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उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में कोरोना की रफ्तार बरकरार
उत्तराखंड में कोरोना का कहर भले ही धीरे-धीरे कम हो रहा हो, लेकिन कुमाऊं के दो पहाड़ी जिलों में इसकी रफ्तार कम होती नहीं दिख रही है. हालात ये हैं कि इन पहाड़ी जिलों ने पॉजिटिविटी रेट में मैदानी जिलों को भी पीछे धकेल दिया है.
पिथौरागढ़. उत्तराखंड (Uttarakhand) में कोरोना का कहर भले ही धीरे-धीरे कम हो रहा हो, लेकिन कुमाऊं के दो पहाड़ी जिलों में इसकी रफ्तार कम होती नहीं दिख रही है. हालात ये हैं कि इन पहाड़ी जिलों ने पॉजिटिविटी रेट में मैदानी जिलों को भी कोसों पीछे धकेल दिया है. कई पहाड़ी इलाकों में कोरोना संक्रमण की दर नीचे उतरती नहीं दिख रही है.
उत्तराखंड में अब खासकर मैदानी जिलों में तो कोरोना संक्रमण की काफी कम हो गई है. यही नहीं पॉजिटिविटी रेट के मामले में देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जैसे जिले काफी पीछे आ गए हैं. लेकिन हैरानी इस बात की है कि कुमाऊं के दो विशुद्ध पहाड़ी जिलों में पॉजिटिविटी रेट कम नहीं हो रहा है. अल्मोड़ा जहां 8.15 की दर से पहले स्थान पर कायम हैं, वहीं पिथौरागढ़ 4.93 फीसदी की दर के साथ तीसरे स्थान पर बना हुआ है. ये बात अलग है कि इन दोनों जिलों की जनसंख्या मैदानी जिलों के मुकाबले काफी कम है. पहाड़ी जिलों में बड़े पॉजिटिविटी रेट को लेकर विपक्ष भी सरकार पर हमलावर है.
सूबे के पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल का कहना है कि पहाड़ी जिलों के गांवों में कोरोना संक्रमण कम नहीं हो रहा है. इसकी असल वजह ये है कि सरकार और हेल्थ डिपार्टमेंट ने गांवों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया.
बडे पॉजिटिविटी रेट में कुमाऊं का नैनीताल भी दूसरे नम्बर पर हैं. नैनीताल में ये दर 5.40 फीसदी है, लेकिन नैनीताल सौ फीसदी पहाड़ी जिला नहीं है और न ही इसकी जनसंख्या कम है. बात मैदानी जिलों के करें तो हरिद्वार 1.56 फीसदी के साथ सबसे पीछे है, जबकि 12 वें नम्बर पर ऊधमसिंह नगर है. वहीं देहरादून का पॉजिटिविटी रेट 2.98 फीसदी है.हेल्थ डिपार्टमेंट का कहना है कि अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में सबसे अधिक सैंपलिंग हो रही है. पिथौरागढ़ के सीएमओ डा. हरीश पंत और अल्मोड़ा कीं सीएमओ डा. स्वाती ह्यांकि का बड़े पॉजिटिविटी रेट के पीछे एक ही तर्क है, इनका कहना है कि जिलों में सैपलिंग बहुत ज्यादा हो रही है, इसीलिए पॉजिटिविटी रेट भी बड़ा हुआ है.
कोरोना की पहली लहर का कहर सूबे के पहाड़ी जिलों में भले ही कम दिखा हो,लेकिन दूसरी लहर ने पहाड़ को भी अपनी चपेट में पूरी तरह लिया हुआ है. यही वजह है कि कम जनसंख्या होने के बाद भी पहाड़ों में भारी तादात में लोग संक्रमित हुए हैं, साथ ही मौत का आंकड़ा भी बढ़ा है.
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