भारत बेरोज़गार है , युवा भारत के पास काम नहीं है और नौजवान अपनी ज़िंदगी को आगे बढ़ाने के लिए अब वो सब करने को तैयार हैं जिसके लिए उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। डिग्रियां है , ऊंची तालीम है और आँखों मेइबन बड़े ओहदे की चाहत थी मगर पश्चिम बंगाल में शायद इन होनहार युवा पीढ़ी के सपने कोई मायने नहीं रखते हैं तभी तो जो खबर आ रही है वो हैरान करने वाली है।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक सरकारी अस्पताल में शवों को संभालने के लिए प्रयोगशाला सहायक के छह पदों पर निकली भर्ती के लिए आवेदन करने वाले 8000 आवेदकों में इंजीनियर, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट उम्मीदवार शामिल हैं। मुर्दाघर में बोलचाल में प्रयोगशाला सहायक को ‘डोम भी कहा जाता है। मीडिया में सामने आयी ये खबर खुद चिकित्सा प्रतिष्ठान के एक अधिकारी ने साझा की है।
उन्होंने बताया कि नील रत्न सरकार चिकित्सा कॉलेज सह अस्पताल के फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सीकोलॉजी विभाग में ‘डोम के छह पदों पर भर्ती के लिए आवेदन देने वालों में करीब 100 इंजीनियर, 500 पोस्ट ग्रेजुएट और 2200 ग्रेजुएट उम्मीदवार हैं। अस्पताल के अधिकारी ने बताया कि कुल आवेदनों में से 84 महिला उम्मीदवारों समेत 784 को एक अगस्त को होने वाली लिखित परीक्षा के लिए बुलाया गया है। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि बीते सालों में जब युवा भारत प्रदेश और देश की सरकार से रोज़गार की उम्मीद कर रहा था तो उस वक़्त नए अवसर पैदा कर हर हाँथ काम के सरकारी वादे क्यों मज़ाक बन गए और आज ऊँची डिग्रियों के बाद भी युवा समझौता कर एक अदद नौकरी के लिए किसी भी काम को करने के लिए मज़बूर है।