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संघर्ष से स्थापना और स्वर्णिम दौर तक भाजपा के ये हैं नवरत्न शिल्पकार

मौजूदा दौर की सबसे शक्तिशाली पार्टी और देश राज्य और शहरों में गहरी जड़ें जमा रही भाजपा  42 साल की हो गयी है। तमाम उतार चढ़ाव , जीत हार और संघर्ष के बाद आज ये दौर आया है जब इस काल को पार्टी का सुनहरा दौर कहा जा सकता है। बीजेपी को इस मुकाम तक पहुंचाने में अनगिनत नेताओं और कार्यकर्ताओं का योगदान है। तो चलिए आज याद उन शीर्ष  9 नेताओं की कर लेते हैं जिन्होंने भाजपा को शीर्ष तक पहुंचाने में बेमिसाल योगदान दिया है ।

बीजेपी एक नए दौर में पहुंच चुकी है। दो सांसदों वाली यह पार्टी आज देश की सबसे बड़ी और दो लोकसभा चुनाव से अजेय पार्टी बनकर उभरी है। दशकों के संघर्ष के बाद भारतीय जनता पार्टी अपने शीर्ष पर है। हालांकि, जनसंघ को छोड़ दें तो नई बनी बीजेपी का सफर अभी केवल 42 साल का ही है। लेकिन जनसंघ से शुरू यात्रा ने ही बीजेपी रूपी विशाल बरगद को सींचा है। छह अप्रैल, स्थापना दिवस के अवसर पर बात करते हैं उन चेहरों की जिनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय:….

जनसंघ से लेकर बीजेपी तक की यात्रा में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एक अहम योगदान रहा है। जनसंघ के इनके द्वारा तैयार किए गए कैडर ने ही बीजेपी को सींचने का काम किया। अंत्योदय की बात करने वाले दीनदयाल उपाध्याय, बीजेपी के वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत हैं। जनसंघ के संस्थापक संगठन मंत्री के रूप में काम कर चुके दीनदयाल उपाध्याय को 1951 में पार्टी के पहले ‘अखिल भारतीय सम्मेलन’ की अध्यक्षता का गौरव प्राप्त था। हालांकि, दीनदयाल उपाध्याय, 1968 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए। चुनावी राजनीति में व्यक्तिगत तौर पर दीनदयाल उपाध्याय कभी सफल नहीं रहे। दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु भी रहस्यमय परिस्थितियों में हो गई थी।

डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी:

जनसंघ के संस्थापक डॉ.मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर पर काफी काम किया। जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हुए वह धारा 370 को खत्म करने के पक्षधर रहे। एक देश-एक निशान-एक संविधान का नारा देने वाले डॉ.मुखर्जी 1953 में बिना इजाजत के जम्मू-कश्मीर गए जहां उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि, जून 1953 में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।

नानाजी देशमुख:

जनसंघ को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नानाजी देशमुख ने हिंदी पट्टी में खूब काम किया। सरकार में शामिल होने सरीखे कई मौकों को ठुकराने वाले नानाजी देशमुख को हमेशा ही संगठन भाता रहा। देश के राजनीतिक इतिहास में पहले राजनेता नानाजी रहे हैं जिन्होंने राजनीति से सन्यास लिया था। हालांकि, बाद में अटल जी ने उनका अनुकरण किया था।

अटल बिहारी वाजपेयी:

जनसंघ की दूसरी पीढ़ी और बीजेपी के पहली पीढ़ी के नेता अटल बिहारी वाजेपयी, भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं। बीजेपी संगठन के पहले अध्यक्ष रह चुके अटल जी, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री भी रहे। बीजेपी के पहले नेता जो तीन बार प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। अटल जी, पहली बार 13 दिन के लिए 1996 में पीएम बने तो दूसरी बार 1998 में 13 महीना के लिए। हालांकि, 1999 में वह पांच साल का कार्यकाल पूरा किए। अटल जी को राजनीति का अजात शत्रु कहा जाता था।

लालकृष्ण आडवाणी:

बीजेपी को सत्ता का स्वाद चखाने वाले पितृ पुरूष लालकृष्ण आडवाण, देश के उप प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। बीजेपी को दो सीटों से सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने वाले नाम लिए जाएंगे तो उन नामों में आडवाणी का नाम शीर्ष पर होगा। तीन बार भाजपा के अध्यक्ष रह चुके लालकृष्ण आडवाणी की अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जोड़ी बेहद सफल रही। साल 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली।

विजयाराजे सिंधिया:

ग्वालियर राजघराने की महारानी राजमाता विजयाराजे सिंधिंया बीजेपी के संस्थापकों में से एक थीं। मध्य प्रदेश में 1967 में पहली बार गैर कांग्रेस सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली विजयाराजे सिंधिया आठ बार सांसद रही हैं। इनकी दोनों बेटियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे सिंधिया, बीजेपी की राजनीति में हैं।

कुशाभाऊ ठाकरे:

भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे, संस्थापक नेताओं में रहे हैं। वह राष्ट्रीय संगठन में रहने के साथ गुजरात, ओडिशा और मध्य प्रदेश में प्रभारी के तौर पर संगठन को मजबूत करने में जीवनपर्यन्त लगे रहे। 1998 से 2000 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं। छत्तीसगढ़ में बीजेपी को स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान दिया।

भैरो सिंह शेखावत:

बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल भैरो सिंह शेखावत राजस्थान के तीन बार सीएम रह चुके हैं। एक कांस्टेबल से राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे शेखावत देश के उपराष्ट्रपति भी रहे हैं। वे अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने 1952 से राजस्थान के सभी चुनावों (1972 को छोड़कर) में जीत दर्ज की थी। आज युग मोदी मैजिक का है आने वाले समय में योगी का हो सकता है लेकिन जड़ों में जिन नेताओं ने अपना खून पसीना समर्पित किया है उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।

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