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Uttarakhand Sex Ratio : उत्तराखंड ने प्रति 1000 बालकों पर 160 कम बालिकाओं के जन्मने के आयोग के नंबरों को गलत बताते हुए कहा है कि इन नंबरों ने राज्य के रिकॉर्ड को 100 से ज़्यादा अंकों के फर्क से पिछड़ा दर्शाया. जानिए क्या हैं किसके दावे.
देहरादून. इस साल की नीति आयोग की रिपोर्ट ने जन्मगत लिंग अनुपात को लेकर जो आंकड़े जारी किए, उनमें उत्तराखंड को अंतिम स्थान पर रखा. केंद्रीय संस्था ने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स की सूची जारी करते हुए इसमें कहा था कि उत्तराखंड बालक बालिका अनुपात के मामले में देश का सबसे पिछड़ा राज्य है, जहां यह अनुपात प्रति 1000 बालकों पर 840 बालिकाओं का है. पिछले ही हफ्ते आए इन आंकड़ों को अब उत्तराखंड सरकार ने चुनौती दी है और साफ तौर पर इन्हें गलत बताते हुए कहा है कि इस गलती से राज्य की छवि खराब हुई है, जिसके बारे में आयोग को लिखा जाएगा.
पिछले गुरुवार को नीति आयोग द्वारा जारी आंकड़ों पर महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने कहा की नीति आयोग और राज्य के आंकड़ों के बीच काफी फर्क है. उत्तराखंड ने दावा किया है कि उसके डेटा के मुताबिक राज्य में जन्म पर सेक्स रेशो 949 का है यानी नीति आयोग के आंकड़ों से तुलना की जाए तो 109 अंकों का बड़ा अंतर है. नीति आयोग के सेक्स रेशो डेटा के बारे में न्यूज़18 की खबर को आप विस्तार से पढ़ सकते हैं.
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मेनका गांधी ने लोकसभा में 2017 में जो आंकड़े बताए थे, तब उत्तराखंड के कई ज़िले सेक्स रेशो के मामले में पिछड़े हुए थे.
क्या है उत्तराखंड का दावा?
आर्य ने राज्य के डेटा के बारे में बताते हुए कहा कि 13 ज़िलों में से 6 में सेक्स रेशो 950 से ज़्यादा है. वहीं, बागेश्वर में तो प्रति 1000 बालकों पर 1012 बालिकाओं का जन्म होने का डेटा है. आर्य के ही हवाले से टीओआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि एसडीजी इंडेक्स लॉंच करने वाले नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार से उत्तराखंड सरकार लिखित में बातचीत करेगी और अपने आंकड़े सामने रखेगी. आर्य ने कहा, ‘हमने चर्चा की थी, लेकिन पता नहीं आयोग के पास 840 का आंकड़ा कहां से आया!’
क्या है उत्तराखंड का दावा?
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