

आँसू बहाता उत्तराखंड क्रिकेट,राजनीति या स्वाभिमान,क्यो चली जा रही है शै और मात की चाले, CAU क्यो बना अखाड़ा,जाने सबकुछ एक साथ : मोहम्मद सलीम सैफ़ी: पी.सी.वर्मा उस शख्स का नाम है जिसने अपनी ज़िंदगी के लगभग 44 साल उत्तराखंड में क्रिकेट को ज़िंदा रखने में लगा दिए,जिसने अपनी हर इच्छा को क्रिकेट को आबाद रखने में न्यौछावर कर दिया,जिसने अपने बच्चों से ज़्यादा उन बच्चों पर वक़्त लगाया जो उत्तराखंड क्रिकेट की उम्मीदों की परवाज़ बन सकते थे,जिसने अपने तन पर लगे हर मिट्टी के कण को क्रिकेट के मैदान में लगा दिया,पी.सी.वर्मा वो शख्स जिसने अपने घर,परिवार,नाते रिश्तेदारों और बच्चों से ज़्यादा वक्त उस बीसीसीआई के चक्कर लगाने में गंवा दिया जिससे मान्यता मिले बिना उत्तराखंड क्रिकेट का उद्धार सम्भव नही था,अथक प्रयास,भागदौड़,नम्रता,विनम्रता,मान, अपमान, दुत्कार और सत्कार के खट्टे मीठे अनुभव के बीच पी.सी.वर्मा की आँखों मे नाकामयाबी के आँसू भी आये तो सफलता के शिखर का अहसास भी हुआ,अगस्त 2019 में सी.ए.यू को बीसीसीआई ने मान्यता दी और ख़ुशी के आँसू पी.सी.वर्मा की आँखों मे ऐसे बहे कि उनके जीवनभर के संघर्ष को कुदरत ने वरदान में तब्दील कर दिया और वरदान भी ऐसा मिला जिसे शायद कोई भी क्रिकेट एसोसिएशन कभी भी खोना नही चाहेगी और वो वरदान है उत्तराखंड क्रिकेट के सिपाही महिम वर्मा को मिला बीसीसीआई के उपाध्यक्ष का पद,यानी जिस संस्था से प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को 20 साल लग गए उस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष का पद न केवल महिम वर्मा के लिए गौरव की बात है बल्कि पूरे उत्तराखंड क्रिकेट के लिए एक स्वर्णिम काल है,ये ऐसा मौका है और वक़्त है जब उत्तराखंड में क्रिकेट के चाहने वालो को अपने सपने पूरा करने के लिए किसी बाहर वाले के सामने गिड़गिड़ाने, रोने और पैरों में पड़कर अपमानित होने की कोई ज़रूरत नही बल्कि स्वाभिमान के साथ बीसीसीआई से अपने हक़ हासिल करने का मौका,पी.सी.वर्मा का बेटा महिम वर्मा आज बीसीसीआई उपाध्यक्ष है,बीसीसीआई के किसी भी फैसले में महिम की अहम भूमिका है,उत्तराखंड के क्रिकेटरों की ज़रूरतों को भली भाँति जानता,समझता और सार्थक करने का माद्दा रखता है,सक्रिय राजनीति से जिसका कोई लेना देना नही,जो सिर्फ क्रिकेट के लिए जीता है,क्रिकेट खेला है,क्रिकेट के दर्द को दिल महसूस कर सकता है,जो बचपन से अपने पिता पी.सी.वर्मा के क्रिकेट के लिए हर संघर्ष, दुख,दर्द का साक्षी बना है,लाखो का सैलरी पैकेज त्याग कर, उच्च शिक्षा और रुतबे के मोह से दूर सिर्फ पिता जी के सपनो का क्रिकेट उत्तराखंड को देना जिसका एकमात्र लक्ष्य है वो महिम वर्मा आज अपने आपको उस दोराहे पर खड़ा पा रहा है जहाँ एक तरफ़ ऐसे मौकापरस्त,लालची और क्रिकेट से अनजान लोगों का समूह नज़र आ रहा है जो सिर्फ़ CAU को भ्रष्टाचार का अड्डा बनाने पर आमादा है,जो CAU को सिर्फ़ राजनीति का केंद्र बनाना चाहते है,जो CAU को नोट छापने की मशीन समझने की भूल कर रहे है,जो CAU को रुतबे की पाठशाला में बैठे है जिनके लिए क्रिकेट इबादत नही और दूसरी तरफ़ वो मासूम बेसहारा बच्चे है जिनके लिए क्रिकेट इबादत और क्रिकेट का मैदान एक मंदिर,जिनके पास क्रिकेट है लेकिन भ्रष्ट्राचारियों को देने के लिए पैसा नही,जो बीसीसीआई की नज़र भर से दुनियाभर में स्टार बन सकते है,जो बीसीसीआई के सहयोग से खेल के उम्दा मैदान पाना चाहते है,वो बच्चे जिनका सपना पहाड़ में क्रिकेट का विकास है,वो बच्चे जो दुनियाभर में उत्तराखंड का मान,सम्मान और स्वाभिमान बन सकते है,महिम वर्मा का सपना है पी.सी.वर्मा के सपनो उत्तराखंड क्रिकेट, लेकिन आज महिम वर्मा को कमज़ोर करने पर वो लोग आमादा है जो लोग नही चाहते कि उत्तराखंड में क्रिकेट का विकास हो,उत्तराखंड का बच्चा बीसीसीआई की सुखसुविधाओं का लाभ ले पाए,उत्तराखंड राज्य में,CAU और जिला क्रिकेट एसोसिएशनस में आज भी ऐसे बहुत से लोग है जो बीसीसीआई जैसी प्रतिष्ठित संस्था की विभिन्न कमेटियों में समायोजित होकर महिम वर्मा की भाँति अपने टेलेंट से उत्तराखंड क्रिकेट को नई उचाईयो तक पहुँचा सकते है अब अगर ज़रूरत है तो सिर्फ़ एक बात कि उत्तराखंड क्रिकेट से जुड़े तमाम लोग अपना मन मुटाव और राजनीतिक स्वार्थ भूलकर निर्विरोध एक मंच पर इकट्ठा होकर पी.सी.वर्मा के सपनो के क्रिकेट को सच्चे मन से धरातल पर उतारे और महिम वर्मा जैसे क्रिकेट के सच्चे सिपाही के हाथों को मजबूत करें ताकि बीसीसीआई से उत्तराखंड क्रिकेट को ज़्यादा से ज़्यादा सहयोग प्राप्त हो सके,खेल खेल रहे ना कि राजनीति।