Opinion: उत्तराखंड व‍िधानसभा चुनाव में बीजेपी अपना सकती है ‘असम’ का फॉर्मूला!

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समझा जा रहा है कि बीजेपी मुख्यमंत्री का नाम घोषित किए बगैर उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में उतरेगी (फाइल फोटो)

समझा जा रहा है कि बीजेपी मुख्यमंत्री का नाम घोषित किए बगैर उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में उतरेगी (फाइल फोटो)

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने हाल में ही उत्तराखंड की सत्ता में नेतृत्व परिवर्तन कर अपनी चुनावी रणनीति को अमलीजामा पहनाने की कोशिश की थी. लेकिन नया नेतृत्व भी उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा है. इसके अलावा कोरोना वायरस (Corona Virus) से बने हालात ने भी पार्टी की चिंता बढ़ा दी है

नई दिल्ली. उतराखंड में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) असम के फॉर्मूले को अपना सकती है. राज्य के लिए चुनावी रणनीति में विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जा रहा है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी उतराखंड (Uttarakhand) में असम और गोवा फॉर्मूले के तहत विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में जायेगी यानी बीजेपी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) नेतृत्व की जगह संयुक्त नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में जायेगी. बीजेपी को उम्मीद है कि इस फॉर्मूले के चलते पार्टी में गुटबाजी पर भी लगाम लग सकती है. बीजेपी ने असम में सर्बानंद सोनेवाल के मुख्यमंत्री रहते हुए संयुक्त नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा था. जिससे यह संदेश गया था कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, पार्टी यह नतीजे के बाद तय करेगी. असम चुनाव में पार्टी का यह फॉर्मूला सफल रहा और इसके चलते ही वो राज्य में पार्टी सत्ता में लौटने में कामयाब रही. नया नेतृत्व भी बीजेपी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा  उत्तराखंड में अगले वर्ष फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस हिसाब से लगभग आठ महीने का समय शेष बचा है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने हाल में ही नेतृत्व परिवर्तन कर अपनी चुनावी रणनीति को अमलीजामा पहनाने की कोशिश की थी. लेकिन नया नेतृत्व भी उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा है. इसके अलावा कोरोना वायरस से बने हालात ने भी पार्टी की चिंता बढ़ा दी है. उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है, हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी भी यहां जोर-आजमाइश करना चाहती है.राज्य में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व वाली सरकार को लेकर केंद्र में किसी तरह की नाराजगी तो नहीं है, लेकिन चुनाव के समय जिस तरह की रणनीति की जरूरत होती है उसमें दिक्कत आ सकती है. मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत ने कई मौकों पर अपने बयानों से पार्टी के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर दी थी. पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान भी असहज करने वाले रहे हैं. ऐसे में मुमकिन है कि बीजेपी विधानसभा चुनाव में बिना किसी चेहरे के जा सकती है.

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बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने पिछले दिनों त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया था (फाइल फोटो)

दरअसल बीजेपी ने असम में भी यही फॉर्मूला अपनाया था. वहां तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के रहते हुए भी उनको बतौर मुख्यमंत्री पेश नहीं किया गया था, बल्कि चुनाव मैदान में उतरे हेमंत बिस्वा सरमा को परोक्ष रूप से आगे बढ़ाया गया था, और बाद में उनको ही मुख्यमंत्री बनाया गया.
बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के लगभग आधा दर्जन दावेदार किसी एक चेहरे पर दांव न लगाने के पीछे एक रणनीति यह भी मानी जा रही है कि बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के लगभग आधा दर्जन दावेदार हैं और लगभग सभी अपने क्षेत्रों के मजबूत नेता हैं. इसलिए आपसी रस्साकशी में पार्टी को नुकसान हो सकता है. यही कारण है कि बीजेपी सामूहिक नेतृत्व के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी. वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के 20 साल से ज्यादा के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो अब तक यहां हुए नौ मुख्यमंत्रियों में सिर्फ नारायण दत्त तिवारी ने ही पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया, और केवल बी.सी खंडूरी को दो बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. साथ ही यह भी एक सच्चाई है कि किसी पार्टी के मुख्यमंत्री रहते हुए उस पार्टी को दोबारा सत्ता नहीं मिली है. इसलिए बीजेपी उतराखंड के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को समझते हुए कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं है. (यह लेखक के निजी विचार हैं)





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