मुस्लिम में होते हैं अशराफ अरजाल और अजलाफ…

जानिए इनमें कौन-कौन सी जातियां आती हैं ?

भारत में मुस्लिमों में भी जाति व्यवस्था देखने को मिलती है. जो अशरफ, अजलाफ और अरजाल में बंटी हुई है. चलिए जानते हैं कि आखिर यहां वर्ण व्यवस्था क्या है.भारत में कहा जाता है कि हर एक जाति का व्यक्ति अपने से नीचे की जाति ढूंढ ही लेता है. कहावत हमारे देश में जाति व्यवस्था को देखते हुए सही भी मासूम पड़ती है. हमारे देश में हिंदू हों या मुस्लिम, जाति व्यवस्था दोनों में ही देखने को मिलती है. जहां हिंदुओं में ऊंची और नीची जाति में बंटवारा देखने को मिलता है तो ऐसी जाति व्यवस्था मुसलमानों में भी है. मुसलमानों में जातियां अशराफ, अजलाफ और अरजाल में बंटी हुई है. चलिए जानते हैं कि आखिर ये है क्या.

क्या होता है मुस्लिमों में अशरफ, अजलाफ और अरजाल का मतलब?

अशराफ मुसलमान- ये वो मुसलमान होते हैं, जिनका संबंध मौजूदा समय के हिसाब से विदेशों से होता है. ये चार प्रमुख जातियों में बंटे हुए हैं, पहला सैयद, दूसरा शेख, तीसरा पठान और चौथा मुगल.

सैयद, जिनका संबंध पैग़म्बर मुहम्मद के परिवार से माना जाता है, एक तरह से ये उनके वंशज हैं. दूसरे हैं शैख, जिनका संबंध अरब ही के कुरैश “कबीले” से माना जाता है. वहीं पठानों का संबंध अफगानिस्तान के आसापस के क्षेत्र से माना जाता है. तो वहीं मुगलों का संबंध मुगल बादशाह बाबर से माना जाता है, जो उनके साथ भारत आए थे.

अजलाफ मुसलमान- अजलाफ मुसलमान में दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, बढई-लुहार, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली समाज के लोग आते हैं.

अरजाल मुसलमान- इनमें वो दलित आते हैं जिन्होंने इस्लाम कबूल किया. जैसे कि हलालखोर, भंगी, हसनती, लाल बेगी, मेहतर, नट, गधेरी आदि.

कई लोगों ने बदला धर्म ?

दरअसल जब भारत में मुस्लिम शासकों का शासनकाल आया तो अलग-अलग धर्मों के लोगों ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया, इसमें बड़ी संख्या में वो लोग शामिल थे जिन्हें जातिय आधार पर परेशान किया जाता था. जिनका धर्म के आधार पर शोषण होता था. हालांकि कई लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने में सूफी संतों की भी अहम भूमिका मानी जाती है.1990 के दशक में भारतीय मुस्लिमों के बीच जातिवाद को लेकर और इसे खत्म करने को लेकर आंदोलन किए गए थे. हालांकि इसपर बहस और सवाल हमेशा से बने हुए हैं. मुसलमानों और खासकर आर्थिक, सामाजिक और पिछड़े मुसलमानों के मद्देनजर कमीशन बने हैं, जिनने कई कार्य और रिसर्च भी कीं, हालांकि कभी इनका स्थायी हल नहीं निकला.

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