न्यूज़ वायरस के लिए महविश की रिपोर्ट —
हिंदुस्तान के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी तमाम परंपराएं और रीति रिवाज है जो आज भी विज्ञान और डिजिटल युग में लोगों के लिए रोमांच और आनंद का सबसे बड़ा जरिया बनती है। देवभूमि उत्तराखंड में भी आपको कदम कदम पर अद्भुत अनोखे और रोमांच से भरपूर आयोजन , रिवाज़ और रस्में निभाती परंपराएं मिलेंगी जो आज भी बेहद लोकप्रिय और मशहूर है।इसी देवभूमि उत्तराखंड में रैथल नाम का एक गांव है. उत्तरकाशी जिले के इस छोटे से गांव में मनाया जाने वाला ‘अंडूड़ी’ एक ऐसा पर्व है जिसमें दूध, मक्खन और मट्ठे (छांछ) से होली खेली जाती है. इस त्यौहार को अब ‘बटर फेस्टिवल’ भी कहा जाने लगा है.कुछ समय पहले तक बेहद कम लोग ही इस अनोखे उत्सव के बारे में जानते थे. हालांकि इसकी जानकारी आज भी कम ही लोगों को है लेकिन अब यह इतना तो प्रचारित हो ही गया है कि दूसरे राज्यों से भी कुछ लोग इसमें हिस्सा लेने पहुंचने लगे हैं.
समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर फैले दयारा बुग्याल में रैथल के ग्रामीण सदियों से भाद्रप्रद महीने की संक्रांति को दूध, मक्खन, मट्ठा की होली खेलते आ रहे हैं। आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में रैथल पर्यटन उत्सव समिति ने इस वर्ष 17 अगस्त को पारंपरिक बटर फेस्टिवल के आयोजन का निर्णय लिया है। इस आयोजन में ग्रामीण देश-विदेश से आने वाले मेहमानों के साथ 17 अगस्त को मक्खन-मट्ठा की होली खेलेंगे। इस मौके पर दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के अध्यक्ष मनोज राणा, सरपंच गजेंद्र राणा, उपप्रधान रैथल विजय सिंह राणा, वार्ड सदस्य बुद्धि लाल आर्य, समिति के सदस्य मोहन कुशवाल, सुरेश रतूड़ी, संदीप राणा और यशवीर राणा आदि मौजूद रहे।क्या है आयोजन से तात्पर्य
रैथल के ग्रामीण गर्मियों की दस्तक के साथ ही अपने मवेशियों के साथ दयारा बुग्याल समेत गोई चिलापड़ा में बनी अपनी छानियों में ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए पहुंच जाते हैं। जहां ऊंचे बुग्यालों में उगने वाली औषधीय गुणों से भरपूर घास व अनुकूल वातावरण का असर दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर भी पढ़ता है। ऐसे में ऊंचाई वाले इलाकों में सितंबर महीने से होने वाली सर्दियों की दस्तक से पहले ही ग्रामीण लौटने से पहले अपनी व अपने मवेशियों की रक्षा के लिए प्रकृति का आभार जताने के लिए इस अनूठे पर्व का आयोजन करते हैं।
बटर फेस्टिवल के जिस रूप में अंडूड़ी आज मनाई जाती है, पहले ऐसा नहीं था. रैथल गांव के रहने वाले पत्रकार पंकज कुशवाल बताते हैं, ‘अंडूड़ी असल में पहले बटर फेस्टिवल न होकर ‘मड फेस्टिवल’ हुआ करता था. बरसात में छानियों के बाहर जो कीचड़ जमा होता था, उसमें मट्ठा मिलाकर अंडूड़ी खेली जाती थी. बुग्याल की इस मिट्टी से त्वचा पर होने वाली बीमारियां भी दूर होती थी.’ पंकज आगे कहते हैं, ‘धीरे-धीरे जब बाहर के लोग भी इसमें शामिल होने लगे तो मिट्टी या कीचड़ से इसे खेलना बंद कर दिया गया. अब तो बीते कई सालों से सिर्फ दूध, मक्खन और मट्ठे से ही अंडूड़ी खेली जाती है.’