अवैध निर्माण और बिल्डिंग बायलॉज का असली खेल,जानिए सवाल:

– प्रथम भाग –

सवाल:

प्राधिकरण के अधिकारी/इंजीनियर और बाबू कैसे हो जाते है करोड़पति,कैसे

50,100,150,200 मीटर के प्लॉट हो या 5000 मीटर ,50,000 मीटर के सबके लिए एक ही व्यवस्था क्यों

मुख्य मार्गो से अलग हटकर सेटबैक और रोड वाईडिंग के नाम पर छोटे प्लॉट धारकों पर ज़ुल्म की व्यवस्था क्यों

व्यवसायिक भवन हो या टाउनशिप सभी शिकार होते है अवैध निर्माण के नाम पर,पारदर्शी व्यवस्था के नाम पर अव्यवहारिक व्यवस्थाएं क्यों

प्राधिकरणों में ऑनलाइन के नाम पर ऑफलाइन व्यवस्थाओं का मकड़जाल क्यों

कंपाउंडिंग के नाम पर सर्किल रेट से दुगुना शुल्क व्यवस्था,हर परिवार को घर के सपने पर कुठाराघात तो नही

सलीम सैफी

 – न्यूज वायरस नेटवर्क –

जो निर्माण विकास प्राधिकरण के बिल्डिंग बाय लॉज के विरुद्ध निर्माण है वो “अवैध निर्माण” है,ये हम सबको पता है लेकिन बिल्डिंग बाय लॉज ही “अवैध निर्माण” का मुख्य कारण है ये हम समझना नही चाहते,सिंगल लाइन है बाय लॉज के हिसाब से निर्माण होगा तो वैध है वरना अवैध,वाह भाई वाह, हर गरीब को घर,ये सपना आप कैसे गरीब को दिखा सकते है जब आप 50,100,150,200 मीटर साइज के प्लॉट वालो को बिल्डिंग बायलॉज के नाम पर लगभग आधा प्लॉट निर्माण से मुक्त रखोगे तो हर गरीब को घर का सपना कैसे पूरा होगा,उम्रभर की कमाई से खरीदा गया प्लॉट आधा खाली छोड़ेगा तो बचेगा क्या,धनिया बोएगा या गाजर ये तो प्राधिकरण का बिल्डिंग बायलॉज बनाने वाले ही बता सकते है,

सरकारी जमीन पर रैंप बनाए,भवन बनाए या कुछ और बनाए तो समझ आता है कि वो अवैध निर्माण है,टूटना चाहिए, कार्येवाई होनी चाहिए लेकिन अपनी ही भूमि के 70-80 या 90% भाग पर निर्माण करना, कवर करना अवैध कैसे , भाई बिल्डिंग बायलाज अवैध क्यों नही हो सकते,छोटे प्लॉट्स के संदर्भ में भी और बड़ों के संबंध में भी।

अवैध निर्माण जिसे कहा जाता है दरअसल वो बिल्डिंग बाय लॉज के नाम पर सरकार का वो जुल्म है जिसमे किसी भी निर्माण का आधे से ज़्यादा भू भाग निर्माण से वंचित कराए जाने को बाध्य किया जाता है,अगर कोई अपनी ही भूमि पर 70 या 80% प्रतिशत भाग कवर कर लेता है तो उसे सरकार अवैध करार देती है जो एक ज़ुल्म का पर्यायवाची है,किसी का प्लॉट साइज 50 मीटर हो,100 मीटर हो या 150 -200 मीटर उससे भी जबरन बाय लॉज के नाम पर,सेट बैक और रोड वाईडिंग के नाम पर 50% तक भूमि खाली छुड़वाई जाती है,अब आप सोचो 50,100,150,200 मीटर वालो के पास क्या बचा और अगर प्लॉट कॉर्नर का हो तो कुछ भी नही बचा,कवर्ड एरिया निकालो कितना निकला और यही नियम 500 मीटर,5000 मीटर या ज्यादा पर होता है।

वहा समझ आता है की जमीन साइज बड़ा है ,आप गरीब आदमी पर भी बाय लॉज के नाम पर ज़ुल्म कर रहे है और अमीर के साथ व्यापार कर रहे, क्यों, उसे अपनी ही लगभग 50% प्रतिशत भूमि में से कुछ भाग कवर करना है अगर उसने कवर करके निर्माण कर भी लिया तो कंपाउंडिंग के नाम पर उसे सर्किल रेट से दुगुने रेट पर प्रति मीटर निर्माण शुल्क सरकार को देना है,जो बहुत ज्यादा होता है,व्यवहारिक नही होता, कुल मिलाकर बाय लॉज व्यवहारिक न होने की वजह से गरीब आदमी और मध्यम वर्ग का आदमी की कमर टूट जाती है और प्राधिकरण के अधिकारियों/ इंजीनियरों को पैसा कमाने का मजबूत आधार मिल जाता है जिसे नाम दिया जाता है “अवैध निर्माण” और अमीर आदमी भी यही करने को मजबूर होता है,यही वजह है जो आवास विभाग को मलाईदार पोस्टिंग में तब्दील करता है,जरूरत है।

बाय लॉज में छोटे और बड़े प्लॉट में व्यवहारिक परिवर्तन की, व्यवस्थाओं की जिससे कि अपने छोटे छोटे प्लॉट्स में ज्यादा से ज्यादा कवर्ड एरिया/ कवरेज मिल सके ,आप और हम खामख्वाह खुश हो रहे है कि सरकार अवैध निर्माण पर हथौड़ा चला रही है , व्यवहारिक सोच होनी चाहिए,बाय लॉज त्रुटिपूर्ण है,व्यवहारिक नही है, उनमें व्यवहारिक परिवर्तन जरूरी है,सोचो ज़रा क्या अवैध है ,क्या वैध,बाय लॉज को गौर से पढ़िए अपने आप पता चल जायेगा JE,AE या अन्य प्राधिकरणकर्मी चंद दिनों में करोड़ों में कैसे पहुंच जाते है,असली खेल बाय लॉज का का,सरकार इस तरफ़ व्यवहारिक सोच रखे

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