श्राद्ध में भटकती आत्माओं को सद्गति देता है हरिद्वार का नारायणी शिला मंदिर

न्यूज़ वायरस के लिए महविश की रिपोर्ट 

देवभूमि में देवताओं का वास है , यहाँ मंदिरों और तीर्थस्थलों से पौराणिक मान्यताएं जुडी है यही वजह है कि गंगा तट पर बसे हरिद्वार  स्थित नारायणी शिला पर पितरों का तर्पण करने से मोक्ष स्थली मानते हैं। यहाँ पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के लिए यहां देशभर के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इस स्थान से कई मान्यताएं और किवंदतियां जुड़ी हुई हैं। देश ही विदेश से भी लोग यहां अपने पितरों  की आत्मा की शांति के लिए पूजा करवाने आते हैं।

नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जब गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा श्री बद्रीनाथ धाम के ब्रह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा। उनके हृदय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे। नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई। यानी वहीं उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था। स्कंद पुराण के केदार खंड के अनुसार, हरिद्वार में नारायण का साक्षात हृदय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है क्योंकि मां लक्ष्मी उनके हृदय में निवास करती है। इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है।

पितृ दोष से मिलती है मुक्ति

पितृ दोष से पीड़ित लोग भी यहां पूजा करते हैं। जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई हो, उनके लिए इस मंदिर में पितृ दान, मोक्ष, जप, यज्ञ और श्राद्ध अनुष्ठान भी किए जाते हैं। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की आधी शिला की मूर्ति स्थापित है। यहाँ मंदिर में आसपास के क्षेत्र से हजारों छोटे-बड़े टीले हैं जिनको देखने लोग यहाँ आते हैं। ये टीले पिंड दान के लिए बनाये गए हैं। पितृ पक्ष की शुरुआत 10 सितम्बर से हो जाएगी। पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त पिण्डदान आदि किए गए कार्यों को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है। सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है..

श्राद्ध पक्ष में नारायणी शिला मंदिर पर पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी का ही पुण्य फल मिलता है। हरिद्वार के इस मंदिर में श्राद्ध करने का अधिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यहां श्राद्ध करने मात्र से पितृों को मोक्ष मिलता है।स्थानीय ब्राह्मणों के  मुताबिक वायु पुराण के अनुसार नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा था। भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा बदरीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा। उनके कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा, जबकि चरण गया में गिरा। जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई। यानी वहीं, उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था।

स्कंद पुराण के केदारखंड में लिखा है कि हरिद्वार में नारायण का साक्षात हृदय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है ,क्योंकि मां लक्ष्मी उनके हृदय में निवास करती हैं। इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व माना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का उनके देहान्त की तिथि के दिन श्राद्ध करना जरूरी माना गया है। मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध यदि श्रद्धापूर्वक यदि नहीं किया जाये तो पितृ नाराज हो जाते हैं और उनके श्राप से व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है। जिस घर में पितृ दोष होता है उस घर की सुख-शांति खत्म हो जाती है।

जानिए आप यहाँ कैसे पहुंच सकते हैं ?

– यहां से निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। यहां से हरिद्वार की दूरी लगभग 40 किलोमीटर हैं, जहां से आपको आसानी से वाहन उपलब्ध हो सकते हैं।
– निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन हैं।
– हरिद्वार प्रमुख राज मार्गों से भी अच्छा तरह से जुड़ा है। सड़क मार्ग द्वारा भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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