आज हम आपको विश्व भर में सुर्खियां बना अयोध्या का राम मंदिर से जुडी ख़ास बातें बतायेंगे जिसमें अहम है आपका ये जानना कि फाइनल डिज़ाइन से पहले कंप्यूटर पर 50 माडल बनाए गए थे जिसमें 6 माह का समय लगा। खास बात यह है कि पूरे भवन में कोई सरिया नहीं लगा है। मंदिर की ऊंचाई 161 फिट है। पूरे मंदिर में कलम को एक के ऊपर एक पत्थर को रखकर इंटरलॉकिंग सिस्टम से निर्मित किया गया है। इस निर्माण के दौरान जहाँ एक और इसकी नीव में सेंसर लगाए गए है वही सेंस स्टोन से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। वही इस निर्माण के दौरान रूडकी सीबीआरआई के अलावा देश की पाँच आईआईटी के वैज्ञानिकों से भी सलाह ली गई है।
राम मंदिर के निर्माण के दौरान भूकम्प के कारण होने वाली क्षति का खास ख्याल रखा गया है और इसकी उम्र एक हज़ार साल निर्धारित की गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब रामलला को टेंट के नीचे स्थापित किया गया था तभी से रूडकी सीबीआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा टेंट को भी इन्ही के द्वारा तैयार किया गया था और उस टेंट की ख़ासियत थी कि उस पर आग व पानी का कोई असर नही होता था।
राम मंदिर के निर्माण में सरिये का इस्तेमाल नहीं हुआ। पत्थर से पत्थर की इंटरलाकिंग की गई है। इसमें बंशी पहाड़पुर के सैंड स्टोन का प्रयोग किया गया है। इसकी वास्तुकला नागर शैली में है। सूर्य तिलक प्रोजेक्ट पर कार्य करने वाले सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिक डॉ. एसके पाणिग्रही ने बताया कि प्रत्येक साल रामनवमी के दिन प्रभु श्रीराम की प्रतिमा के मस्तक पर सूर्य रश्मियों से तिलक होगा पूरे भवन की प्रतिपल हेल्थ मॉनिटरिंग के लिए नींव, कॉलम और रिटेनिंग वॉल में सेंसर लगाए गए हैं।
मंदिर का भवन कलाकृति का भी बेजोड़ नमूना होगा। पूरे भवन में भार को संतुलित करने के लिए जगह-जगह भारी भरकम हाथी और घोड़े स्थापित किए गए हैं। वैज्ञानिक डॉ. देवदत्त घोष ने बताया कि भवन पूरी तरह भूकंपरोधी है। साथ ही इसे किसी भी प्राकृतिक आपदा की आशंका से दोगुनी क्षमता सहने के हिसाब से तैयार किया गया है।