मथुरा में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन लट्ठमार होली खेली जाती है. इस दिन नंदगांव के लड़के या आदमी यानी ग्वाला बरसाना जाकर होली खेलते हैं. वहीं, अगले दिन यानी दशमी पर बरसाने की ग्वाले नंदगांव में होली खेलने पहुंचते हैं.ये होली बड़े ही प्यार के साथ बिना किसी को नुकसान पहुंचाए खेली जाती है. इसे देखने के लिए हज़ारों भक्त बरसाना और वृंदावन पहुंचते हैं हर साल इस मज़ेदार होली को खेला जाता है. लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा के समय से हुई. मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाने होली खेलने पहुंच जाया करते थे.कृष्ण और उनके सखा यहां राधा और उनकी सखियों के साथ ठिठोली किया करते थे, जिस बात से रुष्ट होकर राधा और उनकी सभी सखियां ग्वालों पर डंडे बरसाया करती थीं. लाठियों के इस वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके दोस्त ढालों और लाठी का प्रयोग करते थे.प्रेम के साथ होली खेलने का ये तरीका धीरे-धीरे परंपरा बन गया.
ये होली बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में खेली जाती है.लेकिन खास बात ये औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां नहीं बरसातीं.वहीं, बाकी आसपास खड़े लोग बीच-बीच में रंग ज़रूर उड़ाते हैं..
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दुनिया भर से इस अनोखी परम्परा और रंग भरी अद्भुत होली को देखने के लिए लोग मथुरा वृंदावन और बरसाना पहुँचते हैं। तो आप भी अगर भारतीय लोक संस्कृति की इस अनूठी विरासत के रंग को करीब से महसूस करना चाहते हैं तो इस बार होली ब्रज भूमि पर ही मनाएं .