ऑटिज्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं। यह एक विकास संबंधी गड़बड़ी है जिससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं। ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जिससे पीड़ित व्यक्ति का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है। वहीं, ऑटिज्म से पीड़ित लोग भी एक-दूसरे से अलग होते हैं। यानी कि आटिज्म के अलग-अलग मरीजों को अलग-अलग लक्षण महसूस हो सकते हैं।
ऑटिज्म के कारण और कारक जानिए
श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में चाइल्ड डेवलपमेंट यूनिट की प्रमुख डाॅ श्रुति कुमार ने जानकारी दी कि उनके पास ऑटिज्म के 3000 बच्चे पंजीकृत हैं। इन बच्चों को उपचार के अन्तर्गत नियमित स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, बिहेवियर थेरेपी एवम् काउंसलिंग दी जाती है। विश्व ऑटिज्म दिवस के अवसर पर बच्चों को रूटीन थैरेपी से हटकर ग्रुप एक्टिविटी करवाई गई। विशेषज्ञों ने अभिभावकों को जानकारी दी कि ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों को विशेष देखरेख की आवश्यकता होती है। जितना जल्दी अभिभावक व्यावहारिक बातों को समझ लेते हैं, उतनी जल्दी ऑटिज्म का उपचार भी शुरू हो जाता है। इन बच्चों के साथ घर पर कैसा व्यवहार किया जाना है ? इन बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से क्या करें क्या न करें। ऐसी छोटी छोटी व्यावहारिक बातों पर ध्यान देकर अभिभावक इन बच्चों के विकास को सही दिशा दे सकते हैं। यह जानकारी विशेषज्ञों ने विश्व ऑटिज्म दिवस के अवसर पर अभिभावकों के साथ साझा की। यदि ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों के विकार को समय रहते पहचान लिया जाता है तो इस विकार को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है व बच्चों में अप्रत्याशित सुधार हो जाता हैं। शिशु रोग विभाग के प्रमुख डाॅ उत्कर्ष शर्मा ने कहा कि श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में कई वर्षों से ऑटिज्म का सम्पूर्ण उपचार हो रहा है। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल उत्तराखंड का एकमात्र अस्पताल है जहां पर ऑटिज्म बच्चें को एक छत के नीचे सम्पूर्णं देखभाल की जा रही है। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में अब तक सैकड़ों बच्चे आॅटिज्म का उपचार पाकर लाभान्वित हो चुके हैं। कार्यक्रम को सफल बनाने में साइकोलाॅजिस्ट डाॅ अर्चना सिंह, स्पीच थैरेपिस्ट कीर्ति मित्तल, आचिंत्य, आक्यूपेशनल थैरेपिस्ट भाविका गौतम, स्पेशल एजुकेटर संगीता अर्चना एवम् मेघा का विशेष सहयोग रहा।
ऑटिज़्म तीन प्रकार के होते हैं –
1.ऑटिस्टिक डिसॉर्डर (क्लासिक ऑटिज़्म): यह ऑटिज़्म का सबसे आम प्रकार है। जो लोग ऑटिज्म के इस डिसऑर्डर से प्रभावित होते हैं उन्हें सामाजिक व्यवहार में और अन्य लोगों से बातचीत करने में मुश्किलें होती हैं। साथ ही असामान्य चीज़ों में रूचि होना, असामान्य व्यवहार करना, बोतले समय अटकना, हकलाना या रूक-रूक कर बोलने जैसी आदतें भी ऑटिस्टिक डिसॉर्डर के लक्षण हो सकते हैं। वहीं, कुछ मामलों में बौद्धिक क्षमता में कमी भी देखी जाती है।
2.अस्पेर्गेर सिंड्रोम: इस सिंड्रोम को ऑटिस्टिक डिसऑडर का सबसे हल्का रूप माना जाता है। इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति कभी कभार अपने व्यवहार से भले ही अजीब लग सकते हैं लेकिन, कुछ खास विषयों में इनकी रूचि बहुत अधिक हो सकती है। हालांकि इन लोगों में मानसिक या सामाजिक व्यवहार से जुड़ी कोई समस्या नहीं होती है।
3.पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसॉर्डर: आमतौर पर इसे ऑटिज़्म का प्रकार नहीं माना जाता है। कुछ विशेष स्थितियों में ही लोगों को इस डिसॉर्डर से पीड़ित माना जाता है।
ऑटिज़्म के लक्षण –
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में (या इससे पहले भी) दिखते हैं जो सामान्य से लेकर गम्भीर हो सकते हैं
इक्का-दुक्का शब्द बार-बार बोलना या बड़बड़ाना
किसी चीज़ की तरफ इशारा करना
मां की आवाज़ सुनकर मुस्कुराना या उसे प्रतिक्रिया देना
हाथों के बल चलकर दूसरों के पास जाना
आंखों में आंखें मिलाकर ना देखना या आई-कॉन्टैक्ट ना बनाना