रिपोर्ट – फ़िरोज़ गाँधी
6 दिसंबर 1947 को कुलवंत राय के घर में पैदा हुए प्रवीण सोबती किसी पहचान के मोहताज नहीं रहे। बीएसएफ में लंबी सेवाएं देने वाले प्रवीण सोबती को दुनिया भर में महाभारत के प्रवीण के नाम से जाना जाता है। 74 वर्षीय प्रवीण सोबती गांव में पहले कुश्ती दंगल में भाग लेते थे।
बाद में डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो से जुड़कर उन्होंने एशियाई खेलों (1968 मैक्सिको, 1972 म्यूनिख ओलंपिक) में भाग लेकर दो स्वर्ण, एक चांदी और एक कांस्य पदक प्राप्त किए थे। बीएसएफ से बतौर डिप्टी कमांडेंट सेवामुक्ति के बाद उन्होंने महाभारत में भीम की भूमिका निभाई थी। अर्जुन अवार्ड व महाराजा रणजीत सिंह अवार्ड प्राप्त करने वाले प्रवीण आज इस दुनिया से रुखसत हो गए है। उनके देहांत की खबर सुनते ही पैतृक गांव सरहाली में शोक की लहर पैदा हो गई। उनका निधन दिल्ली में स्थित घर में हार्ट अटैक से हुआ।
अर्जुन व महाराजा रणजीत सिंह अवार्ड से सम्मानित किया जा चुकाअमृतसर के खालसा कॉलेज में पढ़ाई करते रहे प्रवीण सोबती उर्फ भीम से जुड़ी जानकारी देते हुए मीडिया को उनके जानने वालों ने बताया कि भीम का नाम कॉलेज के होनहार छात्रों की कतार में रहे। बारहवीं तक की पढ़ाई उन्होंने खालसा कॉलेज अमृतसर से की। पढ़ाई के दौरान वे अच्छे एथलीटों में जाने जाते थे। उनका रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया था। वर्ष 1965 में भारत की तरफ से हैमर थ्रो में सोवित संघ रूस के विरुद्ध स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। 1965 से लेकर 1980 तक डिस्कस थ्रो में प्रवीण सोबती पूरे देश में चर्चा का केंद्र रहे। छह फुट सात इंच की हाइट वाले प्रवीण सोबती को अर्जुन अवार्ड और महाराजा रणजीत सिंह अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।