UP Election 1st Charan: दो दिन बाद है वोटिंग, लेकिन न तो भाजपा का संकल्प पत्र आया और न ही सपा का घोषणा पत्र

उत्तर प्रदेश में होने वाले सात चरणों के विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण की वोटिंग 10 फरवरी को होगी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक सत्ता पक्ष और विपक्ष ने प्रदेश की जनता को अपने संकल्प पत्र और घोषणा पत्र के माध्यम से यह जानकारी ही नहीं दी है कि वह किन मुद्दों पर और किस विजन के साथ अगले पांच साल सरकार में रहेंगे। इस लेटलतीफी को राजनीति के जानकार राजनीतिक दलों की लापरवाही मानते हैं।

भाजपा को रविवार को जारी करना था घोषणापत्र

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी ने अभी तक जनता के बीच में अपना संकल्प पत्र और घोषणा पत्र नहीं रखा है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव लगातार कहते आए हैं कि जब तक भाजपा अपना संकल्प पत्र नहीं जारी करेगी तब तक समाजवादी पार्टी भी अपना घोषणापत्र नहीं जारी करेगी। भारतीय जनता पार्टी को रविवार को अपना संकल्प पत्र जारी करना था लेकिन वह जारी नहीं हो सका। यही वजह रही कि समाजवादी पार्टी अब तक अपना घोषणापत्र नहीं जारी कर सकी है। हालांकि समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने अलग-अलग मंचों से आने वाले पांच सालों में जनता के लिए क्या करने वाले हैं इसे बताया जरूर है लेकिन समग्र रूप से इसकी जानकारी अभी तक नहीं दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए।

जनता के हित में नहीं यह लेटलतीफी

राजनीतिक विशेषज्ञ और सेंटर फॉर लोकल पॉलिटिकल स्टडीज के पूर्व संयोजक प्रोफेसर राशिद हसन कहते हैं कि यह रवैया किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए कम से कम जनता के हित में तो बिल्कुल नहीं है। वह कहते हैं अगर कोई राजनीतिक दल अपना एजेंडा पहले तैयार कर लेता है तो उसे जनता के सामने रखने में क्या गुरेज है। अगर जनता को ईमानदारी से राजनीतिक पार्टियों के विजन को ध्यान में रखकर ही वोट देने के लिए आग्रह करना है तो राजनीतिक पार्टियों को वक्त पर अगले पांच साल में जनता के लिए किए जाने वाले कामों का पूरा ब्यौरा दे देना चाहिए। ताकि वोटर इस बात का आकलन कर सके कि प्रदेश के लिए किस राजनीतिक दल की योजनाएं हितकारी हैं और उसी आधार पर मतदान करें। राशिद हसन कहते हैं, दरअसल घोषणा पत्र जैसी चीजें आज के दौर में महज खानापूर्ति जैसी ही नजर आती हैं। वे कहते हैं अगर चुनाव से दो दिन पहले कोई घोषणा पत्र जारी होगा तो जनता उसे पढ़ कर और फिर उसे समझ कर राजनीतिक दलों को वोट देने नहीं जाएगी। वह कहते हैं हालांकि राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र की अधिकांश बातें नेताओं की जनसभाओं और सोशल मीडिया के माध्यमों से जनता तक पहले ही पहुंच जाती हैं। फिर भी अगर घोषणापत्र रस्म अदायगी जैसी ही है तब भी उसको वक्त पर पूरा ही करना चाहिए।

सपा और भाजपा के बीच दिखा टकराव

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में इस बार सिर्फ घोषणापत्र पर ही समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच टकराव नहीं हुआ है बल्कि प्रत्याशियों को उतारने को लेकर भी दोनों राजनीतिक दलों का आपसी टकराव सामने दिखा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तो समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी भी नामांकन की आखिरी तारीख से कुछ रोज पहले ही उतारे गए। उसमें भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशी सबसे बाद में उतारे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आखिरी समय तक समाजवादी पार्टी लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों का इंतजार करती रही। बहुत देरी होने पर समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों से पहले अपने कैंडिडेट की सूची जारी कर दी थी।

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