इलेक्शन कमीशन के सितंबर 2021 की ताज़ा जानकारी बताती है कि आज देश में कुल 2858 रजिस्टर्ड दल हैं। चुनाव आयोग ने सिर्फ 8 पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया है और करीब 54 राजनीतिक दलों को राज्यस्तरीय पार्टी होने की मान्यता प्राप्त है। आम आदमी पार्टी को भी राज्य स्तरीय पार्टी का ही दर्जा मिला हुआ है। वहीं 2796 ऐसी पार्टियां हैं, जो रजिस्टर्ड तो हैं, लेकिन उन्हें मान्यता हासिल नहीं है।
10 साल में सीख गई पार्टी – गिरकर उठना और उठकर चलना और आगे बढ़ना
आम आदमी पार्टी का राजनीतिक सफर 2 अक्टूबर 2012 से शुरू हुआ है और अब पार्टी अपने पॉलिटिकल करियर के 10 साल पूरे करने वाली है। AAP दिल्ली में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली थी, पार्टी ने अपना राजनीतिक डेब्यू भी दिल्ली से ही किया। साल 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले AAP ने ‘बिजली पानी आंदोलन’ चलाया। अरविंद केजरीवाल ने तब शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ धरना दिया और 14 दिनों तक भूख हड़ताल की। आम आदमी पार्टी को पहली बड़ी सफलता हाथ लगी, 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में। AAP ने 70 में से 28 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। इसके बाद कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन वो ज्यादा नहीं चल सकी। फरवरी, 2014 में अरविंद केजरीवाल ने पूर्ण बहुमत की सरकार ना होने की वजह से इस्तीफा दे दिया।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार से इस्तीफा देने के बाद जोश में आकर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया, बिना ये देखे कि पार्टी का कैडर क्या है और सामने कौन है। AAP ने 2014 लोकसभा चुनाव में देशभर में 400 उम्मीदवारों को उतारा, लेकिन इनमें से सिर्फ 4 कैंडिडेट ही जीत सके। ये चारों कैंडिडेट पंजाब से ही थे।
इसने आम आदमी पार्टी को ये एहसास करा दिया कि पंजाब में AAP का भविष्य सुनहरा हो सकता है। पार्टी अपने गठन के 2 साल के अंदर ही दो राज्यों में कमाल कर चुकी थी, दिल्ली में सरकार बना चुकी थी और पंजाब में लोकसभा चुनाव में कमाल कर चुकी थी।
इसके बाद 2015 में दिल्ली में AAP ने 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। केजरीवाल सरकार ने बिजली, पानी, शिक्षा पर फोकस किया और इसे देशभर में ‘दिल्ली मॉडल ऑफ गुड गवर्नेंस’ के नाम से प्रचारित किया।
2015 से 2020 तक पार्टी ने अलग-अलग राज्यों और दूसरी इकाइयों में चुनाव लड़े, लेकिन पार्टी को सफलता नहीं मिली। 2019 लोकसभा चुनाव में भी AAP को करारी हार मिली, पार्टी दिल्ली की सभी 7 सीटें तो हारी ही, वहीं पंजाब में भी सिर्फ भगवंत मान ही जीत सके, बाकी सभी हार गए,
लेकिन 2020 में आम आदमी पार्टी ने फिर चौंकाया और दिल्ली विधानसभा में फिर 70 में 62 सीटें जीतकर BJP को धूल चटा दी। बीते दिनों 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में AAP ने 4 राज्यों में दमखम से चुनाव लड़ा। पंजाब में AAP ने इतिहास रच दिया, वहीं उत्तराखंड और गोवा में भी पार्टी ने अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है।
दूसरे क्षेत्रीय पार्टियों से आम आदमी पार्टी कैसे अलग?
आम आदमी पार्टी को एक बात जो खास बनाती है वो ये कि ये पार्टी किसी भी पहचान, भाषा, संस्कृति, समुदाय, जाति, धर्म, क्षेत्र से जुड़ी पार्टी नहीं है, बल्कि ये एक राष्ट्रीय आंदोलन से निकली पार्टी है, जिसमें देश के सभी हिस्सों से आए लोग शामिल हुए। पार्टी ने अपने प्रतीकों के रूप में भी महात्मा गांधी, बाबा साहेब अंबेडकर और भगत सिंह जैसी शख्सियतों को चुना है।
पंजाब चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी ने अंबेडकर और भगत सिंह को और ज्यादा अहमियत दी। इसकी वजह ये है कि अंबेडकर और भगत सिंह दोनों राष्ट्रीय स्तर के नेता रहे हैं। पूरे देश के युवाओं का खासा रुझान भगत सिंह की तरफ है, तो वहीं दलित आबादी अंबेडकर से खुद को कनेक्ट करती है।
कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
तीन में से कोई भी एक शर्त पूरी होने पर चुनाव आयोग किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा देता है।
1-कोई भी दल, जिसे चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो।
2-पार्टी तीन अलग-अलग राज्यों में मिलाकर लोकसभा की 2% सीटें (11 सीटें) जीत ले। ये 11 सीटें तीन अलग-अलग राज्यों से होना चाहिए। 3-यदि कोई पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधानसभा में चार राज्यों में 6% फीसदी वोट हासिल कर ले।
तीसरी शर्त के मुताबिक पार्टी को 4 राज्यों में कम से कम 6% वोट चाहिए होते हैं। AAP को दिल्ली में 55%, पंजाब में 42%, गोवा में 6.77% वोट मिले थे। हालांकि, उत्तराखंड में पार्टी को सिर्फ 0.3% वोट ही मिल सके। ऐसे में आगे होने वाले राज्यों में पार्टी को किसी और एक राज्य में 6% वोट हासिल करना होगा और फिर अगले लोकसभा चुनाव में कम से कम 4 सीटें जीतनी होंगी। इसके बाद राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो जाएगा।