तो क्या अब मान लिया जाए कि उत्तराखंड को जल्द नया मुख्यमंत्री दिल्ली दरबार से मिलने जा रहा है। अभी तक मिले संकेत बता रहे हैं कि धामी पार्ट टू का फार्मूला असन्तुष्ट नेताओं के चलते पिछड़ रहा है और अब केंद्र ने नया चेहरा लगभग तय कर लिया है। संभावना प्रबल है कि राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का नाम केंद्र इसी हफ्ते घोषित कर सकती है। सूत्र बताते हैं कि यही वो अनिल बलूनी हैं जिस पर त्रिवेंद्र और तीरथ सरकार के इस्तीफे के बाद से ही सीएम बनने के कयास लगाए जा रहे थे।
बीते पांच साल के दौरान त्रिवेंद्र , तीरथ और धामी सरकार में भी केंद्रीय मंत्रियों से बलूनी लगातार पहाड़ से जुड़ी बड़ी योजनाओं पर स्वीकृतियां दिलाते रहे हैं । इसके साथ साथ पलायन को रोकने और रिवर्स पलायन को बढ़ावा देने के लिए चलाया गया अभियान भी उनकी लोकप्रियता को पहाड़ में बढ़ाता रहा है .…लिहाज़ा सांसद अनिल बलूनी के नाम पर केंद्र भरोसा जताते हुए उन्हें 2022 से 2027 के लिए उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री घोषित कर सकता है.….

पत्रकारिता से देश की सबसे बड़ी पार्टी के मुख्यमंत्री दावेदार तक का सफर तय करने वाले अनिल बलूनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , गृह मंत्री अमित शाह और केंद्र के तमाम मंत्रियों का बेहद करीबी बताया जाता है। यही वजह है कि जब उन्हें मोदी सरकार ने पार्टी का राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी बनाया तो अनिल बलूनी ने अपनी काबिलियत साबित की और मीडिया में पार्टी के लिए जमकर जिताऊ बैटिंग की।अनिल बलूनी का जन्म 2 सितंबर 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के कंडवालस्यु में हुआ था । केंद्र के भरोसेमंद अनिल बलूनी युवावस्था से राजनीति में सक्रिय रहे। भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश महामंत्री , निशंक सरकार में वन्यजीव बोर्ड में उपाध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख बने अनिल बलूनी 26 साल की उम्र में सक्रिय चुनावी राजनीति में उतर आए और राज्य के पहले विधानसभा चुनाव 2002 में कोटद्वार सीट से पर्चा भरा था ।

लेकिन उनका नामांकन पत्र निरस्त हो गया इसके खिलाफ रिपोर्ट गए थे और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2004 में कोटद्वार में उपचुनाव लड़ा लेकिन हार गए । इसके बाद भी वह लगातार पहाड़ में सक्रिय रहे बलूनी पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में सक्रिय थे और दिल्ली में संघ परिवार के दफ्तरों में मेलजोल बढ़ाते हुए नेताओं के संग घूमते दिखते थे।
इसी दौरान संघ के जाने-माने नेता सुंदर सिंह भंडारी से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगी और सुंदर सिंह भंडारी को जब बिहार का राज्यपाल बनाया गया तो भंडारी अपना ओएसडी यानी अपना ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी बना कर अपने साथ ले गए। इसी के बाद भंडारी को जब गुजरात का राज्यपाल बनाया गया तब बलूनी की कर्मभूमि बनी गुजरात , यही वो दौर था जो बलूनी की किस्मत का भाग्य पलटने वाला साबित हुआ।
उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे यही वह दौर था जब नरेंद्र मोदी के करीब आकर बलूनी ने अपनी काबिलियत और राजनीतिक रणनीतिकार की कुशलता का परिचय दिया ।अनिल बलूनी ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के साथ काम करना शुरू कर दिया और अगले कुछ सालों के भीतर मोदी के भरोसेमंद लोगों की टीम में शामिल हो चुके थे ।
भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने अनिल बलूनी की काबिलियत और महत्वाकांक्षा को गुजरात के दौरान ही भली-भांति समझ लिया था । लिहाजा जब अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उन्होंने अनिल बलूनी को राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी जैसी बड़ी जिम्मेदारी देते हुए यह साबित कर दिया था कि अनिल बलूनी आने वाले दिनों में पार्टी के लिए बड़ा नाम बन सकते हैं। अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद अनिल बलूनी को पार्टी प्रवक्ता और मीडिया प्रकोष्ठ का प्रमुख बनाया गया । एक तरह से वह अमित शाह के कोर ग्रुप में शामिल हो गए थे। वह मीडिया संबंधी कार्यों को देखते रहे हैं। फिलहाल मोदी के मीडिया संबंधी कार्यक्रमों का प्रबंधन कुशलतापूर्वक करना उनकी बायोडाटा का सबसे प्रमुख हाईलाइटर बन गया।
हालांकि ऐसा होता है तो अनिल बलूनी के लिए पहाड़ में पूरे 5 साल एक स्थाई और भरोसेमंद सरकार देना थोड़ा मुश्किल भी हो सकता है । क्योंकि जिस तरह से पार्टी के अंदर वरिष्ठ विधायकों के मन में नेतृत्व करने की ललक समय-समय पर दिखाई देती है, वह यह बताता है कि खेमेबाजी और गुटबाजी सिर्फ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अंदर ही नहीं भाजपा के अंदर भी सुलग रही है । ऐसे में अनिल बलूनी की काबिलियत तब कसौटी पर होगी जब वह असंतुष्ट और खेमे बाजी में फंसे विधायकों और दिग्गज नेताओं को एक साथ बांधे रखने में सफल होते हैं । अगर बलूनी मुख्यमंत्री बनते हैं तो पूरे 5 साल तक मुख्यमंत्री के पद पर बने रहते हुए प्रचंड बहुमत की सरकार चलाते हुए जनता की उम्मीदों को पूरा करना ही अनिल बलूनी के चयन को सही साबित कर सकेगा ।