पंछी पिंजरा तोड़ के चला गया, 72 साल के पंकज उदास ने हम सबको किया उदास

न्यूज़ वायरस नेटवर्क                                                                         Manish Chandra

हम सबको नाम फिल्म का वह गाना याद है जिसका आज तक कोई सानी नहीं है .. परदेस में रहने वाला हर शख्स और उसकी याद करने वाले उसके घर के लोग हमेशा यही कहते हैं चिट्ठी आई है चिट्ठी आई है.. इस गाने की एक लाइन है तूने पैसा बहुत कमाया इस पैसे ने देश छुड़ाया देश पराया छोड़ के आजा पंछी पिंजरा तोड़ के आजा… और आज इसी पंछी ने इस इंसान रूपी पिंजरे को छोड़कर परमात्मा में लीन हो गया.. लेकिन पंकज उदास की मकबूलियत , उनकी मीठी आवाज़ और इस गाने की तासीर दिल में अपनों से मिलने की वो तड़प जगाती है.. जो दावे के साथ कहना है कि ऐसी तड़प कोई न जगा पाएगा…

अजीब संयोग है कि इसी गाने की एक लाइन इस साल की आने होली में आपका सीना चाक़ कर देगी और वो ये – “तेरे बिन आई होली पिचकारी से छूटी गोली” ये बानगी है उनकी बयानगी की अदायगी की .. महसूस कीजिए जितनी खूबसूरत सूरत के वो मालिक थे उतना ही दिलकश अंदाज़ ए बयां भी था…

मोहब्बत करने वालों का तराना था

ना कजरे की धार ना मोतियों के हार फिर भी इतनी सुंदर हो… जितना खूबसूरत लिखा गया है उतना ही लरज़ता हुआ बयां किया गया है..

शराब के शौकीनों के लिए

“एक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा”.. “पियो लेकिन रखो हिसाब के थोड़ी-थोड़ी पिया करो”.. अब आप ही बताइए पंकज उदास जी ने सबके लिए कुछ ना कुछ कहा था फिर वह चाहे मोहब्बत हो ,आशिकी हो या शराबियों की शराबियत हो..

तमाम मीडिया की सुर्खियों में उनके जीवन के आगे की पीछे की कहानी पेश की जा रही हैं लेकिन आप सोच कर देखो जो आप महसूस कर रहे हों हम यहां पर वही बयां करने की कोशिश कर रहे हैं.. पंकज जैसी तबीयत के मालिक थे तभी तो उनके जैसा पिता ही अपनी बेटी का इतना अलहदा नाम रख पाता है .. जिसका नाम नायाब है और दूसरी बेटी का नाम रेवा है.. पंकज जी ने जिनसे मोहब्बत की शादी भी उन्हीं से की और उनकी हम जुल्फ का नाम फरीदा है जो इस वक्त अब उनके नाम के साथ उन्हें महसूस करते हुए उनकी गज़लों जैसी जिंदा हैं…

11 साल की उम्र में 5000 लोग सुनने आए थे

भारत चीन का युद्ध चल रहा था और इस वक्त सारे मीडिया ने यही बताया है कि उनकी उम्र महज 11 साल थी और राष्ट्र कवि प्रदीप ने जो गीत लिखा था “ऐ मेरे वतन के लोगों” तो जब उन्होंने गया तब उनको सुनने के लिए 5000 लोगों की भीड़ जुट आई थी और इस भीड़ से एक सुनने वाली हस्ती ने उस ज़माने में उनको 51 रुपए दिए थे ..जोड़ लीजिए आज के हिसाब से वह रकम कितनी बैठती है .. यानी कि उस शख्स ने महसूस कर लिया था कि पंकज कितने कीमती हैं अपने फ़न की हुनरमंदी में.. गायकी उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली थी.. उनके भाई मनहर उदास उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में लेकर आए थे मतलब कि बड़े भाई ने ये बचपन में ही जान लिया था कि उनके परिवार और देश का नाम एक ऐसे फनकार के नाम पर लिया जाएगा जहां पर कोई दूसरा पंकज उदास पैदा नहीं होगा और इसीलिए आज हम सब वाकई में पंकज के बिना उदास हैं।

न्यूज़ वायरस की और से पंकज उदास जी को गीतांजलि पूर्ण श्रद्धांजलि

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