माह ए रमज़ान मुबारक़ – पवित्र रमजान के मुक़द्दस महीने का इतिहास, नियम और महत्व जानिए

रोजा रूहानी काउंटर है। तक्वा तरा़ज़ू है। पाकीज़गी और परहेज़गारी पलड़े हैं। सब्र इस तराजू की डंडी या ग्रिप है।रोजे के दौरान मुसलमानों को हूजुर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सुन्नतों पर अमल करना चाहिए। नफ्ल और तहज्जुद के साथ तरावीह भी पाबंदी के साथ पढ़ने की बात कही गई है।

रमज़ान का मुकद्दस महीना बस शुरू होने को है। पूरी दुनिया के मुसलमान रोजे रखते हैं और दिन के पांच वक्त की नमाज़ के लिए मस्जिदों में जुटते हैं इस दौरान मस्जिदों में भीड़ दिखने लगी है तो रात में इशा के बाद भी तरावीह की नमाज़ के लिए मस्जिदें गुलज़ार हो जाती हैं। बुखारी शरीफ की रिवायत के अनुसार, रमज़ान के 3 हिस्से हैं। रमज़ान के पहले 10 दिन को पहला अशरा (अशरा-ए-रहम), बीच के 10 दिन को दूसरा अशरा (अशरा-ए-मगफिरत) और आखिरी के 10 दिन को तीसरा अशरा (अशरा-ए-निजात) कहा जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या खास है इस अशरे में और कैसे इस अशरे में अल्लाह की रहमत तलब करें।पहले 10 दिनः –  रमज़ान के पहले 10 दिन में अल्लाह का खूब जिक्र और बड़ाई बयान करें। रोजे के दौरान दुआ की तिलावत करें और अल्लाह से उसके रहम की तलब करें। हदिसों में आया है कि रमज़ान में एक दुआ पढ़ने से बहुत सवाब मिलते हैं।

ऐसे पूरी कर सकते हैं तिलावत: – वहीं, रमज़ान में भी कुरान के तिलावत का अलग फजीलत है। हर रोज अगर पांचों वक्त की नमाज़ के बाद चार से पांच पन्ने अगर पढ़ी जाए तो रमज़ान के अंत तक कुरान की पूरी तिलावत हो जाएगी।

दूसरों पर रहम रखें बरकरार: रमज़ान में मुसलमानों को दूसरों पर दया और रहम करना चाहिए, क्योंकि अल्लाह रहम उसी पर करता है, जो दूसरों पर रहम करता है। रमजानुल मुबारक में लोगों को सदका- खैरात भी ज्यादा से ज्याद करना चाहिए। अल्लाह उसी को प्यार करता है जो दूसरों को प्यार और उसकी मदद करता है।सदका भी करना जरूरी: सदका के बारे में अल्लाह कुरान में फरमाता है कि जरूरतमंदों को सदका छुपाकर दो। इससे उनकी गुरबत और इज्जत बरकरार रहती हैं।

पड़ोसियों से रहम और नमाज की पाबंदी

रोजे के दौरान मुसलमानों को हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नतों पर अमल करना चाहिए। उन्होंने रमजान में सेहरी की फजीलत को बयान करते हुए इसे खाने को कहा है। रमजान में अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पड़ोसियों का भी ध्यान रखने का हुक्म मिला है। एक-दूसरे की मदद करने से लेकर सुख-दुख में भी साथ देने की सलाह दी है।

ज्यादा से ज्यादा पढ़ें नमाज़:
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस खास महीने में ज्यादा से ज्यादा नमाज़ पढ़ने का सलाह दी। नफ्ल और तहज्जुद के साथ तरावीह भी पाबंदी के साथ पढ़ने की बात कही गई है। वहीं, नमाज़ को तनहा नहीं, बल्कि मस्जिद में जमात के साथ पढ़ने पर जोर दिया गया है, क्योंकि जमात के साथ नमाज़ पढ़ने से 70 गुना सवाब मिलता है।

रमजान का इतिहास:

इस्लामिक मान्यता अनुसार 610 ईसवी में पैगंबर मोहम्मद साहब पर लेयलत-उल-कद्र के मौके पर पवित्र कुरान शरीफ नाजिल हुई थी। तभी से रमजान माह को पाक माह के रूप में मनाया जाने लगा। कुरान में इस बात का जिक्र है कि रमजान माह में अल्लाह ने पैगंबर मोहम्मद साहब को अपने दूत के रूप में चुना है। इसलिए इस महीने में की कई इबादत का सवाब बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना अधिक मिलता है। रमजान के महीने में रोजा रखने के साथ कुरान पढ़ने के भी काफी फजीलत है।
रोजे रखने के नियम:

रोजा रखने के दौरान खाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए और पूरे दिन अपने मन को साफ रखना चाहिए।

– किसी की बुराई या बेइज्जती नहीं करनी चाहिए। अगर रोजा रखने वाला व्यक्ति किसी के बारे में गलत सोचता है तो उसका रोजा फलता नहीं है।

– रमजान के पाक महीने में देशभर में कुल पांच बार नमाज पढ़ी जाती है। सूर्योदय से पहले सहरी लेना जरूरी है। यानी सूर्य के उगने से पहले भोजन किया जाता है फिर पूरे दिन बिना खाये पिये रहा जाता है।

– सूरज के ढलने के बाद इफ्तार करते हैं। यानी शाम को भोजन किया जाता है। भोजन करने से पहले खुदा की इबादत की जाती है।

– रोजा रखने वाले व्यक्ति को अपना रोजा खजूर खाकर तोड़ना होता है और फिर दूसरी चीजें खा सकते हैं।

– रोजे का मतलब बस भूखे प्यार रहने ही नहीं है बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोजा रखा जाता है। मतलब न ही इस दौरान कुछ बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें।

– रोजे के दौरान औरत के लिए मन में बुरे विचार या शारीरिक संबंधों के बारे में सोचने पर भी मनाही होती है।

– रोजा रखने वाले को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इस समय दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर न निगले नहीं तो उसका रोजा टूट जाएगा।

——- आप सभी रोज़ेदारों को रमज़ान की रौनकें मुबारक़ ——

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