UP के मुख्यमंत्रियों के दो काल हैं। पहला- ब्राह्मण काल, 1946 से 1989, यानी 39 साल। इसमें कुल 6 ब्राह्मण CM बने और 20 साल तक UP को चलाया। दूसरा- ब्राह्मण शून्य काल, 1989-2021, यानी 31 साल। इसमें एक भी ब्राह्मण CM नहीं बना। आइए UP के मुख्यमंत्रियों की इस कहानी के दोनों कालों को बारी-बारी से देखते हैं। यूपी में ब्राह्मण आबादी 11 से 13 फीसदी के बीच है। एक वक्त रहा जब यूपी की सियासत की कमान ब्राह्मण नेताओं के हाथ में ही रही। लेकिन यह ताकत 1989 के बाद अचानक से खत्म हो गई और ब्राह्मणों के पास यूपी में अंतिम सीएम के रूप में नारायण दत्त तिवारी के नाम की कहानी रह गई।
आपको बता दें कि 1947 के बाद यूपी को 6 कद्दावर ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिले। यूपी के पहले सीएम गोविंद बल्लभ पंत (1952-1954) ब्राह्मण ही थे। उनके बाद सुचेता कृपलानी (1963-1967), कमलापति त्रिपाठी (1971-1973), हेमवती नंदन बहुगुणा (1973-1975), श्रीपति मिश्र (1982-1984) और नारायण दत्त तिवारी (1976-1977, 1984-1985, 1988-1989) भी यूपी के सीएम बने। 1990 के दशक में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति प्रभावी हुई और यूपी का ब्राह्मण नेतृत्व अपनी सियासी ताकत को खो बैठा।
सीएम योगी पर लगते रहे हैं ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप
उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लगातार यूपी में हिंदुत्व की राजनीति शुरू हो गई। इतना ही नहीं, सत्ता में आने के कुछ समय बाद से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विपक्ष ब्राह्मण विरोधी होने व ठाकुर वाद फैलाने का आरोप लगाता रहा है। विपक्ष का दावा है कि योगी सरकार में ठाकुरवाद के आगे ब्राह्मण वर्ग का ध्यान नहीं दिया गया। शायद इस वजह को सत्ता धारी बीजेपी की सरकार ने स्वीकार भी किया। जिसके चलते चुनाव के नजदीक आते ही अन्य दलों की तरह बीजेपी को भी नाराज ब्राह्मणों को मनाने के लिए बड़ा मन्थन करना पड़ा।
लेकिन आज 2022 में हालात अलग हैं –
मौजूदा 2022 के चुनाव में एकबार फिर जातिगत राजनीती हावी है। नेताओं के दलबदल हों या छोटी छोटी जातियो के नेताओं का निजी स्वार्थ , ये सभी मौजूदा चुनाव की धुरी बन चुके हैं।
समाजवादी हो या बहुजन या फिर अपना दल या आरएलडी जैसे तमाम सियासी दल इनका प्रभाव सरकार बनाने और चलाने में इस कदर अहम हो चुका है कि ब्राह्मण वोट बैंक अपने बीच से कोई बड़ा कद्दावर नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने जैसा प्रभाव बना ही नहीं पा रहा है। क्षत्रिय , यादव , कुर्मी , बहुजन , जाट , गुर्जर , कायस्थ और अनगिनत उप जातियों में उलझी उत्तर प्रदेश की सियासत में दूर तक फिलहाल कोई ब्राह्मण दावेदार उभरता नज़र नहीं आ रहा है।