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सफेद बुलबुल के बारे में कार्बेट पार्क के डायरेक्टर राहुल ने कहा कि ऐसा जेनेटिक म्यूटेशन के कारण होता है. ऐसे जीव दुर्लभ ही देखने को मिलते हैं. इस तरह का म्यूटेशन अन्य जानवरों में भी दिखाई देता है. भारतीय वन्य जीव संस्थान के डायरेक्टर और पक्षी विशेषज्ञ धनंजय मोहन कहते हैं कि भारत में ऐसा ही केस सालों पहले मोर में भी देखने को मिला था. कई साल पहले इन मोरों को जू में लाकर साइंटिस्टों ने संरक्षित करने की भी कोशिश की थी.
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मोहन ने म्यूटेशन के बारे में बताते हुए कहा कि इन मोरों में जब मेटिंग कराई गई, तो कुछ के अंडों से तो सामान्य बच्चे पैदा हुए लेकिन कुछ में सफेद मोर भी पैदा हुए. मोहन का कहना है कि ये म्यूटेशन के कारण होता है, ऐसे पक्षी लंबे समय तक सर्वाइव भी नहीं कर पाते.
कैसे मिली सफेद बुलबुल?
कार्बेट के ढेला ज़ोन में पर्यटकों को जंगल सफारी कराने के दौरान नेचर गाइड सचिन चौहान की नजर सबसे पहले सफेद बुलबुल पर गई. उन्होंने इसकी तस्वीरें भी लीं और इसकी जानकारी पार्क के डायरेक्टर को दी. कार्बेट में हिमालयन बुलबुल की छह प्रजातियां पाई जाती हैं. हमेशा जोड़े में रहना पसंद करने वाले इस पक्षी का व्यवहार मिलनसार माना जाता है. इसकी लंबाई करीब 18 सेंटीमीटर और वजन तीस ग्राम के आसपास होता है.
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