उत्तराखंड: रिस्पना पुनर्जीवन अभियान ने जगाई उम्मीदें, अब 15 अन्य नदियों के उद्धार की भी तैयारी

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देहरादून. उत्तराखंड (Uttarakhand) में नवंबर 2017 में शुरू किया गया रिस्पना नदी (Rispana River) के पुर्नजीवन का अभियान परवान चढ़ने लगा है. राजधानी देहरादून (Dehradun) में आबादी क्षेत्र से होकर बहने वाली रिस्पना का स्वरूप बदलता देख सरकार अब प्रदेश में सर्वाधिक प्रदूषित और मृतप्राय हो चुकी पंद्रह अन्य नदियों की दशा सुधारने के लिए भी अभियान शुरू करने वाली है. मसूरी से लेकर देहरादून तक 28 किलोमीटर लंबी रिस्पना नदी जैसे-जैसे आबादी क्षेत्र में प्रवेश करती है, नदी गंदे नाले में तब्दील हो दम तोड़ती हुई नजर आती है. कभी यही रिस्पना अपने पूरे वेग में बहा करती थी. लेकिन, अतिक्रमण और गंदगी के चलते धीरे-धीरे रिस्पना गंदे नाले में कन्वर्ट हो गई.

नवंबर 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पहल पर रिस्पना के पुर्नजीवन के लिए अभियान शुरू किया गया. नदी के दोनों तटों पर बंजर हो चुकी भूमि पर वन विभाग, स्वयं सेवी संस्थाओं के सहयोग से वृहद अभियान चलाकर करीब ढाई लाख पेड़ लगाए गए. इसके उद्वार की जिम्मेदारी देहरादून वन प्रभाग और मसूरी वन प्रभाग को दी गई. करीब ढाई साल का समय हो चुका है. रिस्पना में इसके पॉजीटिव रिजल्ट मिलने लगे हैं. नदी के निर्जन तट पर अब जंगल खड़ा हो रहा है. देहरादून वन प्रभाग के डीएफओ राजीव धीमान रिस्पना के किनारे खड़े हो चुके जंगलों को देखकर बेहद उत्साहित हैं. धीमान और उनकी टीम ने एक चैलेंज लेकर इस पर दिन रात काम किया था.

इसके भी सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं

देहरादून वन प्रभाग ने रिस्पना के किनारे चार जगहों पर साढ़े दस हजार पौधे लगाए थे. धीमान के अनुसार इन सभी जगह पर पौधेां का सर्वावाइल रेट शत प्रतिशत है. इन्हीं में से एक स्पॉट मौथरोवाला में जब न्यूज 18 की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची तो यहां हरा भरा जंगल खड़ा हो चुका है. इससे पूरी पारिस्थितिकी ही यहां रिजुवनेट हो गई. नदी किनारे कई प्रकार के पक्षी आपको नजर आ जाएंगे, ये इस बात का भी संकेत है कि पानी की क्वालिटी में अब सुधार हो रहा है. धीमान के अनुसार यहां सोईल टेस्टिंग भी कराई गई है , इसके भी सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. डिस्चार्ज बढ़ने की संभावना बन गई है

डीएफओ मसूरी कहकशा नसीम बताती हैं कि प्लांटेशन के बाद नदी के कैचमेंट एरिया में सागरताल में नया जल स्रेात भी डेवलेप हुआ है.  इधर, कैरवान गांव क्षेत्र में नदी के तटों पर लगाए गए पेड़ों पर तो फ्रूटिंग तक शुरू हो गई है. ईकोलॉजी का रिस्टोर होना अभियान की सफलता है. इससे स्वाभाविक तौर पर रिस्पना का वाटर डिस्चार्ज बढ़ने की संभावना बन गई है.

कूड़ा सीधा नदी में न फेंका जा सके

रिस्पना के पुर्नजीवन अभियान की मॉनेटियरिंग कर रहे देहरादून के डीएम आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि फर्स्ट फेज की सफलता के बाद अब हम सेकिंड फेस शुरू करने जा रहे हैं. इसके तहत रिस्पना में गिरने वाले शहर के गंदे नालों को टेप करने की कार्रवाई शुरू की गई है. आबादी क्षेत्रों में रिवर ट्रेनिंग का काम भी शुरू करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं. नदी में जो कचरा है उसको एक बार निकाला जाएगा. इसके अलावा आबादी क्षेत्रों में नदी के दोनों तटों पर नेट लगाने की प्लानिंग भी की जा रही है. ताकि, कूड़ा सीधा नदी में न फेंका जा सके.

19 करोड़ रुपये का प्रावधान किया

प्रदेश सरकार ने रिस्पना के साथ ही 2017 में अल्मोड़ा की कोसी नदी के पुर्नजीवन का अभियान भी शुरू किया था. इसके पॉजिटिव रिजल्ट से उत्साहित हो सरकार इसी साल बीस करोड़ की लागत से प्रदेश की सबसे प्रदूषित छह नदियों सुसवा, कल्याणी, ढेला, भेला, पिलाखर और  नंधौर के पुर्नजीवन अभियान शुरू करने जा रही है. कैंपा मद से इसके लिए धनराशि भी जारी हो चुकी है. कैंपा के सीईओ जेएस सुहाग का कहना है कि इसके अलावा मृतप्राय हो चुकी नौ अन्य नदियों हेवल, खोह, मलान, छिपरा, कलसा, गरूड गंगा, गंडक, कोसी और रायगढ़ के पुर्नजीवन के लिए भी अभियान चलाने की योजना बनाई गई हैं. इसके लिए फर्स्ट फेज में कैंपा के तहत 19 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है.

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