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इस पूरे आयोजन के बाद कुंभ को संक्रमण के लिहाज़ से सुपर स्प्रेडर माना गया और कहा गया कि इसी कारण देश भर में कोविड की दूसरी लहर का प्रकोप देखने को मिला. एक आंकड़ा बताता है कि इस साल मार्च से जून के बीच कोविड के कारण 2.05 लाख लोगों की मौत हुई. अदालतों ने भी इस मेले के आयोजन को लेकर लगातार आलोचना और तीखी टिप्पणियां कीं. अब यहां से सवाल उठा कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है और क्या इस आयोजन को वाकई टाला जाता तो अच्छा होता?
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उत्तराखंड ने इस आयोजन पर क्या कहा?
आम धारणा जानने वाली एक संस्था प्रश्नम ने इन दो सवालों को लेकर एक सर्वे करवाया, जिसमें उत्तराखंड के सभी ज़िलों से करीब 2000 लोगों ने भाग लिया. इन लोगों ने दो सवालों पर अपनी राय रखी. पहला सवाल था कि अप्रैल में हुए कुंभ मेले को लेकर उनकी क्या राय है. इस सवाल के जवाब के लिए तीन विकल्प दिए गए थे, यह ज़रूरी था, इस साल रद्द किया जा सकता था और इस पर कोई राय नहीं है.
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इस सवाल के जवाब में 68 फीसदी लोगों ने माना कि कोविड को ध्यान में रखते हुए इस साल कुंभ के आयोजन को रद्द कर दिया जाता तो बेहतर होता. 12 फीसदी लोगों ने इस बारे में कोई भी राय रखने से इनकार किया, जबकि बाकी इस आयोजन के समर्थन में दिखे.
राज्य, केंद्र दोनों ही ज़िम्मेदार!
इस सर्वे में दूसरा सवाल यह पूछा गया था कि कोरोना के बावजूद उत्तराखंड में कुंभ का आयोजन करवाने के लिए किसे ज़िम्मेदार मानते हैं? इसके जवाब के लिए चार विकल्प थे, मोदी सरकार, राज्य सरकार, दोनों सरकारें या फिर कोई राय नहीं. इस सवाल के जवाब में लोग बंटे हुए दिखे. 39 फीसदी लोगों ने राज्य सरकार को ज़िम्मेदार माना तो 36 फीसदी ने दोनों सरकारों को. 19 फीसदी लोगों ने मोदी सरकार को ज़िम्मेदार मानने वाला विकल्प चुना.
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तो क्या निकला नतीजा?
सर्वे करवाने वाली संस्था प्रश्नम के फाउंडर राजेश जैन ने इस बारे में एक विस्तृत लेख लिखा है, जिसमें निष्कर्ष के तौर पर कहा गया कि कुंभ के आयोजन से उत्तराखंड नाखुश दिखा. जैन के मुताबिक इस सर्वे ने उस धारणा को गलत साबित किया, जिसके मुताबिक दावा किया जाता रहा कि लोग चाहते थे इसलिए कुंभ मेला करवाया गया. इससे पहले भी प्रश्नम ने छह हिंदीभाषी राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड और हरियाणा के लोगों के बीच एक सर्वे करवाया था. जैन के मुताबिक उस सर्वे में 42 फीसदी लोगों ने केंद्र सरकार को कुंभ के आयोजन के लिए ज़िम्मेदार माना था. अब उत्तराखंड के लोगों ने राज्य व केंद्र दोनों को इसके लिए कठघरे में खड़ा किया है.
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