विशेष रिपोर्ट – फ़िरोज़ गाँधी
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम आ रहे हैं और सामने आ रहा है बसपा, उक्रांद, निर्दलीय और सपा के प्रत्याशियों का प्रदर्शन , उम्मीद के मुताबिक कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है ऑटो वहीँ क्षेत्रीय दल भी अच्छे प्रदर्शन के साथ सामने उभरे हैं। आज देखना दिलचस्प है कि 2017 में हाशिए पर पहुँच गए इन दलों का प्रदर्शन आखिरी ईवीएम खुलने तक कैसा रहेगा।
प्रदेश में बसपा ने 60, सपा ने 56 और उक्रांद ने 46 प्रत्याशी खड़े किए थे । इसके अलावा 260 अन्य प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में ताल ठोंका था । कांग्रेस भाजपा को छोड़ दें तो बसपा और यूकेड़ी ही दो ऐसे राजनीतिक दल रहे हैं, जिनका विधानसभा में प्रतिनिधित्व रहा है। राज्य गठन के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर वर्ष 2012 तक के चुनाव में इन दलों के प्रत्याशी विधानसभा तक पहुंचे। वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10.93 मत प्रतिशत लेकर सात सीटों पर कब्जा जमाया था। 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11.76 फीसद मत प्रतिशत के साथ आठ सीटें जीती। वर्ष 2012 में बसपा का मत प्रतिशत तो बढ़ कर 12.19 प्रतिशत तक पहुंचा, लेकिन सीटों की संख्या घट कर तीन पहुंच गई। वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा को केवल 6.98 प्रतिशत मत मिले और उसकी झोली खाली रही।उक्रांद के प्रदर्शन पर नजर डालें तो वर्ष 2002 में गठित पहली विधानसभा में दल के चार प्रत्याशी विधायक के रूप में विधानसभा तक पहुंचे। उक्रांद को इन चुनावों में 5.49 प्रतिशत वोट मिले। इस कारण उक्रांद को राजनीतिक दल के रूप में मान्यता भी मिली। वर्ष 2007 में हुए दूसरे चुनाव में उक्रांद को पिछले चुनाव की तरह 5.49 प्रतिशत मत मिले मगर उसकी सीटों की संख्या चार से घट कर तीन रह गई। इसके बाद पार्टी के बड़े नेता जनता के रुझान को बरकरार नहीं रख पाए और पार्टी का पतन शुरू हो गया। वर्ष 2012 में पार्टी को मात्र एक सीट पर संतोष करना पड़ा। वर्ष 2017 में पार्टी को कोई सीट नहीं मिली और उसका मत प्रतिशत एक प्रतिशत से भी नीचे गिर गया। इस बार ये दोनों दल बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं। वहीं, पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी आप ने भी चुनावों में पूरी ताकत झोंकी। प्रदेश में हुए चारों विधानसभा चुनावों में लडऩे वाली सपा इस बार कुछ सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। खैर नतीज़ा तो जनता के सामने आ ही रहा है अब देखना ये है कि सरकार का गणित किसके लिए सटीक साबित होने जा रहा है.