मुस्लिम कैलेंडर का नौवां महीना रमजान शुरू हो गया है। इस महीने में इस्लाम को मानने वाले सभी लोग रोजे रखते हैं। 30 दिन के रोजे पूरे होने के बाद ईद आती है। ऐसा माना जाता है कि रमजान महीने में पैगंबर मोहम्मद साहब को कुरान की आयतें उतरना शुरू हो गई थीं। पैगंबर साहब ने भी रोजे रखे थे। इसलिए इस्लाम को मानने वाले सभी लोगों के लिए रोजे रखना फर्ज माना गया है।
रोजे रखने वाले व्यक्ति को कई सख्त नियमों का भी पालन करना होता है। इस महीने में रोजे के साथ ही जकात यानी दान करने का भी विशेष महत्व है। ये पूरा महीना नेकी करने का और इबादत करने का है। रोजा रखने वाले व्यक्ति को मन, कर्म और वचन की भी पवित्रता रखनी होती है।
रमजान महीने में सेहरी और इफ्तारी की जाती है। रोज सुबह सूर्य उगने से करीब सवा घंटे पहले रोजा शुरू हो जाता है। शाम को सूर्यास्त होने तक रोजा रहता है। रोजा रखने वाले व्यक्ति सूर्य उदय होने से पहले और सूर्यास्त होने के बाद ही खा-पी सकते हैं।
सुबह सूर्य उदय होने से पहले जो कुछ खाया जाता है, उसे सेहरी कहते हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद जब रोजा खोला जाता है, तब इफ्तारी होती है। इफ्तारी में खजूर खाने की परंपरा है। सेहरी और इफ्तारी के बीच रोजे रखने वाले लोग न तो पानी पीते हैं और न ही कुछ खाते हैं। ये बहुत ही सख्त नियम है, जिसका पालन सभी करते ही हैं।
जो लोग स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों की वजह से रोजा रखने में असमर्थ हैं तो उनके लिए रोजा रखना जरूरी नहीं है। अगर कोई महिला गर्भवती है या जिन महिलाओं के बच्चे बहुत छोटे हैं, उनके लिए भी रोजे रखना जरूरी नहीं है। इनके साथ ही बुजुर्गों को भी रोजे के संबंध में रियायत दी जाती है। रोजे रखने वाले व्यक्ति को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि उनकी वजह से किसी का बुरा न हो, किसी का दिल न दुखे, किसी का नुकसान न हो। ऐसे शब्दों का उपयोग न करें, जिनकी वजह से किसी के मन को ठेस लग सकती है।