फ़िल्म,मीडिया,पुलिस, साहित्यकार,ब्यूरोक्रेट क्षेत्र की बड़ी बड़ी हस्तियां हुई शामिल
पूर्व डीजीपी अशोक कुमार और आलोक लाल के सफ़ल प्रयासों से सम्पन्न हुआ क्राइम साहित्य फेस्टिवल
उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के सीईओ बंशीधर तिवारी और नोडल अधिकारी डॉ.नितिन उपाध्याय ने उत्तराखंड की नई फिल्म पॉलिसी को मजबूती से पेश किया
प्रसिद्ध फिल्मकार प्रकाश झा,अनुभव सिंहा,अभिनेता आकाश खुराना, दा साबरमती के लेखक अविनाश सिंह तोमर,उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक ने अपने अनुभव साझा किए
वीरप्पन ऑपरेशन के प्रभारी रहे पूर्व डीजी सीआरपीएफ विजय कुमार, यूपी के पूर्व डीजी (यूपी एसटीएफ के संस्थापक प्रभारी रहे)एवं सीबीआई के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर अरुण कुमार,सुपर कॉप नवनीत सिकेरा और क्राइम की दुनिया के वरिष्ठतम पत्रकार और आज तक के क्राइम संपादक शम्स ताहिर खान मुख्य केंद्र रहे
वरिष्ठ पत्रकार व अभिनेता सतीश शर्मा,रेडियो जॉकी और ओहो रेडियो के संस्थापक काव्या, सिनमिट कम्युनिकेशन के दलीप सिंधी और राजीव मित्तल के आयोजन को सफल बनाने में अहम योगदान दिया।
न्याय पर पैनी नजर – सीएलएफआई 2024 के अंतिम दिन भी अपराध और सजा के बीच जटिल संबंध को दर्शाया गया
मो.सलीम सैफी
न्यूज़ वायरस नेटवर्क
देहरादून : – भारतीय अपराध साहित्य महोत्सव (सीएलएफआई) ने देहरादून के हयात सेंट्रिक में अपने आयोजन के दूसरे दिन भी दर्शकों की दिलचस्पी कायम रखा। महोत्सव के भागीदार लेखकों, फिल्म निर्माताओं, कानून व्यवस्था अधिकारियों और पत्रकारों ने एक मंच पर अपराध, न्याय और साहित्य के बीच के अंतरसंबंध को देखने का प्रयास किया।दिन की शुरुआत एक दिलचस्प सत्र से हुई – ‘‘सिद्धू मूसे वाला को किसने मारा? लॉरेंस बिश्नोई एंगल’’। इसमें जुपिंदरजीत सिंह और सिद्धांत अरोड़ा शामिल थे। वक्ताओं ने इस हाई-प्रोफाइल मामले के खौफनाक मंजर पर चर्चा करते हुए भारत में संगठित अपराध के बारे में जानकारी दी।इसके बाद का सत्र था ‘‘स्मरणीय हैं विजय रमन – एक सज्जन पुलिस अधिकारी जिन्होंने पान सिंह तोमर का खत्म किया’’। यह दिवंगत पुलिस अधिकारी की शानदार विरासत को श्रद्धांजलि थी। इस सत्र में आलोकलाल, के विजय कुमार और वीना विजय रमन ने भाग लेकर यह दिखाया कि बैज के पीछे एक इंसानियत है।दोपहर के सत्रों में एक था ‘‘बंदूक, हिम्मत और कलम – मिर्जापुर के लेखक से बातचीत’ जिसमें अविनाश सिंह तोमर ने गंभीर अपराध कथा के पीछे की रचना प्रक्रिया को समझने का प्रयास किया है।स्वयं अशोक कुमार ने ‘‘प्रॉक्सी वॉर्स – आईएसआई और अन्य संगठनों के खतरानक खेल’ में मुख्य भूमिका निभाई। इसमें विश्वव्यापी खुफिया एजेंसियों के गुप्त कारनामों और रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया ,फेस्टिवल के अध्यक्ष अशोक कुमार ने कहा, ‘‘हम इस फेस्टिवल के माध्यम से सार्थक संवाद का मंच बनाना चाहते हैं जहां से बड़े बदलाव की प्रेरणा मिलेगी और अपराध और न्याय की समझ बढ़ेगी।’’फेस्टिवल के निदेशक आलोकलाल ने आयोजन के दूसरे दिन की शानदार सफलता पर कहा, ‘‘हम ने आज के सत्रों में देखा कि किस तरह दमदार कहानी से जटिल मुद्दों को उजागर कर उन लोगों को पहचान और प्रशंसा दे सकते हैं जो न्याय व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिन रात एक करते हैं।’’
अन्य विशेष सत्र –
– डिटेक्टिव्स डेन डिस्कशन – देहरादून में हुई भयानक दुर्घटना पर इस चर्चा में अनूप नौटियाल और एसएसपी देहरादून के साथ सतीश शर्मा शामिल थे।
– मैडम कमिश्नर – मीरान बोरवणकर की इस पुस्तक पर सुनीता विजय के साथ विशेष सत्र।
– फैंग्स ऑफ डेथ – द ट्रू स्टोरी ऑफ द केरल स्नेकबाइट मर्डर – अलोकलाल और मानसलाल की इस रचना पर एक चर्चा, जिसका संचालन गार्गी रावत ने किया।
– उग्रवाद की सच्ची घटनाओं पर आधारित आगामी पुस्तक कोडनेम स्टैलियन के मुखपृष्ट का अनावरण।
– पटकथा लेखन पर आकाश खुराना की कार्यशाला।
– सुरेंद्र मोहन पाठक और नितिन उपाध्याय के बीच बातचीत।
‘अंडरकवर ह्यूमर – व्हाई कॉप कैरेक्टर्स शाइन इन स्लैपस्टिक कॉमेडी’ के साथ दिन का समापन हुआ। इसमें कविता कौशिक और अशोक कुमार शामिल थे और संचालन मानसलाल ने किया। तीनों ने इस चर्चा में यह जानने की कोशिश कि परदे पर हास्य से किस तरह पुलिस अधिकारियों का मानवीय चेहरा दिखता है। यह पुलिस अधिकारियों की चुनौतियों और उपलब्धियों पर नया नजरिया पेश करता है।
यह महोत्सव हंस फाउंडेशन, उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद (यूएफडीसी) और यूपीईएस के समर्थन से बहुत सफल रहा। भविष्य में भी रचनात्मकता और अपराध की रोकथाम के बीच तालमेल बनाने का प्रयास करेगा।