हाल बेहाल है देश भर के सूचना आयोग का – शिकायतें ज्यादा , फैसले कम

एक नज़र में पूरी कहानी —–

29 सूचना आयोग देशभर में
2 राज्यों झारखंड-त्रिपुरा में काम ही नहीं
2,12,443 अपीलें-शिकायतें दर्ज एक साल में
3,14,323 शिकायतें लंबित 26 आयोगों में
69 फीसदी आयोगों ने बनाई ही नहीं वार्षिक रिपोर्ट

देश में सूचना का अधिकार कानून लागू हुए 17 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन आलम यह है कि देश में सूचनाएं समय पर नहीं मिलने को लेकर दाखिल की गई तीन लाख से ज्यादा शिकायतें लम्बित हो गई हैं। कानून के क्रियान्वयन व देश के 29 सूचना आयोगों के कामकाज पर नजर रखने वाले संगठन सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।

सूचना के अधिकार के इस्तेमाल की बढ़ती प्रवृत्ति और इधर सूचना आयुक्तों के खाली पदों ने देश में मामलों के निस्तारण की गति को मंथर कर दिया है। देश के 29 सूचना आयोगों में लोगों को समय पर सूचना नहीं मिलने के खिलाफ लगाई गई तीन लाख से ज्यादा शिकायतें व अपीलें लम्बित हैं। इनके निस्तारण की मंथर का गति का आकलन करने पर जो अनुमान लगाया गया है, वह और भी चौंकाने वाला है। पश्चिम बंगाल की हालत तो यह है कि इस साल जुलाई में दर्ज हुई शिकायत के निस्तारण में ही 24 साल से ज्यादा का समय लग जाएगा।सतर्क नागरिक संगठन की ओर से देश में सूचना का अधिनियम लागू होने की 17वीं वर्षगांठ के मौके पर जारी रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। ‘भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन का रिपोर्ट कार्ड 2021-22’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में केंद्रीय सूचना आयोग और राज्यों के सूचना आयोगों के कामकाज का आकलन पेश किया गया है।रिपोर्ट में बताया गया है कि आयोगों में अपीलों-शिकायतों का बैकलॉग लगातार बढ़ता जा रहा है। 31 मार्च, 2019 तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 मामले लम्बित थे और इस साल जून तक इनकी संख्या बढ़कर 2,86,325 हो गई। संगठन ने आयोगों के औसत मासिक निपटान दर और लंबित मामलों के हिसाब से अपील-शिकायत के निपटारे में लगने वाले समय की गणना की। इसमें सामने आया कि पश्चिम बंगाल में इस साल 1 जुलाई को दर्ज मामले का निस्तारण मौजूदा मासिक दर के आधार पर वर्ष 2046 में होगा। ओडिशा व महाराष्ट्र में 5 वर्ष व बिहार में लंबित मामले दो वर्ष से पहले नहीं निपट सकेंगे। देश के 12 राज्यों में निस्तारण में 1 साल या उससे अधिक समय लगने का अनुमान लगाया गया है।

मप्र दूसरे, राजस्थान चौथे पायदान पर

एक साल की अवधि के दौरान देश के 29 सूचना आयोगों ने समय पर सूचनाएं नहीं देने पर कुल 5805 मामलों में 3 करोड़ 12 लाख 1 हजार 350 रुपए का जुर्माना लगाया। इनमें सर्वाधिक 1265 मामलों में लगभग एक करोड़ चार लाख रुपए का जुर्माना लगाकर कर्नाटक अव्वल रहा। मध्यप्रदेश 222 मामलों में 47.50 लाख जुर्माने का साथ दूसरे और राजस्थान 980 मामलों में 35 लाख रुपए जुर्माने के साथ चौथे स्थान पर रहा। यूपी ने सर्वाधिक 2299 मामलों में जुर्माना लगाया, लेकिन जुर्माने की राशि नहीं बताई। सूचना आयोगों ने 95 प्रतिशत मामलों में जरूरत के बावजूद जुर्माना नहीं लगाया।

झारखंड में ढाई साल से काम बंद

रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में मई 2020 के बाद से कोई सूचना आयुक्त ही नहीं है और वहां लोगों को आरटीआई का फायदा नहीं मिल रहा। इसी तरह त्रिपुरा में पिछले 15 महीनों से काम बंद नहीं है। इन दोनों राज्यों में अभी भी सूचना आयुक्तों के सभी पद रिक्त हैं। खाली पदों का आलम यह है कि केंद्रीय सूचना आयोग में भी सूचना आयुक्तों के तीन पद अरसे से नहीं भरे जा रहे और यहां लंबित मामलों की संख्या करीब 26, 800 तक पहुंच गई है। मणिपुर, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल व आंध्रप्रदेश में मुख्य सूचना आयुक्त के पद ही नहीं भरे जा रहे। मणिपुर में तो 44 महीनों से यह पद खाली है।

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