उत्तराखंड के 18 कृषि और हस्तशिल्प उत्पादों को जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) मिलेगा। इसमें मंडुवा, झंगोरा, गहत दाल, लाल चावल को भी वैश्विक पहचान मिलेगी। इसके लिए केंद्रीय उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग की टीम ने प्रमाणीकरण प्रक्रिया के तहत अंतिम सुनवाई शुरू कर दी है
इससे पहले केंद्रीय टीम ने महानियंत्रक डॉ. उन्नत पी. पंडित की अगुवाई में कृषि मंत्री गणेश जोशी से मुलाकात की। कृषि मंत्री ने कहा कि पहाड़ी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए श्री अन्न योजना के तहत कार्य योजना बनाई जा रही है। इससे ग्रामीण आजीविका को अधिक से अधिक लाभ हो सकेगा। उन्होंने केंद्रीय टीम को 13 से 16 मई तक देहरादून में आयोजित होने वाले श्री अन्न महोत्सव के बारे में भी जानकारी दी। बताया कि प्रदेश में जीआई बोर्ड के गठन की प्रक्रिया चल रही है।
केंद्रीय उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के महानियंत्रक ने बेरीनाग चाय के पौध व बीज अन्य क्षेत्रों को न भेजने का सुझाव दिया। इसके अलावा उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद को डीआरडीओ के साथ मिलकर मोटे अनाज का एक ऐसा केक बनाना चाहिए, जो बॉर्डर में सैनिकों के साथ गर्भवतियों के लिए भी उपयोगी हो। मुलाकात के दौरान कृषि मंत्री ने केंद्रीय टीम को जैविक उत्पाद भेंट किए। इस मौके पर जैविक उत्पाद परिषद के प्रबंध निदेशक विनय कुमार, लक्ष्मीकांत, आईडी भट्ट, प्रशांत, शिवा कुमार आदि मौजूद थे।
कृषि उत्पाद लाल चावल, बेरीनाग चाय, गहत, मंडुआ, झंगोरा, बुरांश जूस, काला भट्ट, चौलाई, अल्मोड़ा की लाखोरी मिर्च, पहाड़ी तोर दाल, माल्टा, लीची व आडू के अलावा पांच हैंडीक्राफ्ट उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग की प्रक्रिया अंतिम दौर में पहुंच गई है। उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद की ओर से 18 उत्पादों को जीआई टैग देने के लिए केंद्रीय उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के पास आवेदन किया गया था।
जीआई टैग के माध्यम से किसी विशेष उत्पाद को भौगोलिक पहचान दी जाती है। टैग मिलने के बाद उस उत्पाद को इस बात की सुरक्षा मिल जाती है कि उसकी नकल करते हुए उत्पादन कर उसे विशेष की तरह अन्य कोई व्यक्ति, संस्था अथवा देश पेश नहीं कर सकता।