देहरादून से कार्यकारी संपादक आशीष तिवारी की ख़ास रिपोर्ट – 

उत्तराखंड कांग्रेस लम्बी मैराथन बैठक के बाद भी जहां थी वहीं खडी है। एक तरफ तो सत्ताधारी भाजपा है जो चुनावी साल में अपना तीसरा मुख्यमंत्री प्रदेश को दे चुकी है , वहीं हमेशा खेमों की सियासत पर डांवाडोल रहने वाली प्रदेश कांग्रेस में एका नज़र नहीं आती है। क्योंकि जिस तरह की रस्साकशी दिल्ली में अंदरखाने होती सुनाई दे रही है उसके बाद तो यही लगता है कि २०२२ में भी आपसी मतभेद और व्यक्तिगत लाभ हानि की राजनीती ही कांग्रेस भवन में होती नज़र आ सकती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सबसे ताज़ा उदाहरण नेता प्रतिपक्ष का नाम अभी तक तय नहीं हो पाना है..दिल्ली से देहरादून तक पार्टी के नेता आपस में एकमत नजर नहीं आ रहे हैं..

प्रदेश के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय महासचिव संगठन के सी वेणुगोपाल से भी मिल चुके हैं लेकिन अभी तक कोई रिजल्ट नहीं निकल सका है..कई दौर की मंत्रणा हो गयी लेकिना आलाकमान की आड़ में पहाड़ के नेता अपना दांवपेंच छिपा रहे हैं। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष पद और नेता प्रतिपक्ष के नाम को लेकरहर वक्त मीडिया और खुद पार्टी के कार्यकर्ता किसी बड़ी खबर के इंतज़ार में हैं लेकिन इंतज़ार अब लंबा होता जा रहा है। कांग्रेस सूत्रों की माने तो दो चार दिन में ये गुत्थी सुलझा ली जाएगी 

प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के नज़रिये से भी अब हर फैसला अहम् होगा ऐसे में पार्टी की अंतर्कलह से पार्टी को नुकसान होने की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह समय पार्टी के लिए चुनाव की रणनीति बनाने का है ऐसे में सभी गुटों को साधने और संतुष्ट कर एक मंच पर लाने की बड़ी ज़रूरत है। उत्तराखंड में अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है , ऐसे में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को कई फैसलों में बहुमत से फैसला करना ही फायदेमंद होगा वरना तीसरा कोण बना रही आम आदमी पार्टी तो पहाड़ में खलबली मचा ही रही है। 
