हर जाति के लिए खुला महामंडलेश्वर बनने का रास्ता , लेनी पड़ेगी डिग्री

भारत में आस्था और धार्मिक संस्थानों की अपनी विशेष अहमियत है। भारत की पहचान आध्यत्मिक गुरु , संत समाज , मठ मंदिर और महाकुंभ मेले से जुड़े उसके पूरे 13 प्राचीन अखाड़ों का अद्भुत इतिहास सनातनी परंपरा का केंद्र है। लेकिन जिस तरह से संत समाज के अंदर से भी अक्सर विवादित बाबाओं का कारनामा उनकी विवादित जीवनशैली और आपराधिक प्रवृत्ति हिंदू आस्था और धार्मिक संस्थानों की बदनामी कराती रही है उसे रोकने के लिए अब अखाड़ा प्रबंधन सामने आया है।
 
समय के साथ आधुनिकता के इस दौर में बदलाव के कई फार्मूले निर्धारित किए हैं। मतलब आप किसी भी जाति से हों अगर हिंदू धर्म को समझने और पढ़ने वाला बाबा बनना चाहते हैं और महामंडलेश्वर बनने की सोच रहे हैं तो उसे कई मानकों पर खरा उतरना पड़ेगा।  क्योंकि अब बाबा बनना और महामंडलेश्वर बनना आसान नहीं होगा इसके लिए अनपढ़ और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की एंट्री बैन हो जाएगी और हर जाति के योग्य लोगों का महामंडलेश्वर बनने का रास्ता खुल जायेगा। 
 
सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाते हुए सनातन धर्म के प्रति आस्था और विद्वता के आधार पर पंचायती अखाड़ा  निरंजनी के दरवाजे हर जाति के संतों के लिए खुलेंगे। इसके साथ ही अब महामंडलेश्वर की पदवी पाना भी आसान नहीं होगा।
पंचायती अखाड़ा निरंजनी शैक्षिक योग्यता के आधार पर ही भविष्य में महामंडलेश्वरों की ताजपोशी करेगा। महामंडलेश्वर बनने के लिए आचार्य की डिग्री और मठ मंदिर की गद्दी होना अनिवार्य होगा। जात पात का भेदभाव दूर करने के लिए अखाड़ा सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला भी अपनाएगा।
 
सनातन धर्म के प्रति आस्था और विद्वता के आधार पर अखाड़े के दरवाजे हर जाति के संतों के लिए खुलेंगे। पंचायती अखाड़ा निरंजनी सचिव एवं अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने बताया कि वक्त के साथ साधु-संन्यासियों की दीक्षा में भी बदलाव जरूरी है। महामंडलेश्वर की पदवी बेहद गरिमामयी है। अभी कई महामंडलेश्वर अनपढ़ हैं। सनातन धर्म के प्रति ज्ञान नहीं है। विवादित बयानबाजी करते हैं। पदवी लेने के बाद गृहस्थ जीवन में हैं।
 
इन्हीं विसंगतियों को रोकने के लिए अखाड़ा स्तर पर महामंडलेश्वर की संन्यास दीक्षा के लिए शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता की जा रही है। कम से कम आचार्य की डिग्री जरूरी होगी। साथ ही मठ-मंदिर की गद्दी की अनिवार्यता होगी। इन मापदंडों पर खरा उतरने वाले संतों को ही महामंडलेश्वर की संन्यास दीक्षा दी जाएगी।
एक सप्ताह के भीतर कमेटी के सदस्यों के नाम होंगे सार्वजनिक
अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि के स्तर पर कमेटी बनाई गई है। कमेटी के सदस्य ही महामंडलेश्वर की पदवी के लिए आवेदन करने वालों की शैक्षिक योग्यता जांचने के साथ सनातन धर्म के प्रति उनके ज्ञान की परीक्षा लेंगे। श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने बताया कि योग्यता के आधार पर ही महामंडलेश्वर बनाए जाएंगे। इसके लिए जातपात का भेदभाव भी दूर किया जाएगा। हिंदू धर्म के प्रति आस्थावान, शिक्षित और विद्वान संत को महामंडलेश्वर बनाया जाएगा। अखाड़ा स्तर पर गहन मंथन के बाद इसका मसौदा तैयार किया जा रहा है। आगामी एक सप्ताह के भीतर कमेटी के सदस्यों के नाम सार्वजनिक कर दिए जाएंगे।
 
दीक्षा लेने वाले सैकड़ों, संपर्क में हैं सिर्फ 60
13 अखाड़ों में  पंच दशनाम जूना अखाड़े के बाद पंचायती अखाड़ा  निरंजनी सबसे बड़ा अखाड़ा है। दोनों ही सन्यासी अखाड़े हैं। इनसे देश-विदेश के लाखों साधु-संतों जुड़े हैं। इन्हीं अखाड़ों में सर्वाधिक महामंडलेश्वर, महंत, महंत और नागा संन्यासी हैं। श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने बताया कि पंचायती अखाड़ा निरंजनी से सैकड़ों संतों को संन्यास की दीक्षा के बाद महामंडलेश्वर की पदवी दी गई है लेकिन अखाड़े के संपर्क में मात्र 60 महामंडलेश्वर हैं। बाकी महामंडलेश्वर दीक्षा लेने के बाद कभी अखाड़े में नहीं आए। कहां हैं अखाड़े को भी इसकी जानकारी नहीं है।
 
अखाड़े से संन्यास की दीक्षा लेने के बाद महामंडलेश्वर की पदवी आजीवन संत के नाम से जुड़ जाती है। संत अपने वाहनों के आगे महामंडलेश्वर सिद्धपीठ और मठाधीश जैसे बोर्ड लगाकर घूमते हैं। कई महामंडलेश्वर की मठ मंदिर की गद्दी नहीं है। संन्यास परंपरा के विपरीत गृहस्थ जीवन जी रहे हैं। सनातन धर्म का ज्ञान नहीं होने से विवादित बयान देते हैं। इससे अखाड़े पर भी सवाल उठाए जाते हैं। इन्हीं विसंगतियों को रोकने के लिए अखाड़ा शैक्षिक योग्यता और मठ मंदिर की अनिवार्यता का नियम बनाने जा रहा है।
– श्रीमहंत रविंद्रपुरी, सचिव  निरंजनी अखाड़ा
 
सामाजिक एवं शिक्षा क्षेत्र में अखाड़ा सबसे आगे
पंचायती अखाड़ा  निरंजनी सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे है। अखाड़े की ओर से मैनेजमेंट एवं फार्मेसी, डिग्री कॉलेज संचालित किया जा रहा है। यहां बच्चों को निजी कॉलेज एवं इंस्टीट्यूट की तुलना में सस्ती शिक्षा मिलती है। अखाड़ा सामाजिक कार्यों में सबसे आगे रहता है। बाढ़ सुरक्षा से लेकर आपदा, कोरोना काल में पीड़ितों के अलावा सरकार को आर्थिक मदद करता है।

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