अब दुश्मन हैक नहीं कर सकेंगे ड्रोन – भारतीय वैज्ञानिक की खोज हुयी पेटेंट

ड्रोन यानी मानव रहित हवाई यान (यूएवी) अब दुश्मन देश के हैकरों से सुरक्षित रहेगा और इसके डाटा में सेंध लगाना आसान नहीं होगा। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (सीएसजेएमयू) में महाविद्यालय विकास परिषद के निदेशक एवं फिजिक्स के प्रोफेसर डा. राजेश कुमार द्विवेदी और उनकी टीम ने मशीन ‘क्यू लर्निंग एल्गोरिदम’ विकसित की है, जिससे ड्रोन तकनीक को और भी ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सकता है। इस तकनीक को भारत सरकार से पेटेंट भी कराया जा चुका है। तीन से चार माह में यह नई तकनीक ड्रोन आपरेटर्स के लिए उपलब्ध हो सकेगी।

डा. द्विवेदी ने बताया कि ड्रोन की सिविल और सैन्य, दोनों क्षेत्रों में लोकप्रियता बढ़ी है। इसकी मदद से पर्यावरण निगरानी, आपातकालीन प्रतिक्रिया, खोज व आपदा के दौरान बचाव कार्यों और संचार प्रणाली को मजबूत किया जा रहा है। इसी वजह से ड्रोन की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है। स्वचालित, कंप्यूटरीकृत आटो पायलट आधारित इस सिस्टम पर साइबर हमलों के खतरे का भी अंदेशा है। साइबर अपराधी ड्रोन को ट्रांसमीटर के जरिए मिल रहे संदेशों को हैक कर सकते हैं और यूजर को मिलने वाला डाटा चोरी कर सकते हैं। इसी खामी को दूर करडाटा को सुरक्षित करने के लिए 920 मेगाहट्र्ज की फ्रीक्वेंसी पर काम करने वाली तकनीक विकसित की गई है।

टीम में शामिल डा. राघव द्विवेदी ने बताया कि हमने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) और मशीन लर्निंग आधारित विधियों का उपयोग करके ‘क्यू लर्निंग एल्गोरिदम’ माडल तैयार किया है, जिसकी मदद से कंप्यूटर सिस्टम लिखित निर्देशों के बजाय पैटर्न पहचान और अनुमान के माध्यम से कार्य करता है। रिमोट सेंसिंग के माध्यम से ड्रोन एक निश्चित मात्रा में डाटा उत्पन्न करता है, जिसे भूमि पर मौजूद यूजर ही संग्रहीत कर सकता है। अगर कोई व्यक्ति डाटा को हैक करने की कोशिश करेगा तो यूजर को पता लग जाएगा। एल्गोरिदम यूजर और ड्रोन के बीच सुरक्षित नेटवर्क तैयार करती है। यूजर के पास रा डाटा पहले से मौजूद रहता है और ड्रोन के ट्रांसमिशन से जो डाटा मिलता है, उसका मिलान कर जांच की जा सकती है कि वह कितना सही है, कहीं कोई कोई छेड़छाड़ तो नहीं हुईं।

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