उत्तराखंड में दलबदल: तुम रूठा ना करो नहीं तो मेरी जान निकल जाती है

विशेष रिपोर्ट आशीष तिवारी

गजब हैं नेता और गजब है नेतागिरी , पल पल बदलते समीकरण के साथ नेताओं ने पाला बदलने का जैसे अभियान छेड़ दिया। उत्तराखंड में यूँ तो केवल मुकाबला 70 पर ही होना है लेकिन एक एक सीट पर दर्जनों उम्मीदवार जीत का गुणा भाग लगा रहे हैं। कई सीट तो ऐसी हैं जहाँ भाजपा और कांग्रेस से बागी नेताओं ने निर्दलीय ही पर्चा दाखिल कर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। लालकुंआ , टिहरी , डोईवाला , रामनगर , कैंट और कई ऐसी सीटें हैं जो अब दोनों बड़ी फंसती दिखाई दे रही है।

उत्तराखंड में 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने से उठ रहे बागी सुरों के बीच अपना खेल बिगड़ने की आशंका से डरी कांग्रेस और भाजपा, दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने अपने रूठे नेताओं को मनाना शुरू कर दिया है ।

कांग्रेस महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की रामनगर सीट से उम्मीदवारी को नामांकन भरने से ऐन पहले बदलकर पार्टी ने बगावत थामने का प्रयास किया है । प्रदेश पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत के बागी तेवरों को देखते हुए कांग्रेस ने रावत को अब लालकुआं से प्रत्याशी बनाया है । वहीँ डोईवाला से भाजपा को लम्बी कसरत करनी पड़ी तो रायपुर में कांग्रेस ने सम्हालते हुए कदम बढ़ाया है।

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद भाजपा को कुछ को सीटों पर असंतोष के उभर रहे सुरों से भी दो-चार होना पड़ रहा था । इसे देखते हुए मतदान से पहले अब भाजपा नेतृत्व राजनीतिक आपदा प्रबंधन में जुट गया है। नाराज बताए जा रहे कार्यकर्ताओं को साधने के लिए पार्टी के प्रांतीय पदाधिकारियों के साथ ही सांसदों व पूर्व मुख्यमंत्रियों को मोर्चे पर लगा दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि यदि मनाने के प्रयास सफल नहीं हुए तो 31 जनवरी को नामांकन प्रक्रिया पूर्ण होने पर पार्टी ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाने से भी पीछे नहीं रहेगी। अब देखना ये दिलचस्प है कि आने वाले दिनों में जब चुनाव प्रचार शबाब पर होगा तब पार्टी के लिए नाराज़ चल रहे स्थानीय नेता और कार्यकर्ता क्या एकजुटता दिखाएंगे।

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