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Modi Cabinet Expension: मिथक, इत्तेफाक और संघर्ष, कुछ ऐसा है अजय भट्ट का जीवन

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नई दिल्ली. उत्तराखण्ड भाजपा के कद्दावर ब्राह्मण नेता अजय भट्ट को मोदी कैबिनेट में जगह मिल गई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में वे रिकॉर्ड वोटों से नैनीताल के सांसद बने थे. उन्होंने अपने साथ जुड़े कई मिथकों को तोड़ा था. अजय भट्ट के बारे में ये कहा जाता रहा है कि वे जब विधायक चुने जाते हैं तब प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं बनती है लेकिन, उनके सांसद बनने के बाद न सिर्फ फिर से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी बल्कि अब वे खुद मंत्री बन सकते हैं.

कुछ ऐसा रहा है अजय भट्ट का राजनीतिक इतिहास

2017: अजय भट्ट अल्मोड़ा की रानीखेत सीट से विधानसभा का चुनाव हार गये थे. वे जीतते तो शायद मंत्री बनते. चुनाव से पहले सीएम की रेस में भी उनका नाम था.

2012: अजय भट्ट रानीखेत से विधानसभा का चुनाव जीते लेकिन भाजपा प्रदेश में एक सीट के अंतर के चलते सरकार नहीं बना सकी. भाजपा को 31 जबकि कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं. अजय भट्ट सदन में नेता प्रतिपक्ष बने.

2007: इस विधानसभा चुनाव में अजय भट्ट मात्र 205 वोटों से कांग्रेस के करण माहरा से चुनाव हार गए. सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक होने का गौरव फिर से अजय भट्ट को नहीं मिल पाया.

2002: अलग उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद विधानसभा का ये पहला चुनाव था. बड़े शान के साथ अजय भट्ट ने रानीखेत की सीट जीती. पहली विधानसभा में वे पहुंचे थे.

1996: ये अजय भट्ट का पहला विधानसभा चुनाव था. रानीखेत से उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की. दुर्भाग्य देखिये कि अविभाजित यूपी की विधानसभा में किसी को भी बहुमत नहीं मिला. आखिरकार राष्ट्रपति शासन लग गया. अजय भट्ट याद करते हुए कहते हैं कि 6 माह तक विधायकों का शपथग्रहण नहीं हो पाया था. भाजपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन, पूरे पांच साल मुख्यमंत्री और सरकारें बदलती रहीं. 1996 की विधानसभा अजय भट्ट के राजनीतिक कैरियर में एकलौती ऐसी है जब वे सत्तारूढ़ दल के विधायक अपने आप को कह पाए.

नगर पालिका के चुनाव में भी नहीं चली थी किस्मत

अजय भट्ट के साथ ये इत्तफाक और भी पुराना है. बहुत कम लोग जानते हैं कि अजय भट्ट ने पहला चुनाव 1989 में द्वाराहाट सीट से नगर पालिका अध्यक्ष का लड़ा था. उस समय भी किस्मत ने उन्हें दगा दे दिया था. अध्यक्ष पद पर अजय भट्ट और प्यारे लाल शाह के बीच मैच टाई हो गया. लॉटरी से फैसला हुआ जिसमें अजय भट्ट हार गए.

अजय भट्ट का शुरुआती जीवन भी काफी संघर्षों भरा रहा है. छोटी उम्र में ही पिता जी के गुजर जाने से पढ़ाई तो बाधित हुई तो बड़े भाई की छत्रछाया में पढ़ाई पूरी की और उनका हाथ भी बंटाते रहे. कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से एलएलबी करने के बाद अजय भट्ट की मुश्किलें कम होनी शुरु हुईं. लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजय भट्ट अल्मोड़ा चले गये और कचहरी में वकालत शुरु कर दी. साल 1984 से लेकर 1996 तक उन्होंने वकालत की. इसी दरम्यान उनकी मुलाकात पुष्पा भट्ट से हुई जो खुद भी वकालत करती थीं. शादी तो अरेंज मैरेज जैसी हुई लेकिन, शादी से पहले एक दूसरे को अच्छे से जानते थे. 1996 में अजय भट्ट पूरी तरह राजनीति में आ गए. 1996 में अविभाजित यूपी में वे पहली बार रानीखेत से भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए. तब से लेकर आजतक वे राजनीति में सफलता की सीढ़ी चढ़ते रहे.

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