पीएम मोदी ने यूक्रेन पहुंचकर दिया दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम का संदेश

सरफराज सैफी
न्यूज़ एंकर/ वरिष्ठ पत्रकार

हम एक गतिशील विश्व में रह रहे हैं। इसलिए भारत की विदेश नीति सक्रिय, लचीलें और व्यावहारिक होने के लिए तैयार है ताकि उभरती स्थितियों का सामना करने के लिए त्वरित समायोजन किया जा सके। हालांकि, अपनी विदेश नीति के कार्यान्वयन में भारत निरपवाद रूप से बुनियादी सिद्धांतों का पालन करता है जिस पर कोई समझौता नहीं किया जाता है।भारत की विदेश नीति का उद्देश्य-किसी अन्य देश की तरह-अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करना है। “राष्ट्रीय हितों” का दायरा काफी व्यापक है। क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए हमारी सीमाओं की सुरक्षा, सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करना, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, साइबर सुरक्षा अर्थात भारत को पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों से बचाना है।राजनीति में एक दिन भी काफी लंबा समय हो सकता है, लेकिन विदेश नीति में एक दशक को भी अक्सर गंभीर मूल्यांकन के लिहाज से पर्याप्त नहीं माना जाता ।

हालांकि, पिछला दशक इस मामले में अपवाद रहा है. इस दौरान वैश्विक राजनीति में आए बदलावों की प्रकृति तो खास है ही, इनका दायरा भी व्यापक रहा है। ऐसे में भारतीय विदेश नीति में भी बुनियादी बदलाव आना स्वाभाविक है। लेकिन विदेश नीति में आए इन बदलावों पर वैश्विक हालात और समीकरणों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी की भी अमिट छाप नजर आती है।मोदी ‘इंडिया फर्स्ट’ के मंत्र को केंद्र में रखते हुए एक व्यावहारिक विदेश नीति को अपनाकर विरोधियों और समर्थकों दोनों को चौंकाने में कामयाब रहे।उन्होंने भारतीय विदेश नीति को ऐसा रूप दिया, जिसके बारे में पहले शायद ही किसी ने कल्पना की हो।पीएम मोदी की अगुवाई में सबसे बड़ा बदलाव यह आया कि वैश्विक मंच पर न केवल अहम भूमिका निभाने बल्कि रूल मेकर के रोल में आने की नई दिल्ली की आकांक्षा लगातार मजबूत होती गई। वैश्विक मंच पर मोदी की कूटनीति ने भारतीय आकांक्षाओं को नए पंख दिए।इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले दशक तक वैश्विक मामलों में अहम भूमिका की पेशकश ठुकराने वाला देश एक ऐसे राष्ट्र में तब्दील हो गया, जो ग्लोबल गवर्नेंस में योगदान करने के लिए हमेशा आगे नजर आता है।एक बेहतरीन उदाहरण तब सामने आया, जब यूक्रेन युद्ध के बीच भारत पश्चिमी देशों के साथ करीबी रिश्ता बनाए रखते हुए रूस से अपने विशिष्ट संबंध भी कायम रखने में कामयाब रहा।

पिछले महीने जब पीएम मोदी रूस के दौरे पर गए थे तब यूक्रेन के पक्ष में खड़े पश्चिमी देशों की निगाहें उन पर टिकी रही थी। अब जब वे यूक्रेन के दौरे पर गए तो फिर एक बार दुनिया उनकी तरफ देख रही है। पहले जहां रूस ने यूक्रेन पर भीषण हमले करके उसे तबाह कर दिया, वहीं अब यूक्रेन ने आक्रामक हमले करके रूस के अंदर कुछ क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया है। इस स्थिति में रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ बड़े हमले किए जाने की आशंका बनी हुई है।पीएम मोदी शुक्रवार को यूक्रेन के दौरे पर पहुंचे और वहां उन्होंने जेलेंस्की से मुलाकात की।पीएम मोदी और जेलेंस्की की तस्वीरों में, उनका आत्मीयतापूर्ण मिलन, उनकी बॉडी लेंग्वेज कई संदेश देने वाली रही।राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ बैठक में मोदी ने कहा, “भारत हमेशा से शांति के पक्ष में रहा है। मैं कुछ दिन पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मिला था। तब मैंने मीडिया के सामने उनकी आंख से आंख मिलाकर कहा था कि यह युद्ध का समय नहीं है।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध में भारत ‘शांति के लिए दृढ़ता से खड़ा है।’ उन्होंने कहा, ‘हम पहले दिन से ही तटस्थ नहीं थे, हमने एक पक्ष लिया है और हम शांति के लिए दृढ़ता से खड़े हैं।’

मोदी और जेलेंस्की के बीच यूक्रेन के मैरिंस्की पैलेस में करीब 3 घंटे बैठक हुई। उन्होंने जेलेंस्की को भारत आने का न्योता दिया।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बैठक को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने बहुत अच्छी बताया। उन्होंने कहा, ‘यह एक ऐतिहासिक बैठक है। मैं प्रधानमंत्री के आने के लिए उनका बहुत आभारी हूं। कुछ व्यवहारिक कदमों के साथ यह एक अच्छी शुरुआत है। बैठक के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि दोनों नेताओं ने भारत के रूस से तेल खरीदने पर भी बात की। जयशंकर ने कहा, “तेल खरीदी का फैसला मार्केट की हालत के हिसाब से लिया जाता है। इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं है।”इससे पहले मोदी जेलेंस्की के साथ यूक्रेन नेशनल म्यूजियम पहुंचे, जहां उन्होंने जंग में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने बच्चों के मेमोरियल पर डॉल भी रखी।1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद यूक्रेन का गठन हुआ था। तब से आज तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन का दौरा नहीं किया था। दोनों देशों के बीच 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। भीषण युद्ध की विभीषिका झेलते एक देश का दर्द और हमेशा से शांति के पक्षधर रहे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सांत्वना…एक ऐसे त्रिकोण पर जहां एक कोने पर यूक्रेन है, दूसरे पर उसका दुश्मन रूस और तीसरे पर भारत, जो कि रूस का बहुत पुराना दोस्त है और यूक्रेन से भी जिसके सुसंबंध पुराने हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने जुलाई में रूस का दौरा किया था और अब अगस्त में वे यूक्रेन के दौरे पर पहुंच गए। उनके इन दोनों देशों के दौरे ऐसे वक्त पर हो रहे हैं जब रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के हालात 10 साल से बने हुए हैं और फरवरी 2022 से युद्ध लगातार चल रहा है। भारत के रूस और यूक्रेन से गहरे व्यापारिक संबंध हैं। भारत रूस से हथियार कई दशकों से लेता रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास युद्ध शुरू होने व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ने के बाद से भारत रूस के सस्ता कच्चा तेल भी ले रहा है।

दूसरी तरफ पिछले 25 वर्षों से भारत और यूक्रेन के व्यापारिक रिश्तों में भी गतिशीलता बनी हुई है। दोनों देशों के बीच वित्तीय वर्ष 2021-22 में 3.3 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। इसी दौरान रूस और भारत के बीच लगभग 50 अरब डॉलर का व्यापार हुआ।कूटनीतिक में सबसे बड़ी बात जिसे सभी मानते है कि इसमें राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है। कोई भी देश अपनी विदेश नीति किसी सिद्धांत को ध्यान में रख करके बनता है। भारत में दुनिया के सभी देश कि अगर विदेश नीति का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाए तो सभी देशों के लिए राष्ट्र हित ही सबसे होता है। भारत की विदेश नीति में एक बात जो निरंतर से है कि वह किसी भी गुट में नहीं रहता और सभी गुट भारत को अपने पाले में रखना चाहते हैं । पीएम नरेंद्र मोदी की पिछले लगभग 11 साल के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति में और प्रखरता आई है और सभी गुट भारत को अपने पक्ष में करना चाहते हैं। इसके साथ ही साथ है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बाद एक दूसरे के विरोधी देश और खेमा दोनों ही सुनता है। रूस यूक्रेन जंग के संदर्भ में पीएम नरेंद्र मोदी की वैश्विक प्रासंगिकता और उनकी कूटनीति को दुनिया ने देखा है। कुछ ही महीनो के अंतराल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रूस और यूक्रेन का दौरान करना पीएम नरेंद्र मोदी और भारत की वैश्विक महत्ता और उनकी वैश्विक नेता के तौर पर उभरने को दर्शाता है। इसके साथ ही साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस दौरे में किसी भी मामले की शांतिपूर्ण समाधान की वकालत को दोहराना उनकी स्पष्ट विदेश नीति को बताता है।स्पष्ट है की हालिया दिनों में भारत की वैश्विक धमक बढ़ी है और पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने देश हित को सर्वोपरि रखा है। इसके साथ ही वसुधैव कुटुम्बकम वाली विदेश नीति को चरितार्थ करने का प्रयास किया है।

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