आपको भी कभी-कभी तो लगता है की एक फैक्ट्री संग लिये घूम रहा हूँ, पर परेशानी ये है की किसी को बता नहीं सकता, अब भला किस मुँह से किसी से कहते फिरेंगे की भैया हमारी नाभि हर सुबह रुई उगलती है, लोग कहेंगे की नहाते धोते नहीं होगे, साफ़ सफाई नहीं रखते होगे, खान पान सही नहीं होगा इतने सवालों के डर के मारे कभी ज़बान पे लाये ही नहीं ये बात कुछ दोस्तों से बातें की तो पता चला उनकी नाभि से भी रुई उत्पादन धड़ल्ले से चल रहा है थोड़ा गूगल पे जाके यहाँ वहाँ की खोज किये तो पता चला की ये समस्या ज्यादातर नर और मादाओं को है, तो आज हम लाये है आपके लिये एक खास रिसर्च जो बताएगी की आपकी नाभि में हर रोज ये रुई आती कहा से है।
क्या है ये नाभि में रुई का माज़रा
आपको यहां दो महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानने की जरूरत है,पहला यह है कि बाहर की दुनिया में इस समस्या को Navel Fluff के नाम से जाना जाता है, हालांकि कभी-कभी वैज्ञानिक भाषा में इस परेशानी को Belly Button Lint (बीबीएल) कहते हैं, दूसरी बात यह है कि Navel Fluff की ये समस्या अक्सर मध्यम आयु वर्ग के ज्यादा बाल वाले पुरुषों, विशेष रूप से जिन्होंने हाल ही में वजन बढ़ाया हो उनमे अधिक संख्या में पायी जाती है।
तो किसने की खोज इस रुई की
सिडनी विश्वविद्यालय के कार्ल क्रूसजेलिनीकी नाम के एक शोधकर्ता के ये निष्कर्ष हैं, एक ऑस्ट्रेलियाई विज्ञान रेडियो शो के दौरान डॉ कार्ल से उनके एक प्रशंसक ने सवाल किया की क्या आपको पता है की ये नाभि में हर रोज़ रुई कहा से आ जाती है ? यही कारण है जिसने क्रूसजेलिनीकी को इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिए प्रेरित किया, अपने शोध के लिए, क्रूसजेलिनीकी को 2002 में नोबेल पुरस्कार के सम्मान से नवाजा गया।
तो ये रुई रोज कैसे बनती है
डॉक्टर कार्ल और उनके सहयोगियों ने जब इस विषय पर रिसर्च करना शुरू किया तब उनको ये बात समझ में आयी की दरअसल हर रोज सुबह नाभि में भरने वाली रुई आती कहाँ से हैं,होता कुछ यूँ हैं की हम जो भी कपड़े पहनते है उन कपड़ों का जो हिस्सा हमारी नाभि के इर्द-गिर्द होता है, उसके भीतरी हिस्से से हमारे नाभि पर उपस्थित बाल रुई चुराते हैं और नाभि में भर देते हैं, दरअसल ये हमारे बाल नहीं, बल्कि उनमे मौजूद एक खास तरह के सूक्ष्मजीव की वजह से होता है। डॉक्टर कार्ल ने अपनी रिसर्च में ये भी पाया की आप जितना पुराना कपडा पहनेंगे उतना ही कम Navel fluff जमा होगा, ये कोई चिंता का विषय नहीं है, ना ही अपमान कि कोई बात ये शरीर की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।