20वीं सदी के सबसे चर्चित शायर फिराक गोरखपुरी की इस हफ्ते जयंती मनाई गयी। जिंदगी के दर्द को अपनी शायरी में उतारने वाले फिराक गोरखपुरी उर्फ रघुपति सहाय को जयंती पर जमाना याद कर रहा है। जन्म दिन पर बेशक कोई समारोह या आयोजन नहीं है, लेकिन फिराक साहब आज भी अपनी शानदार शायरी के जरिये लोगों के जेहन में जिंदा हैं।
उन्हें दुनिया से रुख़सत हुए 40 बरस से अधिक हो चुके हैं, लेकिन उनके शेर-ओ-शायरी आज भी उतनी ही मौजूं है, जितनी पुराने दौर में थी। ‘आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमअस्रों, जब ये ख्याल आएगा उनको, तुमने फ़िराक़ को देखा था’ यह शेर फिराक साहब ने अपने लिए लिखा था और कितना सच है। हम फिराक गोरखपुरी की जयंती पर बता रहे हैं कि उनसे जुड़े रोचक किस्से, यादें और कहानियां…
माहौल ने बना दिया मुकम्मल
28 अगस्त, 1896 को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में जन्में रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी को शायरी विरासत में मिली। पिता मुंशी गोरख प्रसाद पेशे से वकील थे, लेकिन शायरी भी अच्छी लिख लेते थे। यह वह दौर था जब उर्दू अदब को खासा पसंद किया जाता था। उर्दू जुबान उस दौर में वह रुतबा हासिल कर चुकी थी, जो जुबान से निकलकर सामने वाले के दिलों में उतर जाती थी। खैर, पिता को शायरी लिखते और पढ़ते देखकर रघुपति सहाय का मन भी शेर-ओ-शायरी में खूब रमता था। फिर क्या था माहौल और घर में ही गुरु मिला तो शायरी में फिराक साहब चटख रंग भरते रहे और आज के दिन जमाना अपने पसंदीदा शायर को याद कर रहा है।
फिराक ने दिलीप कुमार को पहचानने से कर दिया था इन्कार
ट्रैजेडी किंग के नाम से मशहूर दिलीप कुमार का बॉलीवुड में जलवा था और इधर फिराक गोरखपुरी भी शायरी की दुनिया के चमकते सितारे बन चुके थे। साल 1960 के किसी महीने की बात है। मुंबई में एक बड़ा जलसा था, जिसमें एक्टर दिलीप कुमार को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। फिराक साहब पहले से बैठे थे। इस बीच दिलीप कुमार साहब आ गए तो महफिल में हलचल मच गई। सब लोग खड़े हो गए, लेकिन फिराक गोरखपुरी अपनी जगह पर बैठे रहे।
जब दिलीप को फिराक ने लगा लिया गले
दिलीप कुमार खुद उनके पास गए तो उन्होंने कहा- आप कौन? दिलीप साहब ने भी बड़ी ही विनम्रता से अपना परिचय दिया, बावजूद इसके कि वह यह भी जानते थे कि फिराक को उनके बारे में बखूबी जानकारी है। दिलीप साहब की उर्दू जुबान अच्छी थी और उन्होंने सामने बैठे शायर फिराक गोरखपुरी की जमकर तारीफ की। इस पर फिराक साहब खड़े हुए और उन्होंने दिलीप कुमार को गले लगा लिया।