अलविदा कमाल खान – आपका सिर्फ नाम ही नहीं काम भी कमाल का था

विशेष रिपोर्ट – आशीष तिवारी
अब से कुछ घंटे पहले ही तो कमाल ख़ान की एक वीडियो रिपोर्ट एनडीटीवी पर देश दुनिया देख रही थी।  दर्शक सुन रहे थे जो कमाल बोल रहे थे लेकिन अचानक ये दमदार आवाज़ खामोश हो गयी दास्तान बयां करते करते … ये कोई तकनीकी खामी नहीं थी ये तो कुदरत का सबसे  क्रूर हमला था उन सांसों  पर जो लोगों को सच बताते बताते थम गयी।
 कमाल खान , जिनकी धारदार शेर ओ शायरी से तंज़ करती ख़बरों के लोग दीवाने थे , उनका यूँ रुखसत हो जाना बेहद तकलीफदेह है। उनका ना रहना पत्रकारिता जगत के लिए ही नहीं राजनीती और सामाजिक शख्सियतों के लिए भी बहुत बड़ी क्षति है। संयोग है कि खबरों को जीने वाले कमाल देर रात तक अपने पत्रकारिता के दायित्वों का निर्वहन करते फील्ड में लोगों के बीच मौजूद थे।रामनाथ गोयनका और गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान पाने वाले वरिष्ठ पत्रकार कमाल ख़ान की हाल ही में अयोध्या जमीन विवाद से लेकर उत्तर प्रदेश चुनाव से जुड़ी उनकी तमाम ख़बरें चर्चा का विषय बनी थीं…
 
जानिए कमाल खान का जीवन सफर – 

बहुत कम लोग होते हैं जो अपने नाम के अनुसार जीते हैं..ऐसे ही विरले लोगों में एक थे कमाल खान .नाम भी कमाल और काम भी कमाल .कमाल खान एक साधारण सी ख़बर को भी अपने तरीके से जब टीवी के पर्दे पर लेकर आते तो वह कमाल की ख़बर बन जाती पीटीसी करने का उनका तरीका तो पत्रकारिता के छात्रों के लिए अब एक पाठ बन गया है.

चूँकि लखनऊ के थे, तो तहज़ीब न सिर्फ ज़ुबान में थी, बल्कि उनकी खबरों की दुनिया में भी नज़र आती थी.उनकी खबरों में बेवजह की आक्रामकता नहीं होती थीन ही चीखना और चिल्लाना. हां तेवर जोरदार. और कड़ी से कड़ी बात को सलीके से कहना अब आज के युवा पत्रकार उनको सुनकर ज़रूर सीख सकेंगे।

कमाल खान ने प्रिंट से पत्रकारिता शुरू की थी. 90 के दशक में वे नवभारत टाइम्स से जुड़े और सफर का आगाज़ नाते अंदाज़ में किया। कमाल खान की पत्नी रुचि कुमार भी सीनियर टीवी जर्नलिस्ट हैं काम के दौरान दोनों का अपनी-अपनी खबर को लेकर जुनून देखकर लखनऊ की मीडिया जगत भी अक्सर यह कहती सुनी जाती थी कि कमाल भाई आज तो रुचि जी की खबर ज्यादा अच्छी रही.

मूल रूप से पुराने लखनऊ निवासी कमाल खान ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में एमए किया था और उसके बाद रशियन भाषा में एडवांस डिप्लोमा। इसके बाद उनका इरादा रूस जाने का था। लगभग पूरी तैयारी हो गयी थी कि अचानक माँ की तबियत काफी खराब हो गयी। कमाल माँ की बीमारी की वजह से रूस नहीं जा पाये और फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में चले आये।एक बार मीडिया से बात करते हुए कमाल खान ने बताया था कि उनकी  शुरू में रूचि अन्य क्षेत्रों में थी पर जब इंडिया में रह गया तो धीरे-धीरे पत्रकारिता में दिल लगाने लगा। दिसम्बर 1994 में वो  एनडीटीवी में आ गए और उसके बाद अंतिम साँस तक यहीं अपना कर्म धर्म निभाते निभाते इस जहाँ से रुखसत हो गए देश भर से इस दिवंगत पत्रकार के लिए शोक सन्देश आने का सिलसिला जारी है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से महाराष्ट्र के महामहिम भगत सिंह कोश्यारी ने अपने शोक सन्देश में कमाल खान के निधन पर गहरी संवेदना जताई है 
भगत सिंह कोश्यारी , राज्यपाल , महाराष्ट्र
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वर्गीय कमाल खान की पत्नी रूचि कुमार को लिखे शोक सन्देश में अपनी श्रद्धांजलि भेजी है 
पुष्कर सिंह धामी , मुख्यमंत्री , उत्तराखंड
देश के अनुभवी और वरिष्ठ पत्रकारों में अग्रणी शख्सियत  क़मर वहीद नक़वी ने भी मरहूम सहाफ़ी कमाल खान को खेराज ए अक़ीदत पेश करते हुए उन्हें याद किया है.

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