज़रूरी है। अगर आप हर समय बच्चे की फ़िक्र करेंगे तो उसे आपकी आदत हो जाएगी। वो आपके बिना असुरक्षित महसूस करेगा। इसलिए ज़रूरत से ज़्यादा देखभाल भी बच्चे के भविष्य के लिए रुकावट बन सकती है।समाधान… बच्चों की देखभाल करना ज़रूरी है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ इसमें थोड़ी कमी भी ज़रूरी है, ताकि बच्चे अपना ख़्याल ख़ुद रखने की आदत डाल सकें। खाना लेकर पीछे दौड़ने की बजाय उनसे कहें कि खाना वे ख़ुद परोसकर खा लें। खेलने के लिए दोस्तों के पास जाएं ना कि माता-पिता का साथ ढूंढें।
हर ज़िद पूरी करना ज़रूरी नहीं है|
अभिभावक अपने बच्चों के ज़िद्दीपन से आजकल सबसे ज़्यादा परेशान हैं। चाहे वो खिलौना हो या फिर अन्य सामान। बच्चे सोचते हैं की जि़द करने से उन्हें कुछ भी मिल सकता है। हालांकि इसके ज़िम्मेदार माता-िपता ख़ुद हैं। यदि आप बच्चों की एक बार ज़िद पूरी करते हैं, तो वे हर बार अपनी बात मनवाने की उम्मीद रखते हैं। ऐसे में बड़ों को सीमा निर्धारित करना ज़रूरी है। हर चीज़ दिलवा देना, मुंह से कुछ निकला नहीं कि वो सामने हाज़िर कर देना, दूसरों के सामने बेइज़्ज़ती ना हो इसलिए बच्चे की मांग फटाफट पूरी करना। ये सब सही नहीं है।समाधान… बच्चों को पैसों का महत्व समझाना बेहद ज़रूरी है। उन्हें पता होना चाहिए कि कौन-सी चीज़ ज़रूरी है या किसकी ज़रूरत अभी नहीं है। समय-समय पर माता-पिता उन्हें ख़ुद ज़रूरी सामान या खिलौने आदि ख़रीद कर देते ही हैं। इसके अलावा कभी-कभी जब माता-पिता को लगे कि बच्चा सही चीज़ लेने के लिए कह रहा है तो उसे वो दिलवाई जा सकती है, लेकिन फिज़ूल सामान के लिए साफ़ मना करना और ‘ना’ पर टिके रहना ज़रूरी है।
निराश करना भी ज़रूरी है
बच्चे अपनी बात मनवाना बख़ूबी जानते हैं। लेकिन यदि उनकी बात ना मानी जाए तो वे निराश व दुखी हो जाते हैं। ऐसे में अभिभावक उनकी हर बात मान लेते हैं, जो कि ग़लत है। यही आदत उनकी बड़े होने पर भी रहती है।समाधान… बच्चा यदि निराश होकर बैठा है वो भी सिर्फ़ इस वजह से कि आपने उसके मन का काम नहीं किया, तो इसमें कोई दिक़्क़त नहीं है। बच्चे को दुखी देखकर उसकी बात ना मान लें। निराशा को स्वीकार करना बच्चे को भविष्य में भावनात्मक तनाव से निपटने में काम आएगा। इसलिए बिना ग्लानि महसूस करे वही करें जो सही है।