उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक इन दिनों दलबदल का तूफ़ान उठा हुआ है। योगी से धामी सरकार तक भाजपा के दिग्गज सिपाही कांग्रेस और अन्य पार्टियों में अपना नया ठिकाना बना रहे हैं। मौर्या हों या दारा सिंह या हरक सिंह हों या फिर सरिता आर्य जैसे बड़े नाम जैसे जैसे नामांकन करीब आ रहा है और टिकट की घोषणा हो रही है , पार्टियों से आने जाने का क्रम तेज़ हो चला है।
टिकटों का बंटवारा शुरू होते ही पिछले एक हफ्ते में यूपी से दो बड़े मंत्रियों समेत 15 से ज्यादा विधायक BJP छोड़ सपा में और सपा के कई विधायक और नेता BJP का दामन थाम चुके हैं। वहीँ उत्तराखंड में दो भाजपा के मंत्री कांग्रेस की राह पकड़ चुके हैं।
और महिला कांग्रेस अध्यक्ष रही पूर्व कांग्रेस विधायक सरिता आर्य अब भाजपा में आ गयी है। दरअसल ये सभी दलबदलू फिर से विधायक बनने का सपना संजोए बैठे हैं, लेकिन पिछले 10 चुनावों के आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। इसके मुताबिक 100 दलबदलुओं में से 15 से कम ही चुनाव जीत सके हैं।
हां, इस आंकड़ेबाजी का एक जरूरी पहलू और भी है। अगर दल बदलने वाला मौसम वैज्ञानिक है। यानी, अगर उसे यह पता है कि चुनावी लहर किस ओर चल रही है तो उसकी जीत की संभावना बढ़ जाती है। अब इस बात को भी आंकड़ों की भाषा में समझते हैं। अगर दलबदलू ने अपना ठिकाना उस पार्टी को बनाया, जो चुनाव बाद सरकार बना लेती है तो उसकी जीत की उम्मीद 84% हो जाती है। पिछले तीन चुनाव तो कम से कम यही बता रहे हैं।
मौजूदा विधायकों के सामने टिकट पाने की चुनौती
आज के समय में पार्टियों के पास ज्यादा ऑप्शन मौजूद हैं। ऐसे में मौजूदा विधायकों और मंत्रियों के सामने टिकट पाने की चुनौती होती है। इसका प्रमुख कारण पिछले चार चुनावों को देखने से समझ में आता है। इस दौरान सभी पार्टियों ने सिर्फ 40% मौजूदा विधायकों को ही दोबारा पार्टी से टिकट दिया।
ऐसे में मौजूदा विधायकों के टिकट कटने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए कई मौजूदा विधायक चुनाव के दौरान टिकट पाने के लिए पार्टी बदलने तक को तैयार हो जाते हैं। साथ ही सत्ता में रहने वाली पार्टियां सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए भी मौजूदा विधायकों और मंत्रियों को कम संख्या में टिकट देती हैं।
भाजपा ने ही नहीं अब तो कांग्रेस ने भी एक परिवार एक टिकट का फार्मूला फिट कर दिया है ऐसे में कई ऐसे नेता विधायक और मंत्री हैं जो अपने ख़ास को माननीय बनाने की जुगत में थे लेकिन उनका ये ख्वाब अब टूटता दिख रहा है। ऐसे में दलबदल कर वो अपनी मंशा साधने में जुट गए हैं। देखिये अभी ये सिलसिला कहाँ जाकर थमेगा क्योंकि मुरादों की बारात थोड़ा लम्बी ही चलेगी।