भारतीय सेना की सबसे बहादुर यूनिट है “राष्ट्रीय राइफल्स “

राष्ट्रीय राइफल्स भारतीय सेना की सबसे बहादुर यूनिटों में से एक है, यह सबसे खास इसलिए है, क्योंकि ये सेना की एकमात्र ऐसी बटालियन है, जिसमें इंफेंट्री, आर्टिलरी, आर्म्ड, सिग्नल से लेकर इंजीनियर तक सब सैनिक एक साथ एक ही लक्ष्य यानी आतंक के सफाए के लिए काम करते हैं. आधुनिक प्रशिक्षण और अत्याधुनिक हथियारों से लैस इसी बटालियन को कश्मीर में ऑपरेशन ऑलआउट की जिम्मेदारी दी गई है.

1990 में हुआ था गठन

तीन दशक पहले 1990 में तत्कालीन सेना प्रमुख वीएन शर्मा ने राष्ट्रीय राइफल्स का गठन किया था. इस बटालियन के पहले डीपी लेफ्टिनेंट जनरल पीसी मनकोटिया थे. सबसे पहले इसकी 6 बटालियन बनाई गईं थीं, जिनमें से 3 को पंजाब की जिम्मेदारी दी गई थी और तीन बटालियन कश्मीर में तैनात की गई थीं. वर्तमान में इसकी तकरीबन 65 बटालियन हैं. खास बात ये है कि इस यूनिट में आधे जवान इंफेंट्री से लिए जाते हैं, शेष अन्य यूनिटों से भर्ती किए जाते हैं. आतंकियों को खोजना, आत्मसमर्पण कराना या मार गिराना ही इनका लक्ष्य होता है.

हर दम रहते हैं तैयार

जम्मू कश्मीर में आतंक के सफाए की जिम्मेदारी राष्ट्रीय राइफल्स है, ऐसे में इन्हें हर पल तैयार रहना पड़ता है, सूचना मिलने पर मिनटों में तैयार होकर ये तय स्थान पर निकल जाते हैं, ऑपरेशन को प्लान करने के लिए भी इनके पास कुछ ही वक्त होते हैं. हाल ही में एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में राष्ट्रीय राइफल्स के जवान ने बताया था कि कहीं भी आतंकी होने की सूचना मिलने के बाद उन्हें हर हाल में 10 से 15 मिनट के अंदर निकलना पड़ता है. इसमें दो मिनट उन्हें तैयार रहने के लिए दिए जाते हैं, शेष में ऑपरेशन प्लान करने के साथ गाड़ी में बैठकर निकलने तक का काम किया जाता है.

खास तरह से दी जाती है ट्रेनिंग

कश्मीर में आतंकियों के सफाए के साथ आम लोगों की सुरक्षा का दायित्व ही भारत की यही यूनिट निभाती है, ऐसे में इन्हें खास तरह से ट्रेनिंग दी जाती है. इसके प्रशिक्षण में हर बात का खास तौर पर ध्यान रखा जाता है. इन्हें ये सिखाया जाता है कि यदि ऑपरेशन के दौरान आतंकियों का साथ कोई भटका हुआ युवक दे रहा है तो उसका आत्मसमर्पण कराएं. ये इनके प्रोटोकॉल में शामिल होता है.

अत्याधुनिक हथियार और उपकरणों से लैस

राष्ट्रीय राइफल्स के जवान अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस होते हैं, इनके पास एलएमजी, 40 एमएम एमजीएल यानी मल्टी ग्रेनेड लांचर, एके 47 होते हैं, ऑपरेशन पर निकलने वाली टुकड़ी को अपने साथ प्राथमिक चिकित्सा किट, ड्रोन, एयर मोड कॉर्डन लाइट रखनी पड़ती, इसके अलावा सर्विलांस टीम टैम्बो साइट लेकर चलती है जो थर्मल इमेज बनाता है, इसकी मदद से आतंकी की हर एक्टिविटी पर नजर रखी जाती है, यह वीडियो भी बना सकता है और फोटो भी क्लिक करता है.

हर पल रहता है जान का खतरा

ऑपरेशन की सूचना के बाद राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों को आतंकियों का पता लगाने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाने पड़ते हैं, यदि शहरी इलाका है तो ये तय नहीं होता कि आतंकी किस घर में छिपे हैं या कहां से फायरिंग कर रहे हैं, जंगलों में ही यही हालात होते हैं, एक टीवी इंटरव्यू में जवान ने बताया कि एयर कॉर्डन लाइट जलाने वाले को सबसे ज्यादा खतरा होता है, ज्यादातर ऑपरेशनों में लाइट जलाने वाले को ही पहली गोली लगती है, ऐसे में अब जवान लाइट को दूर रखते हैं और पीछे आकर इसे जलाते हैं, ताकि खतरा कम रहे. आतंकियों को मार गिराने के बाद उनकी शिनाख्त करते हैं.

लेना पड़ता है नो क्लेम सर्टिफिकेट

कश्मीर में ज्यादातर आतंकी घरों का सहारा लेते हैं, ऑपरेशन के बाद राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों को घर के मालिक से नो क्लेम सर्टिफिकेट भी लेना पड़ता है. ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जिस घर में आतंकियों को मार गिराया गया, वहां कोई नुकसान न हुआ हो या चोरी न हुई हो

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