उत्तराखंड की राजनीती में नौकरशाही हमेशा केंद्र में रही है। राज्य बनने के बाद से आज तक सचिवालय के बाबुओं से लेकर विभाग के प्रमुख सचिव , सचिव , और तमाम अहम किरदार मंत्रियों , विधायकों और माननीयों के टारगेट पर रहते रहे हैं। घोषणाओं के सफल क्रियान्वयन की बात हो या योजनाओं की फ़ाइल पर चिड़िया बिठा कर उसे रफ़्तार देना हो , मुख्यमंत्री दरबार में शिकायतों की लम्बी लिस्ट हमेशा ताज़ा रहती है।
अब 2022 में युवा मुख्यमंत्री धामी का राज कायम हो चुका है। तमाम सीनियम मंत्री ऐसे हैं जिन्हे लगता है कि आज भी सरकार पर ब्यूरोक्रेसी का दबदबा जनता से जुडी उम्मीदों पर भारी पड़ता है। लिहाज़ा अब मोर्चा खुल गया है और सबसे दिग्गज कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने इसकी अगुवाई करते हुए सीएम दरबार में प्रस्ताव भी रख दिया है।
सतपाल महाराज, कैबिनेट मंत्री
मेरा खुद मानना है कि जो अफसर आपके साथ काम कर रहा है, उनकी सीआर लिखने का अधिकार मिलना ही चाहिए। हम यह बात मुख्यमंत्री के संज्ञान में भी ला चुके हैं। जल्द ही इसके परिणाम भी दिखाई देंगे।
सौरभ बहुगुणा, कैबिनेट मंत्री
हली पारी में ताबड़तोड़ बैटिंग करने वाले धामी के तेवर भी सब देख चुके हैं। लिहाज़ा लगता है कि ये मुद्दा भी उनके संज्ञान में पहले से है क्योंकि जिस तरह से तमाम मंत्रियों ने खुलकर महाराज के सुर में सुर मिलाया है उसके बाद नज़र मुख्यमंत्री पर आ टिकी है
पुष्कर सिंह धामी सरकार के मंत्री नौकरशाहों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) लिखने का अधिकार मांगने के लिए लामबंद वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। अन्य मंत्रियों ने भी महाराज की मुहिम से सहमति जताई है।
धामी सरकार की 24 मार्च को हुई पहली कैबिनेट बैठक में महाराज ने इस मुद्दे को उठाया था। तब मुख्यमंत्री ने इस पर बाद में चर्चा करने की बात कहकर सभी को शांत कर दिया। सोमवार को विधानसभा में महाराज ने स्पष्ट कहा कि नौकरशाही को बेलगाम होने से बचाने के लिए मंत्रियों को एसीआर लिखने का अधिकार देना जरूरी है।
महाराज ने कहा कि यूपी, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार में मंत्रियों को यह अधिकार है, लेकिन उत्तराखंड में नहीं है। यह दुभार्ग्यपूर्ण है। कई मंत्रियों ने नाम न छापने की शर्त पर महाराज की मुहिम का समर्थन किया।
एनडी तिवारी सरकार में मंत्रियों को मिला था अधिकार :
उत्तराखंड में एनडी तिवारी सरकार में मंत्रियों को नौकरशाहों की एसीआर लिखने का अधिकार था, लेकिन इसके बाद यह खत्म कर दिया गया। नौकरशाहों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट सीधे मुख्यमंत्री को भेजे जाने लगी।
मंत्री और नौकरशाहों में हो चुका है विवाद: वर्ष 2020 में तत्कालीन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य और सचिव वी षणमुगम के बीच आउटसोर्स कर्मचारियों के भर्ती के लिए चयनित एजेंसी को लेकर विवाद हुआ था। निदेशक ने सचिव की अनुमति के बगैर फाइल देने से इनकार कर दिया था। विवाद बढ़ने पर षणमुगम ने यह विभाग खुद ही छोड़ दिया था। तत्कालीन स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल ने गैरसैंण विकास प्राधिकरण की बैठक बुलाई पर उसमें अफसर आए ही नहीं।
मुख्यमंत्री का होता है अंतिम फैसलाकार्मिक विभाग के अनुसार सचिव अपनी सीआर मुख्य सचिव को भेजते हैं। टिप्पणी के बाद इसे मुख्यमंत्री को भेजा जाता। सीआर पर अंतिम राय मुख्यमंत्री की ही होती है। वे टिप्पणी हटा भी सकते हैं और उसे जोड़े भी रख सकते हैं।
महाराज वरिष्ठ मंत्री हैं, स्वाभाविक है कि इस मसले पर बैठकर बातचीत करेंगे। कभी-कभी हमने भी नौकरशाहों के असहयोगी रवैये को महसूस किया। हमें जनता की अपेक्षाएं पूरी करनी हैं। जो भी निर्णय सरकार लेती है, अफसर उन्हें धरातल पर उतारें। किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं होगी।
प्रेमचंद अग्रवाल, कैबिनेट मंत्री
तो क्या नौकरशाही पर लगाम और सरकार के मंत्रियों की कोशिशों के बीच फिर कोई अघोषित तनाव भरा संकट अफसरों और माननीयों के बीच पनप रहा है ये गौर करने वाली बात होगी। सच तो ये है कि प्रदेश में कई ऐसे काबिल IAS और PCS अधिकारी हैं जो किसी निजी खुन्नस और व्यक्तिगत अहम के टकराव की वजह से अपनी उस कुर्सी से दूर कर दिए गए हैं जिसके वो असल हक़दार हैं।