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उत्तराखंड के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत.
मीडिया में इस तरह की खबरें पिछले कुछ समय से लगातार बनी हुई हैं कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) की जगह तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) को सीएम बनाए जाने का बड़ा कारण साधु समाज का दबाव था.
कहा जा रहा है कि साधु समाज पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराज़ था.
कोविड बनाम कुंभ : क्या फेल हुए रावत? हरिद्वार में कुंभ मेले के आयोजन के कारण कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैला यानी कुंभ सुपर स्प्रेडर साबित हुआ, इस बारे में रावत ने क्या कहा?
कुंभ पर क्या था रावत का स्टैंड? विशेष इंटरव्यू के हवाले से टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक रावत ने साफ तौर पर कहा कि उनकी सरकार ‘प्रतीकात्मक कुंभ’ के पक्ष में थी, जिस पर साधु समाज ने भी लिखित में सहमति जताई थी और प्रधानमंत्री तक ने इसे लेकर संतोष जताया था. यह बताते हुए रावत ने कहा कि इसलिए उन्हें लगता है कि कुंभ संबंधी कारणों से उन्हें पद से नहीं हटाया गया.
ये भी पढ़ें : उन 23 मरीज़ों का पता चला, जो दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल से हुए थे ‘लापता’ कैसे होना था कुंभ? रावत के मुताबिक उनकी सरकार पहले तो चाहती थी कि दिव्य और भव्य स्तर पर कुंभ का आयोजन हो, लेकिन कोविड 19 के हालात के मद्देनज़र प्लान कुछ इस तरह का बताया गया था कि प्रतीकात्मक कुंभ के तहत 11 मार्च, 12 अप्रैल, 14 अप्रैल और 27 अप्रैल, शाही स्नानों के सिर्फ चार दिनों का ही आयोजन किया जाए.
हरिद्वार कुंभ में करीब 91 लाख लोग शामिल हुए थे.
फिर कैसे हुआ आयोजन? मार्च के शुरू में ही उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को लाया गया और फिर कुंभ का प्लान बदला. 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक पूरे एक महीने तक हरिद्वार में कुंभ का आयोजन हुआ, जिसमें करीब 91 लाख श्रद्धालु देश भर से इकट्ठे हुए. कुंभ आयोजन को लेकर नए सीएम ने पहले कहा था ‘महाकुंभ सबके लिए है.’ फिर केंद्र की गाइडलाइनों के मुताबिक निगेटिव रिपोर्ट पर ही एंट्री की बात कही गई. गौरतलब यह भी है कि सीएम बनने के अगले ही दिन तीरथ रावत शाही स्नान के लिए हरिद्वार गए थे.
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