सरफराज सैफी
एंकर / वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आ गए है। दिल्ली शराब घोटाला मामले में ईडी ने इसी साल 21 मार्च को गिरफ्तार किया था इसके बाद से वो जेल में थे, लोकसभा चुनाव के समय कुछ दिनों के लिए उन्हें अंतरिम राहत मिली थी, लेकिन फिर से जेल जाना पड़ा था लेकिन अब केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी। जमानत के बाद जेल से बाहर आए केजरीवाल ने बीजेपी पर जमकर प्रहार किया,केजरीवाल ने कहा कि जेल की मोटी-मोटी दीवारें, जेल की सलाखें उनके हौसले को कमजोर नहीं कर सकतीं उनकी ताकत पहले से सौ गुना बढ़ गई है। तिहाड़ से निकलकर रोड शो करते हुए केजरीवाल अपने आवास पहुंचे। इस दौरान इस दौरान बारिश के बीच भी आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता पोस्टर, बैनर और पार्टी के नीले-पीले झंडों के साथ जेल के बाहर मौजूद थे। खुशी से झूमती भीड़ केजरीवाल के समर्थन में नारे लगाती नजर आई।
केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ जमानत दी है। कोर्ट ने बेल की शर्तें तय की कोर्ट ने जमानत के लिए वहीं शर्तें लगाई, जो ईडी केस में बेल देते वक्त लगाईं थीं। केजरीवाल को इन शर्तों का पालन करना होगा।माना जा रहा है कि रिहाई की शर्तों की वजह से केजरीवाल की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं, केजरीवाल को सरकार चलाने में मुश्किलें झेलनी पड़ सकती है। लेकिन, केजरीवाल की रिहाई से पार्टी नेता से लेकर कार्यकर्ता तक खुश हैं। सीएम आवास से लेकर पार्टी दफ्तर तक में जश्न मनाया है। केजरीवाल के रिहाई पर दिल्ली की सियासी पारा भी हाई हो गई है, आम आदमी पार्टी जहां इसे राजनीतिक साजिश बता रही है तो वहीं बीजेपी कह रही है जेल वाला सीएम अब बेल वाला सीएम हो गया है।
दरअसल 12 जुलाई को ईडी केस में केजरीवाल को जमानत मिल गई थी, लेकिन सीबीआई की गिरफ्तारी की वजह जेल से रिहाई नहीं हो सकी। अब सीबीआई मामले में भी केजरीवाल जमानत मिलने से आम आदमी पार्टी खुश तो है लेकिन के केजरीवाल की ये रिहाई कई शर्तों के साथ मिली है। जिससे केजरीवाल को सरकार चलाने में मुश्किलें आ सकती है वो शर्तें है कि जेल से बाहर आने के बाद केजरीवाल किसी भी फाइल पर दस्तखत नहीं कर पाएंगे, जब तक ऐसा करना जरूरी ना हो।केजरीवाल के दफ्तर जाने पर भी पाबंदी रहेगी वे ना तो मुख्यमंत्री कार्यालय और ना सचिवालय जा सकेंगे।इस मामले में केजरीवाल कोई बयान या टिप्पणी भी नहीं कर सकते हैं।किसी भी गवाह से किसी तरह की बातचीत नहीं कर सकते हैं।इस केस से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल को नहीं मंगा सकते हैं, ना देख सकते हैं।जरूरत पड़ने पर ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे और जांच में सहयोग करेंगे।
केजरीवाल के जमानत के बाद से आम आदमी पार्टी और बीजेपी में जुबानी जंग चल रही है, ये जुबानी जंग तब और तेज हो गई जब अदालत ने अपने आदेश में सीबीआई को तोता बताया। दिल्ली के सीएम केजरीवाल को जमानत देने वाली बैंच के दो में से एक जस्टिस उज्जवल भुइयां सीबीआई को लेकर सख्त टिप्पणियां की। जस्टिस भुइयां ने कहा कि 22 महीने तक सीबाआई ने गिरफ्तारी जरूरी क्यों नहीं समझी लगता है ईडी केस में मिली जमानत नाकाम करने के लिए सीबाआई ने गिरफ्तारी की।जरूरी है कि सीबाआई अपनी पिंजरे में बंद तोते की छवि से बाहर आए।जांच एजेंसी को सीजर की पत्नी की तरह ईमानदार होना चाहिए।सीबीआई को अपनी जांच और कार्रवाई से यह साबित करना चाहिए कि वह एक निष्पक्ष संस्था है।
ये पूरा मामला दिल्ली के एक्साइज पॉलिसी केस से जुड़ा हुआ है।केजरीवाल सरकार ने नई एक्साइज पॉलिसी का ऐलान किया था। कोरोना के दौरान नवंबर 2021 में दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति शुरू की थी। लेकिन लागू होने के कुछ महीनों बाद ही उसमें अनियमितता के आरोप लगने लगे। दिल्ली के एलजी ने कथित अनियमितता की जांच के आदेश दे दिए संयोग से उसके बाद दिल्ली सरकार ने 2022 में नई एक्साइज पॉलिसी को वापस ले लिया। जुलाई 2022 में इस नीति को लेकर बवाल मचा, जिसके बाद एलजी ने सीबीआई को जांच सौंपी। जिसके बाद सीएम केजरीवाल, मनीष सिसोदिया से लेकर एक के बाद एक आम आदमी ही नहीं, बल्कि दूसरे दलों के नेता भी इस मामले में जेल जा चुके हैं। हालांकि, सिसोदिया और संजय सिंह जमानत पर बाहर हैं। अब केजरीवाल भी जमानत पर बाहर आ चुके हैं।
इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान भी चुनाव प्रचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी। लेकिन जमानत की मौहलत खत्म होने के बाद दिल्ली के सीएम को सरेंडर करना पड़ा था। बाद में सीबीआई ने भी 26 जून को उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इस तरह से 156 दिनों बाद और गिरफ्तारी के 177 दिन बाद अब केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को राहत मिली है। आम आदमी पार्टी का जोश हाई है बारिश के दौरान भी आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता घंटों केजरीवाल के बाहर आने का इंतजार करते रहे।केजरीवाल की रिहाई ऐसे वक्त में हुई है। जब हरियाणा विधनसभा चुनाव है। और हरियाणा में अकेले दम पर आम आदमी पार्टी चुनावी मैदान में है। ऐसे में केजरीवाल की जमानत हरियाणा में आम आदमी पार्टी के लिए बूस्टर डोज माना जा रहा है। हाल ही में आप ने कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने पर कांग्रेस को चेतावनी दी थी। आप का कहना था कि हरियाणा में उसे कोई हल्के में नहीं ले सकते। ऐसे में केजरावल के जेल से बाहर आने के बाद कहा जा रहा है कि केजरीवाल कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव में अब तक केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल मोर्चा संभाले देखी गई हैं और केजरीवाल की गैरमौजूदगी में धुआंधार प्रचार कर रहीं।लेकिन अब केजरीवाल के बेल से हरियाणा चुनाव में बड़ा खेल होने की संभावना जताई जा रही है।
दरअसल, हरियाणा में पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार है।सरकार के खिलाफ जो एंटी इनकंबैंसी का वोट है उसका फायदा हमेशा विपक्ष को मिलता है। कांग्रेस वहां अभी विपक्ष की भूमिका में है,लेकिन अब अरविंद केजरीवाल के आने से आप भी मजबूती से दावेदारी पेश करेगी ऐसे में एंटी इनकंबैंसी का वोट बंट सकता है।2019 में एंटी इनकंबैंसी वाला वोट कांग्रेस और जेजेपी में बंट गया था जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ था
केजरीवाल के लिए दिल्ली राजनीतिक कर्मभूमि है, तो हरियाणा उनका अपना गृह राज्य है। अक्सर राजनीतिक कार्यक्रमों में भी केजरीवाल खुद को हरियाणा से जोड़ते आए हैं। केजरीवाल को दिल्ली वालों की नब्ज पहचानने में माहिर माना जाता है केजरीवाल ने हरियाणा के पड़ोसी राज्य पंजाब में भी अपनी पार्टी की सरकार बनवाकर इतिहास बनाया है। अब दिल्ली और पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा की बारी है आप नेता अपने चुनावी प्रचार में इस बात का भी जिक्र कर रहे हैं। केजरीवाल भी अपने चुनावी अभियान में इसे मुद्दा बना सकते हैं और आम जनता में भी इसका असर देखने को मिल सकता है। हरियाणा में आप का फोकस खासकर शहरी और कस्बा इलाकों में ज्यादा है।दिल्ली से सटे गुरुग्राम और फरीदाबाद जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी में आते हैं आप का प्रभाव यहां देखने को मिल सकता है।इसके अलावा, हिसार में आप की पकड़ धीरे-धीरे बढ़ रही है।ये क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों के प्रभाव वाला रहा है, जिससे आप को एक अवसर मिला है।कुरुक्षेत्र और करनाल जिले भी एनसीआर के करीब हैं और आप ने यहां भी अपना आधार बढ़ाने का प्रयास किया है।
एक फैक्ट ये भी है कि हरियाणा में कुछ बड़े नेताओं के परिवार ऐसे हैं, जो नाराज चल रहे हैं इन्हें बीजेपी और कांग्रेस दोनों से टिकट नहीं मिला है। संभव है कि ऐसे नाराज नेता आप के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। आप ने कई विधानसभाओं में ऐसे कैंडिडेट खड़े किए हैं, जो इससे पहले चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं। जाहिर है कि ये प्रत्याशी कांग्रेस को बहुत परेशान करेंगे बीजेपी के विरोधी वोटों में अगर सेंध लगती है तो इसका नुकसान कांग्रेस को भुगतना होगा।
फिलहाल 5 अक्टूबर को विधानसभा का चुनाव होना है।हरियाणा में आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ रही है।ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल की जमानत हरियाणा आप के लिए बूस्टर डोज माना साबित हो सकता है।
सियासी विश्लेषकों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मोदी-शाह की बीजेपी की एक बड़ी हार है। अब केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह तीनों बड़े नेता बाहर हैं और दिल्ली पर एजेंसियों के सहारे कब्जा करने का प्रोजेक्ट फेल हो गया।कोर्ट रूम में लड़ी और जीती गई ये लड़ाई विशुद्ध राजनीतिक थी।जहां एक तरफ अब आम आदमी पार्टी को एक और लड़ाई लड़नी है अपने आप से। ये विचारधारा का संघर्ष है। उन्हे तय करना है कि वो वैचारिक रूप से इंडिया गठबंधन के साथ हैं या मौके पर राजनीतिक मजबूरी के चलते।उन्हे कश्मीर, अल्पसंख्यकों पर हो रहे जुल्म, आरक्षण, जातिवार जनगणना जैसे तमाम मुद्दों पर आत्म मंथन करना है। तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी को भी अपने सियासी रणनीति पर मंथन करना होगा।