क्या आप जानते हैं टिहरी लोकसभा का इतिहास ?

टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी। उस समय टिहरी रियासत की रानी कमलेंदुमति शाह इस सीट से निर्दलीय सांसद चुनी गई थीं। इस बाद सालों सीट पर राजघराने के लोगों का दबदबा रहा है। 1991 से लेकर 2007 तक टिहरी के राजा मानवेंद्र शाह लगातार इस सीट पर चुनाव जीते थे। वर्ष 2007 में राजा मानवेंद्र शाह के निधन के बाद कांग्रेस के टिकट पर विजय बहुगुणा टिहरी से उपचुनाव लड़े और उन्होंने राजा मानवेंद्र शाह के बेटे यजुवेंद्र शाह को चुनाव में पराजित किया था। साल 2011 की जनगणना के अनुसार टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट पर 62 फीसदी ग्रामीण मतदाता है। इसके अलावा इस सीट पर अनुसूचित जाति और जनजाति का कुल 23 फीसदी वोट बैंक है। आंकड़ों पर गौर करें तो सीट पर कुल 19.23 लाख की आबादी है। ऐसे में ग्रामीण वोट बैंक सीट पर जीत-हार का अंतर तय करेगा। बता दें उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। टिहरी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में कुल 14 विधानसभा सीट हैं, जिनमें 11 पर बीजेपी के विधायक दो पर कांग्रेस और एक सीट पर निर्दलीय विधायक हैं।

अब तक के रिकॉर्ड को देखें तो टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट सालों से इलाके के राजपरिवार का गढ़ रही है। यहां साल 2009, 2014 और 2019 तीन बार से बीजेपी की माला राज्य लक्ष्मी शाह सांसद हैं। बता दें माला राज्य लक्ष्मी महाराजा मानवेंद्र शाह की बहू हैं। मानवेंद्र शाह इस सीट से तीन बार कांग्रेस और पांच बार बीजेपी के टिकट पर यहां से लोकसभा चुनाव जीते थे।लोग मान रहे हैं कि कांग्रेस के गुनसोला और भाजपा की महारानी के बीच इस सीट पर दिलचस्प मुकाबला होने की संभावना है।यहाँ कांग्रेस पार्टी ने दो बार विधायक रहे जोत सिंह गुनसोला को चुनावी मैदान में उतारा है। इसके अलावा बसपा ने नीम चंद्र छुरियाल को अपना उम्मीदवार बनाया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top