सीएयू सचिव चुनाव-2020
राज+नीति बनाम गिर-किट
कहते है नेता, नेतागिरी से जाए लेकिन राजनीति से ना जाए , यही साबित हुआ है अब तक क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव चुनाव में ।
-मोहम्मद सलीम सैफ़ी-
पूर्व मंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता हीरा सिंह बिष्ट ने साबित कर दिया कि वो न केवल एक परिपक्व सोच वाले पक्के वाले नेता है इसीलिए सीएयू चुनाव 2020 में अपने बेटे सिद्धार्थ बिष्ट को मैदान में उतार दिया है । कांग्रेस की परंपरागत परिवारवाद वाली प्रवर्ति ऐसी साफ झलक रही कि कुछ बोलने की ज़रूरत नही,मन में इच्छा तो ये थी मैं ही बन जाऊं लेकिन क्या करें उम्र साथ नही दे रही लेकिन हार के अहसास ने बिष्ट जी के मन के भीतर जो द्वंद मचाया उसके पैदा होने वाली बौखलाहट ने तो खुद अपने बेटे सिद्धार्थ बिष्ट को ही बलि का बकरा बना कर मैदान में उतार दिया,हाय रे राज+नीति
गौरतलब है सिद्धार्थ बिष्ट का नाम चुनाव 2020 से पहले कभी भी सुनने को नही मिला,ना ही सिद्धार्थ का क्रिकेट में कोई योगदान कभी कभी भी नज़र नही आता रहा । खैर योगदान तो खैर जनाब सीनियर यानी बड़े बिष्ट जी का भी कभी नही रहा उत्तराखंड क्रिकेट में । हां कांग्रेस की राजनीति में हीरा सिंह बिष्ट एक बड़ा नाम ज़रूर रहे है और इस चुनाव में भी उन्होंने ये साबित कर दिया कि टाइगर अभी ज़िंदा है ।
बिष्ट जी ने राजनीति के एक मझे हुए खिलाड़ी के तौर पर संजय गुंसाई , अवनीश वर्मा जैसी कठपुतलियों को अपने इशारे पर जैसे नचाया वो काबिले गौर है और अपना काम मुकम्मल होने के बाद ऐसे निकाल फेंका जैसे केजरीवाल ने सभी आंदोलनकारियों को,प्रदर्शनकारियों को या यूं कहें अन्ना और जनता को, इतने चक्कर तो आज तक सूरज और चंन्द्रमा ने पृथ्वी के भी नही लगाए होंगे जितने चक्कर इन दोनों ने बिष्ट जी की परिक्रमा में लगा डाले,वाकई बड़ी हिम्मत चाहिए रोज़ रोज़ सुबह जाकर नतमस्तक होने के लिए जो कल तक पीसी वर्मा के पैरों में गिरकर क्रिकेट के नाम पर रोया-गिड़गिड़ाया करते थे वो अब बिष्ट जी के सामने न केवल नतमस्तक है बल्कि हर वो काम करने मे जुटे है जो नेता जी को पसंद है या यूं कहें,साम,दाम,दंड,भेद कुछ भी हो अपना काम बनता भाड़ में जाएं बंदा।
लेकिन हीरा सिंह जी भी ठहरे पक्के नेता,उन्हें इतना तो तजुर्बा है ही कि किससे कैसे काम निकाला जाए वैसे भी अपना काम निकलवाने में नेताओ का कोई सानी नही होता , शायद ये तजुर्बा जय और वीरू जैसे इन लोगो के लिए पहला था जो सिर्फ ठाकुर साहब के इशारे पर गोलियां ही दागते रहे और सरदार बन गया छोटा सरकार, वाह री राजनीति
गुंसाई साहब तो ठहरे आशावादी आखिर तक उम्मीद नही छोड़ी,अपनी झोली फैलाकर रखी हुई थी कि उनके नए गॉडफादर कुछ डाल दे मगर भाई नेता तो आखिर नेता ही होता है,भीख भी देखकर, सोचकर और परखकर ही देता है । बिष्ट जी तो ठहरे अनुभवी नेता उन्हें सब पता है उनके अलावा बाकी लोग भी गुंसाई की गुंडई से भलीभांति परिचित है । डोमेस्टिक वॉयलेंस का केस हो या फिर मिनट मिनट में आपा खोने वाली बीमारी,
ऐसे इंसान के साथ शायद ही कोई जाना पसंद करेगा ।
चर्चा तो ये भी कम गर्म नही है कि राजेश तिवारी भी गर्म फाइलों का टोकरा लेकर घूम रहे है । जिसकी तपिश में कई झुलस सकते है या जांच की आंच में कई लोगो के झुलसने का अंदेशा है। इस बार तिवारी जी भी आरपार के मूड में नज़र आ रहे है, वही दूसरी ओर उत्तराखंड क्रिकेट के सबसे महत्वपूर्ण ध्रुव पीसी वर्मा की इज़्ज़त दांव पर लगते देख उनके लख्ते जिगर और उनकी आँखों के नूर बीसीसीआई उपाध्यक्ष महिम वर्मा अपने पिता के मान,सम्मान और स्वाभिमान की लाज बचाने के लिए अपना बीसीसीआई उपाध्यक्ष का पद त्यागने में भी कंजूसी करते नज़र नही आ रहे, लगता है महिम वर्मा उत्तराखंड क्रिकेट को ऊंचाइयों तक ले जाने की मंशा तो दिल मे रखते ही है लेकिन बीसीसीआई की महत्वपूर्ण कुर्सी होने के बावजूद उसे छोड़ने का साहस होना और चुनावी मैदान में ताल ठोकना इस बात के साफ़ संकेत दे रहा है कि उत्तराखंड क्रिकेट का उत्थान ही महिम वर्मा का एकमात्र लक्ष्य है।
खैर अब 6 लोगो ने नामांकन किया है तो देखना दिलचस्प होगा कि कौन – कौन मैदान में उतरता है,कौन कौन झुलसता है और कौन नाम वापस लेता है । बिष्ट लॉबी शुरू से ही वोट के आभाव में बैकफुट पर नज़र आ रही थी मगर ऐसे में अपने ही बेटे का नामांकन करवाना किसी के भी गले नही उतर रहा । हो सकता है अपने बेटे सिद्धार्थ की सुनिश्चित हार सामने देखते हुए बिष्ट जी अपने बेटे का नाम वापस लेकर अपनी इज़्ज़त बचाने में कामयाब हो जाए और संजय गुंसाई को फिर से बलि का बकरा बनाकर कुर्बान कर दें,फिर वही होगा जो होता आया है महान नेता की महान गाथा अर्थात जो जीता वही सिकंदर बाक़ी सब अंदर!