आखिर क्यों बढ़ जाती है श्राद्ध पक्ष में कौए और पीपल की अहमियत ?

न्यूज़ वायरस के लिए फ़िरोज़ आलम गाँधी की रिपोर्ट

उत्तराखंड के हरिद्वार में श्राद्ध पक्ष के दौरान देश भर से परिजन अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति और शांति के लिए पहुंचते हैं। गंगा घाटों और मंदिरों में पिंडदान श्राद्ध और केश तर्पण का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 10 सितंबर से होगी। पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों को याद करके उनकी मृत्यु की तिथि पर उनको याद करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में लोग अपने पितरों को पिंड दान करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण भोज कराते हैं। पितृ पक्ष में कौए की अहमियत काफी बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि कौआ यम का प्रतीक होता है। पितृ पक्ष में कौए को खाना खिला कर पितरों को तृप्त किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर पितृपक्ष में घर के आंगन में कौआ आकर बैठ जाए तो यह अत्यंत शुभ संकेत होता है और अगर कौआ आपका दिया हुआ भोजन खा लें तो यह अत्यंत शुभ होता है। इसका अर्थ है कि पितृ आपसे बेहद प्रसन्न हैं और आपको ढेर सारा आशीर्वाद देकर गए हैं। आइए जानते हैं पितृ पक्ष में कौए का क्या महत्व है।यमराज का प्रतीक है कौआ

हिंदू शास्त्रों के मुताबिक कौए को यमराज का संदेश वाहक माना गया है। कौए के माध्यम से ही पितृ आपके पास आते हैं। भोजन करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। कौआ यमराज का प्रतीक होता है। पितृपक्ष के दौरान कौए को भोजन खिलाना यानी अपने पितरों को भोजन खिलाने के बराबर होता है। पितृ पक्ष में कौए को रोजाना भोजन कराना चाहिए। इससे आपके हर बिगड़े काम बनने लगेंगे।

पीपल के पेड़ का भी है महत्व

पितृ पक्ष के समय यदि कौआ नहीं मिलता है तो आप कुत्ते या गाय को भी भोजन खिला सकती हैं। इसके अलावा पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व है। पीपल को भी पितृ का प्रतीक माना गया है। ऐसे में पीपल को जल अर्पित करके पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है।

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