


1974 का एक वाक्या साझा करते हुए नेगी जी बताते हैं कि जब अपने पिता के आँखों के ओप्रशन के लिए हर्बर्टपुर में लेहमैन अस्पताल गए हुए थे ,उस दौरान बारिश का मौसम थी। एकाएक उनके मन उनके माँ के संघर्षो से जूझने की हकीकत दिल ओ दिमाग पर मचलने लगी और इसी उधेड़बुन में एक गीत ने जन्म लिया और अस्तित्व में आया नेगी दा का पहला गीत – ‘सैर बसग्याल बोंण मा, रुड़ी कुटण मा ,ह्यूंद पिसी बितैना, म्यारा सदनी इनी दिन रैना।’
1976 के साल उन्हें आकाशवाणी में casual artist के तौर पर गाने का अवसर मिला , धीरे धीरे उनकी आवाज को काफी पसंद किया जाने लगा जिसके फलस्वरूप आकाशवाणी, लखनऊ ने नेगी दा को 10 अन्य कलाकारों के साथ अत्यधिक लोकप्रिय लोक गीतकार (Most Popular Folk Singers) के रूप में सम्मानित किया है यह पुरस्कार फरमाइश-ए-गीत के लिए आकाशवाणी को लोगों द्वारा भेजे गए प्राप्त पत्रों की संख्याओं पर आधारित हुआ करता था।
नरेंद्र सिंह नेगी के संगीत जगत के सफर की शुरुवात ‘गढ़वाली गीतमाला’ से शुरु हो कर आज तक निरंतर बहती ही जा रही है। गढ़वाली गीतमाला को 10 अलग अलग भागों में में रिलीज़ किया गया था इसके बाद नेगी दा ने 10 गीतों की एक एल्बम रिलीज़ की जिसे बुरांश के नाम से जाना जाता है इसी को नेगी दा की पहली म्यूजिक एल्बम भी माना जाता है। इस एल्बम के सभी गीतों को लोगो ने काफी पसंद किया गया। इसी एल्बम में नरेंद्र सिंह नेगी जी का पहला गीत सैरा बस्ग्याल को भी शामिल किया था इसके आलावा तेरा रूप की झोळ, बरखा झुकी ऐयेगी जैसे शानदार गीत भी शामिल थे।
उनके पॉपुलर गीतों ओर एलबम्स की बात करें तो छुयाल, दगिड्या, घस्यारी, हल्दी हाथ, होसिया उमर, धारी देवी, कैथे खोज्यानी होली, माया को मुण्डारो, नौछमी नारेणा, नयु नयु ब्यो छो, रुमुक, सल्यान सयाली, समदोला का द्वी दिन आज भी उनके दुनियाभर में फैले लोकप्रिय है। नेगी दा उत्तराखंड साहित्य ओर संगीत जगत एक कभी न भुलाये जा सकने वाला पहलू हैं उनके जीवन के कहीं सारे अनसुने किस्से और कहानियां आपको हसाएंगे, रुलायेंगी और प्रेरित करेंगे ।
नरेंद्र सिंह नेगी का पारिवारिक परिचय –
नरेंद्र सिंह नेगी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव पौड़ी के विद्यालय से सम्पन की और अपनी स्नातक के लिए वह अपने चचेरे भाई अजीत सिंह नेगी के साथ रामपुर चले गए। जहा उन्होंने अपने चचेरे भाई जो कि संगीत के प्रोफेसर थे उन्हीं से आपने तबला बादन भी सीखा, और यही से उनकी रूचि संगीत जगत एवं गायन की ओर बढ़ती गयी जो कि आजतक कायम है। नेगी दा की जीवनसंगिनी का नाम उषा नेगी है जो बीते कई सालों से अपने प्रतिभा संपन्न सरस्वती पुत्र पति के कदम से कदम मिलाते हुए साथ दे रही हैं। नेगी दम्पति की दो संताने हैं एक पुत्र कविलास नेगी व एक पुत्री रितु नेगी। आज पूरा परिवार न सिर्फ संगीत को समर्पित है बल्कि देश दुनिया में पहाड़ की सांझी विरासत को संजोने के लिए सम्मान भी प्राप्त कर रहा है।
नरेंद्र सिंह नेगी जी संगीत व्यवसाय –
अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के पश्च्यात नेगी जी को जिला सूचना अधिकारी के पद पर तैनाती मिली परन्तु अपनी संगीत की ललक को उन्होंने यहाँ भी कायम रखा फलस्वरूप सरकारी नौकरी के साथ साथ उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के प्रादेशिक केंद्र से गढ़वाली गाने भी गए ।
वह सूचना और जनसंपर्क विभाग में जिला सूचना अधिकारी के पद पर कार्य भी कर चुके हैं।